अधिगम/सीखने को प्रभावित करने वाले कारक, अधिगम/सीखने को प्रभावी बनाने वाले कारक/दशाएँ
अधिगम के स्तर को सुधारने और वृद्धि करने में सहायक है उन्हें अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक कहते हैं।Helping to improve and increase learning levels is called factors that influence learning.
कुछ मनोवैज्ञानिक और शिक्षाविद अधिगम को प्रभावित करने वाले मनोवैज्ञानिक कारकों को महत्व देते हैं तो कुछ वातावरणीय कारकों को, कुछ विषय वस्तु, विधियों आदि को, और अन्य अधिगमकर्ता के आंतरिक एवं व्यक्तिगत कारको को। अध्यापक और स्कूल अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। यह कारक चाहे किसी भी श्रेणी के हो सीखने को प्रभावित करते हैं।
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Factors affecting learning |
अधिगम को प्रभाशाली बनाने वाले कारक/दशाएँ factor that influence student learning
1. अभिप्रेरणा Motivation
अभिप्रेरणा अधिगम को अत्यधिक प्रभावित करती है। अभिप्रेरणा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्राणी की मनोदैहिक एवं आंतरिक दशाएं हैं जो उससे इस प्रकार व्यवहार करवाती है कि लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। जो व्यवहार लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होते हैं मनुष्य उन्हें करता है जो लक्ष्य प्राप्ति में सहायक नहीं होते उन्हें त्याग देता है।जितनी अधिक प्रेरणा होगी अधिगम प्रक्रिया उतनी ही तीव्र होगी, किंतु एक निश्चित सीमा से अधिक प्रेरित करना अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करता है।अभिप्रेरणा बाह्य एवं आंतरिक दोनों प्रकार की होती होती है। प्रशंसा,आलोचना,पुरस्कार,दंड,प्रगति का ज्ञान आदि अभिप्रेरणा की बाह्य अभिप्रेरणा प्रविधियां हैं।आकांक्षा स्तर को ऊंचा उठाना आंतरिक अभिप्रेरणा । शिक्षक यदि छात्रों के आकांक्षा स्तर को ऊंचा उठाता है तो वह कार्य में अधिक तल्लीनता से रुचि लेंगे। अतः अध्यापक को आवश्यकतानुसार अभिप्रेरणा की विभिन्न विधियों का प्रयोग कक्षा कक्ष में अधिगम को बढ़ाने हेतु करना चाहिए। अभिप्रेरणा कक्षा में अधिगम को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है।
2. उद्देश्यो का स्पष्टीकरण Clarity of Objectives
अधिगम एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है। अधिगम को आसान और सार्थक बनाने के लिए अध्यापक को अधिगम के उद्देश्यों को पूर्व में निर्धारित करना चाहिए। अधिगमकर्ता के सामने यदि यह स्पष्ट होगा कि इस विषय वस्तु को वह क्यों सीखे और इसे सीखने के बाद इसका वह विभिन्न प्रकार से उपयोग किस प्रकार कर सकेगा। इस स्थिति में उसके समस्त व्यवहार उद्देश्य केंद्रित और तीव्र होंगे तथा अधिक अधिक होगा।3. पुनर्बलन Reinforcement
पुनर्बलन अधिगम को प्रभावित करता है। पुनर्बलन वह प्रक्रिया है जिसमें यदि कोई उत्तेजक प्रतिक्रिया के तुरंत बाद प्रस्तुत किया जाए तो उससे प्रतिक्रिया शक्ति में वृद्धि होती है। यदि बालक को कक्षा में सक्रिय अनुक्रिया करने पर तुरंत पुनर्बलन दिया जाए तो उसके अधिगम में वृद्धि होगी। कक्षा शिक्षण में बालक के अधिगम को शाब्दिक और अशाब्दिक पुनर्बल द्वारा प्रभावित किया जा सकता है।4. परिपक्वता Maturity
अधिगम तभी संभव होता है जब बालक उसके अनुकूल निश्चित स्तर की परिपक्वता प्राप्त कर लेता है।अगर 6 माह के बच्चे को चलना सिखाया जाए तो व्यर्थ होगा क्योंकि उसकी मांसपेशियां इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह चलाना सीख सके। इसलिए मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अधिगम तभी अधिक होगा यदि शैक्षणिक क्रियाएं बालक के विकास के अनुकूल होंगी। अध्यापक द्वारा उन माता पिता को इस सिद्धांत की जानकारी दी जानी चाहिए जो अपने ढाई या 3 वर्ष के बच्चे की शिक्षण उपलब्धि के प्रति अत्यधिक महत्वकांक्षी हो जाते हैं।
