प्रतिभाशाली बालक, प्रतिभाशाली बालकों की पहचान
प्रतिभाशाली बालक (gifted children) बालिकाओं में उच्च बुद्धि लब्धि (high intelligence quotient) वाले बालक होते हैं। सामान्य रूप से सभी बालक समान होते हैं, किंतु जब उन पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण (psychologist test) डाला जाए तो उनमें से कुछ अच्छी बुद्धि वाले तो कुछ औसत बुद्धि वाले होंगे।
पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक बिने और टरमन ने बालकों की बुद्धि मापने हेतु निश्चित मापदंड बनाए। बुद्धि परीक्षणों (intelligence test) के बाद बुद्धि लब्धि का मापन किया जाता है, जिसमें अंतर्गत बालकों की श्रेणी निर्माण की जाती है।
बिने और टरमन ने बुद्धि लब्धि के मापन में 140 से अधिक प्राप्त अंकों के बालक को प्रतिभाशाली बालक (gifted children) माना है और 120 से 140 के मध्य प्राप्त अंकों के बालकों को श्रेष्ठ माना है।
वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र में बुद्धि परीक्षण (intelligence test) की उपयोगिता महसूस की जाने लगी है। इसके द्वारा बालकों की मानसिक योग्यता, प्रतिभा, विशेषताएं आदि का ज्ञान हो जाता है। प्रतिभाशाली बालक वे होते हैं जो अपनी आयु के बालकों की योग्यता व क्षमताओं से अधिक योग्यता व क्षमता रखते हैं। ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि उच्च होती है। ऐसे बालकों की तरफ विशेष ध्यान भी देना पड़ता है, क्योंकि ये बालक राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति होते हैं। इनकी शिक्षा व कार्यों को यदि उचित प्रकार से निर्देशन तथा प्रोत्साहन मिलता रहे तो यह उज्जवल भविष्य के कर्णधार होते हैं।
इन्हीं बालकों में देश के भावी प्रशासक (administrator), वैज्ञानिक (Scientist), दार्शनिक (philosopher), शिक्षक (teacher) व लेखक (writer) होते हैं।
ऐसे प्रतिभाशाली बालकों के लिए प्लेटो (plato) ने कहा था कि, "उच्च बुद्धि स्तर वाले बालकों का चयन करके उन्हें विज्ञान, दर्शन आदि की शिक्षा देनी चाहिए, जिससे वे ग्रीक 'प्रजातंत्र' का कुशलता से संचालन कर सके।"
प्रतिभाशाली बालकों (gifted children) का अध्ययन मनोविज्ञान (psychology) के द्वारा विशेष रूप से किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने ऐसे बालकों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक विशेषताओं का अध्ययन कर उसका विवरण प्रस्तुत किया है।
सर्वप्रथम इंग्लैंड के सर फ्रांसीसी गाल्स ने 1869 में प्रतिभाशाली बालकों पर वंश परंपरा का असर है या नहीं ? पर अध्ययन किया। इसी प्रकार 1906 मे वार्ड ने अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला की प्रतिभा पर वंशानुक्रम (inheritance) नहीं बल्कि वातावरण (environment) का प्रभाव अधिक होता है, किंतु गाल्स के अनुसार व्यक्ति की बुद्धि तथा अन्य प्रकार की मानसिक योग्यताओं पर उनके वंशानुक्रम का ही प्रभाव पड़ता है न कि वातावरण का।
ऐसे ही अमेरिका के मनोवैज्ञानिक मेटल ने 1910 में अपनी पुस्तक American Men of Science में वंशानुक्रम एवं वातावरण दोनों का समन्वय करते हुए परिणाम निकाला की बालकों के प्रतिभा के विकास पर वातावरण तथा वंशानुक्रम दोनों का प्रभाव पड़ता है।
