अधिगम/सीखने के सिद्धांत व नियम Theory and rules of Learning in hindi.
अधिगम किस प्रकार होता है ? अधिगम प्रक्रिया क्या है ? अधिगम को सरल कैसे बनाया जा सकता है ? सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक को अधिगम के सिद्धांतों और नियमों का ज्ञान हो। मनोवैज्ञानिकों द्वारा अधिगम के विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं। शिक्षण अधिगम के सिद्धांत (Learning Theory) को दो वर्गों में बांटा जाता है -![]() |
Theory of Learning in hindi |
1.अधिगम के साहचर्य सिद्धांत Associative Theory of Learning
2.अधिगम के ज्ञानात्मक या क्षेत्रीय या गेस्टाल्ट सिद्धांत Field Theory of Learning
यहां हम केवल इन सिद्धांतों द्वारा प्रतिपादित सीखने
के नियम तथा इनके शिक्षण में अनुप्रयोग की ही चर्चा
करेंगे।
अधिगम के साहचर्य सिद्धांत Associative Theory of Learning
थार्नडाइक का उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत Thorndike Stimulus Response Theory
इस सिद्धांत के अनुसार उद्दीपन तथा अनुक्रिया का निकट का संबंध है। विशिष्ट उद्दीपन विशिष्ट अनुक्रिया से संबंधित हो जाता है और ऐसा S-R बंधन बन जाता है। इस प्रकार के बंधन के कारण ही इस सिद्धांत को संबंधवाद Connectionism भी कहते हैं। इसे प्रयास एवं त्रुटि/ संबंध का सिद्धांत भी कहा जाता है। इसके थॉर्नडाइक ने अग्रलिखित तीन अधिगम के मुख्य नियम प्रतिपादित किए -1.तत्परता का नियम Low of Readiness
जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए तत्पर होता है तो उस कार्य को पूर्ण करने में व्यक्ति को आनंद का अनुभव होता है। यदि वह सीखने के लिए तैयार नहीं है और उसे बाध्य किया जाता है तो वह खीझ जाता है। तत्परता का नियम थॉर्नडाइक ने दिया।
शैक्षिक उपादेयता educational implications
शिक्षण अधिगम के इस नियम का उपयोग करके अध्यापक शिक्षण को प्रभावी और रोचक बना सकता है यदि अध्यापक पाठ प्रारंभ करने से पूर्व बालक के दैनिक जीवन से संबंधित पूर्व ज्ञान के प्रश्न पूछे, प्रदर्शन करें या सार्थक घटना प्रस्तुत करें तो छात्रों का ध्यान विषय वस्तु की ओर केंद्रित हो जाएगा और वह सीखने हेतु जिज्ञासु एवं तत्पर होंगे।
2. अभ्यास का नियम Law of Practice
इस नियम को उपयोग-अनुप्रयोग का नियम भी कहते है। इस नियम के अनुसार उद्दीपन अनुक्रिया के बार-बार घटित होने पर इस दोनों के मध्य दृढ संबंध होने की संभावना बढ़ती है। लेकिन केवल अभ्यास से ही सीखने की प्रक्रिया में वृद्धि संभव नहीं है जब तक की अभ्यास के साथ-साथ बालक को अभ्यास के परिणाम एवं प्रगति का ज्ञान नहीं दिया जाता। अतः सीखी जाने वाली सामग्री अर्थ पूर्ण हो उसका बार-बार अभ्यास करवाया जाए और उन्नति का ज्ञान दिया जाए तो अधिगम में वृद्धि होती है।
शैक्षिक उपादेयता educational implications
यह नियम शिक्षण में अधिगम परिस्थितियां उत्पन्न
करने में उपयोगी है विशेषकर कौशल विकास जैसे किसी उपकरण या यंत्र को कुशलतापूर्वक प्रयोग में लाने या ग्राफ और चित्र आदि बनाने में निपुणता प्राप्त करने के लिए बार-बार अभ्यास आवश्यक है। विषय वस्तु को भी यदि लंबे अंतराल तक उन्हें नहीं दोहराया जाएगा तो विद्यार्थी उसे भूल जाता है। अभ्यास के
साथ-साथ विषय वस्तु भी रोचक और प्रेरणादायक हो तभी अधिगम तीव्र होगा। कक्षा शिक्षण में पढ़ाई गई विषय वस्तु का शिक्षक मौखिक,लिखित अभ्यास करवाता है तो स्थायी अधिगम होगा।
3. प्रभाव का नियम law of effect