कॉलेसनिक ने उचित ही कहा है, "परिपक्वता और सीखना पृथक क्रियाएँ नहीं है, वरन् परस्पर संबद्ध और एक दूसरे पर निर्भर है।"
5. बौद्धिक योग्यता और क्षमता Intellectual ability or captivity
मनुष्य में अन्य निम्न श्रेणी के जीवों की तुलना में सीखने की क्षमता अधिक होती है किंतु प्रत्येक मनुष्य को सीखने की क्षमता भी अलग-अलग होती है। टरमन और मेरील के बौद्धिक वर्गीकरण के अनुसार हम बालकों को उनकी सीखने की योग्यता के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है।1.पिछड़े 2.सामान्य 3. प्रतिभाशाली । अतः अध्यापक को बौद्धिक योग्यता के अनुसार सीखने की क्रियाएं आयोजित करनी चाहिए।
6. विषय वस्तु की रचना, व्यवस्था और अर्थपूर्णता Creation, arrangement and semantics of content
विषय वस्तु की संरचना उसका कठिनाई स्तर अधिगम को प्रभावित करता है। यदि विषयवस्तु अधिगमकर्ता के स्तर के अनुकूल नहीं होगी तो सीखने की गति मंद होगी।अधिगम प्रक्रिया में विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण के क्रम का भी प्रभाव पड़ता है।यदि विषय वस्तु शिक्षण सूत्रों के अनुसार व्यवस्थित की जाएगी तो अधिगम प्रक्रिया सरल होगी।
विषय वस्तु यदि अर्थपूर्ण होगी तो सीखने की गति अधिक होगी। अर्थ पूर्णता से अभिप्राय है कि जो विषय वस्तु प्रेषित की जाए उसका संबंध बालक के दैनिक जीवन से जुड़े उदाहरणों से हो, और वह स्पष्ट अर्थ रखती हो तथा बालक के पूर्व ज्ञान से भी संबंधित हो।अतः यदि अध्यापक विषय वस्तु को अर्थपूर्ण बनाकर प्रस्तुत करेगा तो सीखना प्रभावी होगा।विषय वस्तु की मात्रा भी बालक के स्तर के अनुसार होनी चाहिए।
7.थकान एवं अनुपयुक्त कार्यकारी परिस्थितियां Fatigue and inappropriate working conditions
थकान की स्थिति में व्यक्ति की कार्य क्षमता घट जाती है और कार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। थकान शारीरिक या मानसिक हो सकती है। बालक द्वारा लंबे समय तक कार्य करते रहने के बाद उसकी अधिगम की गति धीमी हो जाती है और कार्य के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है। अतः बालक को बीच में विश्राम देने से वह पुनः सक्रिय हो जाता है।अधिगम को प्रभावित करने वाले तत्त्व |
कार्य की विपरीत भौतिक परिस्थितियां, जैसे-बैठने की उपयुक्त व्यवस्था ना होना, शोर, विद्यार्थियों की बहुत अधिक संख्या, कम रोशनी, अपर्याप्त हवा, आदि अधिगम की गति को कम कर देते हैं,क्योंकि ऐसी परिस्थिति में थकान भी जल्दी होती है। अतः कक्षा के मनोवैज्ञानिक पर्यावरण के साथ-साथ भौतिक पर्यावरण भी अधिगम को प्रभावित करता है।
8.अधिगम हेतु प्रयुक्त विधियां Teaching Method
अधिगम की विधियां भी सीखने को प्रभावित करती हैं। जिन विधियो में बालकों को पढ़ने से पूर्व तत्पर किया जाता है, अधिगम प्रक्रिया के दौरान विभिन्न क्रियाएं करवाई जाती हैं, बालक स्वयं के अनुभव द्वारा सक्रिय रहकर ज्ञान अर्जित करता है, उन विधियों द्वारा अधिगम शीघ्रता से व स्थाई होता है। अतः अध्यापक को शिक्षण में ऐसी विधियों का प्रयोग करना चाहिए जिनमें अध्यापक की सक्रियता कम और विद्यार्थी की सक्रियता अधिकतम हो और विद्यार्थी को स्वयं कार्य करने का अवसर मिले।अतः कहां जा सकता है कि अधिगम को प्रभावी बनाने में योगदान देने वाले अनेक कारक अथवा दशाएं सामूहिक रूप से सहयोगी हो सकते हैं। विद्यालय की संपूर्ण परिस्थिति बालक के अधिगम को प्रभावित करती है।
रायबर्न के शब्दों में कहा जा सकता है, "विद्यालय कि वह संपूर्ण परिस्थिति जिसमें बालक स्वयं को पता है, जीवन से जितनी अधिक संबद्ध होगी उसका अधिगम उसी मात्रा में फलदायक और स्थाई होगा।"
2 टिप्पणियां
Sunita kimati
जवाब देंहटाएंB. Ed student
jbrdast
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