सिंपसन (Simpsons) तथा ल्यूकिंग (luking) ने प्रतिभाशाली बालक के विषय में लिखा है - "प्रतिभाशाली बालक वे हैं जिनका नाड़ी संस्थान श्रेष्ठ होता है। जिसके द्वारा वे ऐसे कार्य सफलता के साथ कर लेते हैं जिनमें उच्च स्तरीय बौद्धिक विचारशीलता या सर्जनात्मक कल्पना अथवा दोनों की आवश्यकता पड़ती है।"
अब्दुल रॉफ के अनुसार - "प्रायः उच्च बुद्धि लब्धि को प्रतिभाशाली होने का संकेत माना जाता है।" अतः प्रतिभाशाली बालक शब्द का अभिप्राय बालक की उच्च बुद्धि लब्धि से किया जाता है।
कॉलसनिक ने प्रतिभाशाली बालक के विषय में अपना मत दिया है - "प्रतिभाशाली शब्द को उस बालक के लिए प्रयोग किया जाता है जो वय वर्ग में किसी एक योग्यता में श्रेष्ठ होता है। उसे असाधारण रूप से हमारे समाज के जीवन के गुण तथा कल्याण के लिए योग देने वाला बनाता है।"
विटी के अनुसार - "प्रतिभाशाली शब्द को उनके लिए प्रयुक्त किया जा सकता है जिनके निष्पादन किसी मूल्यपरक क्रिया में संगत रूप मे उल्लेखनीय होते हैं।"
क्रो एवं क्रो के अनुसार -
१. प्रतिभाशाली बालक दो प्रकार के होते हैं। वे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती है और जो असाधारण बुद्धि वाले होते हैं।
२. वे बालक जो कला, गणित, संगीत, अभिनय आदि में से एक या अधिक में विशेष योग्यता रखते हैं।
किर्क - "प्रतिभाशाली बालकों में श्रेष्ठ योग्यता मानते हैं, जिसके द्वारा तथ्यों, विचारों तथा संबंधों के साथ कार्य को पूर्ण किया जाता है।"
हैविंग हर्स्ट - "जो निरंतर किसी कार्य क्षेत्र में कुशलता का परिचय देता है उसे प्रतिभाशाली बालक मानते हैं।"
उपयुक्त परिभाषाओं के आधार पर प्रतिभाशाली बालकों के विषय में निम्न तथ्य निकाले जा सकते हैं -
* 110 प्राप्तांक से अधिक बुद्धि लब्धि वाले बालक प्रतिभाशाली होते हैं।
* जिनका निष्पादन किसी मूल्यपरक क्रिया में उल्लेखनीय हो।
* जो स्वयं के भौतिक, नैतिक, सामाजिक, संवेगात्मक (emotional) एवं सौंदर्यात्मक पक्षों की वृद्धि एवं उन्नयन करते हैं।
* वह बालक जो अपने आयु स्तर के बालकों से हर क्षेत्र में उच्च योग्यता रखता हो।
* जो किसी भी क्षेत्र में निरंतर कार्य कुशलता का परिचय देता है।
* वह जिसके द्वारा तथ्यों, विचारों तथा संबंधों के साथ सफलतापूर्वक कार्य किया जाता हो।
प्रतिभा संपन्नता केवल बुद्धि लब्धि पर ही निर्भर नहीं है। सही मायने में देखा जाए तो सामान्य बुद्धि तथा विशिष्ट बुद्धि दोनों ही मिलाकर प्रतिभा संपन्नता का निर्माण करती है इसलिए प्रतिभाशाली बालक सामान्य कार्यों को सफलता के साथ संपन्न करता है तथा किसी एक क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य करता है जिसके कारण बालक किसी एक क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त कर लेता है। इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि सामाजिक प्रतिभा संपन्न, यांत्रिक प्रतिभा संपन्न, शारीरिक प्रतिभा संपन्नता, संप्राप्ति प्रतिभा संपन्न, कलात्मक प्रतिभा संपन्न आदि में से किसी एक प्रकार की प्रतिभा संपन्नता बालक में होती है।
एक प्रतिभाशाली बालक हर क्षेत्र में ही अपनी प्रतिभा प्रदर्शित नहीं कर सकता है। यह कार्य केवल उसी कार्य क्षेत्र में कर सकता है जिसमें उसकी विशिष्ट योग्यता अधिक होती है तथा जो सामान्य बुद्धि से उच्च सहसंबंध रखती है।