इस नियम से तात्पर्य यह है कि प्राणी उन क्रियाओं को शीघ्र सीख लेता है जिनके करने से उसे संतोष और आनंद मिलता है। इससे उसे और अधिक क्रिया करने की प्रेरणा मिलती है। इसके विपरीत यदि क्रिया के परिणाम कष्टदायक होते हैं तो बालक उन्हें पुनः नहीं करना चाहता। अतः उद्दीपक और अनुक्रिया का संबंध उसके प्रभाव के आधार पर कमजोर या मजबूत होता है।
शैक्षिक उपादेयता educational implications
अध्यापक कक्षा कक्ष में इस नियम का प्रभावी उपयोग कर सकता है। यदि बालक के अनुक्रिया करने पर उसे पुष्टि दी जाए, सही होने का ज्ञान करवाया जाए, उचित पुनर्बलन का प्रयोग किया जाए तो सीखने की गति बढ़ेगी और अधिगम प्रभावी होगा। यदि छात्र द्वारा त्रुटी करने पर अध्यापक द्वारा अस्वीकृति प्रदान की जाए तो इससे त्रुटि करने की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है। शिक्षण में ऐसी विधियों का प्रयोग किया
जाए जिससे छात्रों को संतोषप्रद अनुभव प्राप्त हो और विद्यार्थियों को सीखने के लिए अभिप्रेरित किया जा सके।
पावलव का अनुबंधन अनुक्रिया सिद्धांत Pavlov Theory of Classical Conditioning
स्वाभाविक उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया करना मानव की प्रवृति है जब मूल उद्दीपक के साथ एक नवीन उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तथा कुछ समय के पश्चात मूल उद्दीपक को हटा दिया जाता है तब नवीन उद्दीपक से भी वही अनुप्रिया होती है जो मूल उद्दीपक से होती है। इस प्रकार स्वाभाविक अनुक्रिया नए उद्दीपक केसाथ अनुकूलित हो जाती है।
शैक्षिक उपादेयता educational implications
इस सिद्धांत के ज्ञान से शिक्षक को कक्षा अध्यापन में कई गुणों का विकास करने में सहायता मिलती है।
1. अनुकूलित अनुक्रिया धीरे-धीरे आदत बन जाती है अतः प्रशिक्षण द्वारा विभिन्न प्रकार की उपयुक्त आदतों का विकास इसके माध्यम से किया जा सकता है।
2. भाषा के विकास हेतु शब्दों का विभिन्न वस्तुओं के साथ संबंध स्थापित करके सिखाया जाता है, जैसे अ से अनार आ से आम आदि।
3. विद्यार्थियों में अनुशासन एवं उत्तम व्यवहार इस सिद्धांत के प्रयोग द्वारा विकसित किया जा सकता है।
4. अनुकूलन तथा अभ्यास द्वारा बालकों में संवेगात्मक स्थिरता विकसित की जा सकती है।
5. यह सिद्धांत बालकों में समाजीकरण की प्रक्रिया विकसित करने में भी सहायक है।
सक्रिय अनुबंधन अनुक्रिया का सिद्धांत Theory of Operant Conditioning
सक्रिय अनुबंधन अनुक्रिया सिद्धांत के प्रतिपादक प्रो.B F स्किनर हैं। इस नियम के अनुसार यदि निर्गमित (Emitted) अनुक्रियाओं को पुनर्बलित कर दिया जाए तो वे बलवती हो जाती हैं तथा बार-बार दोहराए जाने पर स्थाई व्यवहार में परिवर्तित हो जाती है। स्किनर ने चूहे और कबूतरों पर अनेक प्रयोग किए। भूखे चूहे को स्किनर बॉक्स (sakiner box) में रखा गया। लीवर दबाने पर उसे तुरंत भोजन प्राप्त हो जाता था। धीरे धीरे वह बिना विलंब किए लीवर दबाना सीख गया। इसका प्रमुख कारण था अनुक्रिया तथा पुनर्बलन में अनुबंधन होना। अनुबंधन के सुदृढ़ीकरण के लिए तुरंत पुनर्बलन देना ही प्रभावी होता है।शैक्षिक उपादेयता Educational implications
1. छात्रों की अपेक्षित अनुक्रियाओं को यदि तुरंत पुनर्वलित्त किया जाए तो छात्र ऐसी प्रतिक्रियाओं को बार-बार दोहराते हैं और वह व्यवहार सुदृढ़ हो जाता है।
2. अवांछित व्यवहार को नकारात्मक पुनर्बलन द्वारा रोका जा सकता है।
3. तुरंत पुनर्बलित करने से सीखने की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
4. अभिक्रमित अनुदेशन और कंप्यूटर आधारित अधिगम इसी सिद्धांत पर आधारित हैं।