अतः देश व समाज के लिए यह आवश्यक है कि वे इन प्रतिभाओं का उचित सम्मान करें तथा किसी भी प्रकार से उनका चयन करके उनके ज्ञान, योग्यता व क्षमता का समाज व राष्ट्र के हित में योगदान ले और इनका सुसमायोजन (good adjustment) करें।
जनशक्ति का सदुपयोग करने, राष्ट्र को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने के लिए यह आवश्यक है कि बालक की योग्यताओं का पता लगाकर उनका अधिकतम विकास किया जाए। प्रतिभाशाली बालक राष्ट्र व समाज की अमूल्य निधि व संपत्ति होते हैं इनका चयन करके उनकी प्रतिभाओं के पूर्ण निखार के प्रयास समाज व राष्ट्र को अपने हित में करना चाहिए।
यदि समाज व राष्ट्र इनकी ओर ध्यान नहीं देता है तो संभव है कि अनेक फूल मरुस्थल में अधखिले ही मुरझा जाए या वे फूल किसी देवता पर चढ़ने के स्थान पर किसी वेश्या के गजरे की शोभा बढ़ा दे। यदि इन्हें समुचित मार्गदर्शन मिल जाए और इनका सुसमायोजन हो जाए तो राष्ट्र की प्रगति में सहायक होते हैं और किन्हीं कारणों से इनका समायोजन ना हो पाए तो इनकी प्रतिभा संपन्नता राष्ट्र व समाज विरोधी कार्यों में लग सकती है।
अतः आवश्यक है कि प्रतिभाशाली बालकों की उचित मात्रा में पहचान की जाए तथा उनके लिए समुचित शिक्षा की व्यवस्था की जाए जिससे वह अपनी प्रतिभाओं का पूर्ण विकास कर राष्ट्र व समाज के उपयोगी सदस्य बन सके।
प्रतिभाशाली बालकों का चयन तथा पहचान करने के लिए निम्नलिखित विधियां काम में लाई जाती है -
पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक बिने और टरमन ने बालकों की बुद्धि मापने हेतु निश्चित मापदंड बनाए। बुद्धि परीक्षणों (intelligence test) के बाद बुद्धि लब्धि का मापन किया जाता है, जिसमें अंतर्गत बालकों की श्रेणी निर्माण की जाती है।
बिने और टरमन ने बुद्धि लब्धि के मापन में 140 से अधिक प्राप्त अंकों के बालक को प्रतिभाशाली बालक (gifted children) माना है और 120 से 140 के मध्य प्राप्त अंकों के बालकों को श्रेष्ठ माना है।
![]() |
Gifted Children |
वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र में बुद्धि परीक्षण (intelligence test) की उपयोगिता महसूस की जाने लगी है। इसके द्वारा बालकों की मानसिक योग्यता, प्रतिभा, विशेषताएं आदि का ज्ञान हो जाता है। प्रतिभाशाली बालक वे होते हैं जो अपनी आयु के बालकों की योग्यता व क्षमताओं से अधिक योग्यता व क्षमता रखते हैं। ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि उच्च होती है। ऐसे बालकों की तरफ विशेष ध्यान भी देना पड़ता है, क्योंकि ये बालक राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति होते हैं। इनकी शिक्षा व कार्यों को यदि उचित प्रकार से निर्देशन तथा प्रोत्साहन मिलता रहे तो यह उज्जवल भविष्य के कर्णधार होते हैं।
इन्हीं बालकों में देश के भावी प्रशासक (administrator), वैज्ञानिक (Scientist), दार्शनिक (philosopher), शिक्षक (teacher) व लेखक (writer) होते हैं।
ऐसे प्रतिभाशाली बालकों के लिए प्लेटो (plato) ने कहा था कि, "उच्च बुद्धि स्तर वाले बालकों का चयन करके उन्हें विज्ञान, दर्शन आदि की शिक्षा देनी चाहिए, जिससे वे ग्रीक 'प्रजातंत्र' का कुशलता से संचालन कर सके।"
प्रतिभाशाली बालकों (gifted children) का अध्ययन मनोविज्ञान (psychology) के द्वारा विशेष रूप से किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने ऐसे बालकों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक विशेषताओं का अध्ययन कर उसका विवरण प्रस्तुत किया है।
सर्वप्रथम इंग्लैंड के सर फ्रांसीसी गाल्स ने 1869 में प्रतिभाशाली बालकों पर वंश परंपरा का असर है या नहीं ? पर अध्ययन किया। इसी प्रकार 1906 मे वार्ड ने अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला की प्रतिभा पर वंशानुक्रम (inheritance) नहीं बल्कि वातावरण (environment) का प्रभाव अधिक होता है, किंतु गाल्स के अनुसार व्यक्ति की बुद्धि तथा अन्य प्रकार की मानसिक योग्यताओं पर उनके वंशानुक्रम का ही प्रभाव पड़ता है न कि वातावरण का।
ऐसे ही अमेरिका के मनोवैज्ञानिक मेटल ने 1910 में अपनी पुस्तक American Men of Science में वंशानुक्रम एवं वातावरण दोनों का समन्वय करते हुए परिणाम निकाला की बालकों के प्रतिभा के विकास पर वातावरण तथा वंशानुक्रम दोनों का प्रभाव पड़ता है।
प्रतिभाशाली बालक : अर्थ एवं परिभाषा
वह बालक जिसकी मानसिक आयु अपने जीवन की आयु के अनुपात में औसत से बहुत अधिक हो, उसे प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है।सिंपसन (Simpsons) तथा ल्यूकिंग (luking) ने प्रतिभाशाली बालक के विषय में लिखा है - "प्रतिभाशाली बालक वे हैं जिनका नाड़ी संस्थान श्रेष्ठ होता है। जिसके द्वारा वे ऐसे कार्य सफलता के साथ कर लेते हैं जिनमें उच्च स्तरीय बौद्धिक विचारशीलता या सर्जनात्मक कल्पना अथवा दोनों की आवश्यकता पड़ती है।"
अब्दुल रॉफ के अनुसार - "प्रायः उच्च बुद्धि लब्धि को प्रतिभाशाली होने का संकेत माना जाता है।" अतः प्रतिभाशाली बालक शब्द का अभिप्राय बालक की उच्च बुद्धि लब्धि से किया जाता है।
कॉलसनिक ने प्रतिभाशाली बालक के विषय में अपना मत दिया है - "प्रतिभाशाली शब्द को उस बालक के लिए प्रयोग किया जाता है जो वय वर्ग में किसी एक योग्यता में श्रेष्ठ होता है। उसे असाधारण रूप से हमारे समाज के जीवन के गुण तथा कल्याण के लिए योग देने वाला बनाता है।"
विटी के अनुसार - "प्रतिभाशाली शब्द को उनके लिए प्रयुक्त किया जा सकता है जिनके निष्पादन किसी मूल्यपरक क्रिया में संगत रूप मे उल्लेखनीय होते हैं।"
क्रो एवं क्रो के अनुसार -
१. प्रतिभाशाली बालक दो प्रकार के होते हैं। वे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती है और जो असाधारण बुद्धि वाले होते हैं।
२. वे बालक जो कला, गणित, संगीत, अभिनय आदि में से एक या अधिक में विशेष योग्यता रखते हैं।
किर्क - "प्रतिभाशाली बालकों में श्रेष्ठ योग्यता मानते हैं, जिसके द्वारा तथ्यों, विचारों तथा संबंधों के साथ कार्य को पूर्ण किया जाता है।"
हैविंग हर्स्ट - "जो निरंतर किसी कार्य क्षेत्र में कुशलता का परिचय देता है उसे प्रतिभाशाली बालक मानते हैं।"
उपयुक्त परिभाषाओं के आधार पर प्रतिभाशाली बालकों के विषय में निम्न तथ्य निकाले जा सकते हैं -
* 110 प्राप्तांक से अधिक बुद्धि लब्धि वाले बालक प्रतिभाशाली होते हैं।
* जिनका निष्पादन किसी मूल्यपरक क्रिया में उल्लेखनीय हो।
* जो स्वयं के भौतिक, नैतिक, सामाजिक, संवेगात्मक (emotional) एवं सौंदर्यात्मक पक्षों की वृद्धि एवं उन्नयन करते हैं।
* वह बालक जो अपने आयु स्तर के बालकों से हर क्षेत्र में उच्च योग्यता रखता हो।