5. प्रशिक्षणार्थियों में सूक्ष्म शिक्षण अभ्यास के दौरान इस सिद्धांत के प्रयोग द्वारा उपयुक्त शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।
6. मानसिक दृष्टि से कमजोर बालकों के लिए भी यह उपयोगी है।
अधिगम के ज्ञानात्मक क्षेत्रीय या गेस्टाल्ट सिद्धांत गेस्टाल्टवादी Congnitive or field or Gestalt Theories of Learning
गेस्टाल्टवादी विचारधारा के मनोवैज्ञानिक सीखने को केवल मशीन की तरह उद्दीपन अनुक्रिया नहीं मांगते बल्कि व्यक्ति द्वारा सजग एवं प्रयासपूर्वक किए जाने वाले प्रयत्न मानते हैं। यह सिद्धांत सूझ द्वारा सीखने की विचारधारा पर आधारित है। इस सिद्धांत के प्रतिपादक कोहलर, वर्दीमर, कोफ्का आदि माने जाते हैं।इनके अनुसार समग्र (whole) उसके अंशों (part) की तुलना में अधिक अर्थपूर्ण होता है। जर्मन शब्द गेस्टाल्ट का अर्थ है संपूर्ण, समग्राकृति। व्यक्ति किसी प्रक्रिया को सूझ या अंतर्दृष्टि (insight) द्वारा सीखता है। जब व्यक्ति सीखता है तो परिस्थिति के विभिन्न पहलुओं का नया ढंग से प्रत्यक्षण (perception) कर उनके आपसी संबंधों,संगठन को समझता है और उसमें अचानक सूझ उत्पन्न होती है। सूूझ का अर्थ है किसी समस्या का अचानक समाधान करना। व्यक्ति एक परिस्थिति के अनुभवों से संवेदना प्राप्त करता है। संपूर्ण परिस्थिति को समझना और फिर व्यवहार करना अंतर्दृष्टि या सोच का परिचायक है। अंतर्दृष्टि तब उत्पन्न होती है जब अधिगमकर्ता कार्य में छिपे संबंध साहचर्य को देख लेता है।
यदि किसी समस्या को टुकड़ों के रूप में बालक के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है तो वह सूझ द्वारा समस्या को हल नहीं कर पाएगा। अधिगम सूझ में विकास या परिवर्तन है। अतः अध्यापक को समग्र रूप में समस्या को प्रस्तुत करना चाहिए जिससे बालक समस्या के विभिन्न तत्वों और उनके आपसी संबंधों को जान सके।
लेविन का क्षेत्रीय सिद्धांत Lewin's field theory
लेविन ने भी अधिगम प्रक्रिया में सूझ को महत्व दिया है। जब बालक के सामने कोई समस्या आती है तो वह सूझ द्वारा समस्या सुलझाने के लिए ज्ञानात्मक संरचना में कुछ परिवर्तन करता है। अतः अधिगम एक सापेक्षकीय प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत बालक नवीन ज्ञानात्मक संरचनाओं को विकसित या परिवर्तित करता है। ये अधिगम में भौतिक पर्यावरण की जगह मनोवैज्ञानिक वातावरण को अधिक महत्व देते हैं।शैक्षिक उपादेयता
Educational implications
1. विषय वस्तु को यदि संपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया जाए और फिर उसके अंशों का क्रमानुसार अध्ययन करवाया जाए तो शिक्षण अधिक सार्थक होगा, जैसे-विद्यार्थी को संपूर्ण तंत्रिका तंत्र का मॉडल या चित्र दिखाकर फिर उसके भागों का ज्ञान देना। इससे बालक अंश को संपूर्ण के परिप्रेक्ष्य में समझता है।
2. शिक्षण से पूर्व छात्रों में ज्ञानात्मक तथा संवेगात्मक तत्परता उत्पन्न करनी चाहिए। इसके लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करना चाहिए।
3. अध्यापक को छात्रों के पूर्व अनुभवों को संगठित कर उसका उपयोग सूझ द्वारा सिखाने में करना चाहिए।
4. शिक्षक को अधिगम के तीनों स्तरों-(१) स्मृति,(२) अवबोध, (३) चिंतन के अनुकूल वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिससे कि विद्यार्थी अंतर्दृष्टि का उपयोग करते हुए कक्षा कक्ष में अधिगम कर सकें।
5. ये अधिगम में रटने के स्थान पर सूझ को अधिक महत्व देते हैं। इसका उपयोग गणित, कला, संगीत के शिक्षण में बखूबी किया जा सकता है।
0 टिप्पणियां