* जो किसी भी क्षेत्र में निरंतर कार्य कुशलता का परिचय देता है।
* वह जिसके द्वारा तथ्यों, विचारों तथा संबंधों के साथ सफलतापूर्वक कार्य किया जाता हो।
प्रतिभा संपन्नता केवल बुद्धि लब्धि पर ही निर्भर नहीं है। सही मायने में देखा जाए तो सामान्य बुद्धि तथा विशिष्ट बुद्धि दोनों ही मिलाकर प्रतिभा संपन्नता का निर्माण करती है इसलिए प्रतिभाशाली बालक सामान्य कार्यों को सफलता के साथ संपन्न करता है तथा किसी एक क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य करता है जिसके कारण बालक किसी एक क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त कर लेता है। इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि सामाजिक प्रतिभा संपन्न, यांत्रिक प्रतिभा संपन्न, शारीरिक प्रतिभा संपन्नता, संप्राप्ति प्रतिभा संपन्न, कलात्मक प्रतिभा संपन्न आदि में से किसी एक प्रकार की प्रतिभा संपन्नता बालक में होती है।
एक प्रतिभाशाली बालक हर क्षेत्र में ही अपनी प्रतिभा प्रदर्शित नहीं कर सकता है। यह कार्य केवल उसी कार्य क्षेत्र में कर सकता है जिसमें उसकी विशिष्ट योग्यता अधिक होती है तथा जो सामान्य बुद्धि से उच्च सहसंबंध रखती है।
प्रतिभाशाली बालकों की पहचान identification of Gifted children
देश की उन्नति व प्रगति के लिए प्रतिभाशाली बालक की महती आवश्यकता होती है। देश में कुछ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि देश की प्रतिभाएं विदेशों में जाकर अपनी योग्यता को प्रकट कर रही है। अपने ज्ञान व योग्यता के द्वारा दूसरे देशों के विकास में सहयोग कर रहे हैं। किंतु देश में या तो उनका उचित सम्मान नहीं हो पाता या वह स्वयं विदेश जाने के इच्छुक रहते हैं। यह निश्चित है कि प्रतिभाशाली बालक राष्ट्र व समाज की अमूल्य निधि व संपत्ति है।अतः देश व समाज के लिए यह आवश्यक है कि वे इन प्रतिभाओं का उचित सम्मान करें तथा किसी भी प्रकार से उनका चयन करके उनके ज्ञान, योग्यता व क्षमता का समाज व राष्ट्र के हित में योगदान ले और इनका सुसमायोजन (good adjustment) करें।
जनशक्ति का सदुपयोग करने, राष्ट्र को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने के लिए यह आवश्यक है कि बालक की योग्यताओं का पता लगाकर उनका अधिकतम विकास किया जाए। प्रतिभाशाली बालक राष्ट्र व समाज की अमूल्य निधि व संपत्ति होते हैं इनका चयन करके उनकी प्रतिभाओं के पूर्ण निखार के प्रयास समाज व राष्ट्र को अपने हित में करना चाहिए।
यदि समाज व राष्ट्र इनकी ओर ध्यान नहीं देता है तो संभव है कि अनेक फूल मरुस्थल में अधखिले ही मुरझा जाए या वे फूल किसी देवता पर चढ़ने के स्थान पर किसी वेश्या के गजरे की शोभा बढ़ा दे। यदि इन्हें समुचित मार्गदर्शन मिल जाए और इनका सुसमायोजन हो जाए तो राष्ट्र की प्रगति में सहायक होते हैं और किन्हीं कारणों से इनका समायोजन ना हो पाए तो इनकी प्रतिभा संपन्नता राष्ट्र व समाज विरोधी कार्यों में लग सकती है।
अतः आवश्यक है कि प्रतिभाशाली बालकों की उचित मात्रा में पहचान की जाए तथा उनके लिए समुचित शिक्षा की व्यवस्था की जाए जिससे वह अपनी प्रतिभाओं का पूर्ण विकास कर राष्ट्र व समाज के उपयोगी सदस्य बन सके।
प्रतिभाशाली बालकों का चयन तथा पहचान करने के लिए निम्नलिखित विधियां काम में लाई जाती है -
1 टिप्पणियां
Nice points this
जवाब देंहटाएं