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भारतीय राजनीति में एक दल के प्रभुत्व का दौर

इस आर्टिकल में एक दलीय प्रभुत्व प्रणाली क्या है, भारतीय राजनीति में एक दल के प्रभुत्व का दौर कब से शुरू हुआ, भारत में एक दल प्रभुत्व के दौर की समाप्ति किस वर्ष हुई मानी जाती है के बारे में चर्चा की गई है।

प्रथम आम चुनाव (Frist General Election) में 14 राष्ट्रीय दल तथा 60 राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त दल थे।

द्वितीय आम चुनाव 1957

  • केरल में CPI गठबंधन सरकार बनी।
  • एम एस नंबूदरीपाद मुख्यमंत्री बने।
  • अनुच्छेद 356 के अंतर्गत बर्खास्त।
  • दुनिया में पहला अवसर जब CPI की सरकार लोकतांत्रिक चुनाव के जरिए बनी।
  • आपातकालीन शक्ति का प्रथम बार प्रयोग।
चुनावकुल सिटेंपार्टीप्राप्त सिटेंस्थान
1st आम चुनाव 1952489कॉग्रेस364प्रथम
CPI16द्वितीय
2nd आम चुनाव 1957494कॉग्रेस371प्रथम
CPI27द्वितीय
3rd आम चुनाव 1962494कॉग्रेस361प्रथम
CPI20द्वितीय

सोशलिस्ट (समाजवादी) पार्टी

  • 1934 में युवा नेताओं की एक टोली के रूप में गठित
  • 1948 में कांग्रेस के समाजवादियों ने पार्टी बनाई
  • संस्थापक : आचार्य नरेंद्र देव
  • लोकतांत्रिक समाजवाद की विचारधारा में विश्वास
  • विभाजन : किसान मजदूर पार्टी -> प्रजा सोशलिस्ट -> सयुक्त सोशलिस्ट
  • चुनाव चिन्ह : प्रथम – वटवृक्ष ; बाद में हल
  • प्रथम और द्वितीय आम चुनाव में तीसरे स्थान पर
  • प्रमुख नेता : जे पी नारायण, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, लोहिया, जोशी।

कांग्रेस के एक दल के प्रभुत्व के दौर की तरह ही मेक्सिको में इंस्टिट्यूशनल रिवोल्यूशनरी (PRI) पार्टी ने भी 60 वर्ष तक शासन किया। दक्षिण अफ्रीका में भी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस का भारतीय कांग्रेस की तरह ही दबदबा रहा।

कांग्रेस अपनी स्थापना के समय व्यापारिक वर्गों का एक हित समूह थी। बाद में एक विचारात्मक गठबंधन, गुटों में तालमेल और सहनशीलता इसकी विशेषता है।

कांग्रेस प्रणाली (Congress System)

1952-1962 ; भारतीय राजनीति के इस कालखंड को कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर कहा जाता है क्योंकि राजनीतिक होड कांग्रेस के भीतर ही चलती थी और इस काल में शासक दल और विपक्षी दल दोनों की भूमिका निभाई।

उस समय कांग्रेस मंत्रिमंडल में विपक्षी नेता डॉ. भीमराव अंबेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। जयप्रकाश नारायण ने मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया।

प्रथम आम चुनाव 1952 में त्रावणकोर-कोचिंन, मद्रास, उड़ीसा, पैप्सु आदि राज्यों में विधान मंडल में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, परंतु सरकार बनाने में सफल।

तृतीय आम चुनाव 1962 में बहुलसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र को समायोजित कर उसके स्थान पर एक सदस्य निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था की गई। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दल का भेद समाप्त।

प्रथम आम चुनाव 1952 में 45% मतदाताओं ने मतदान में भाग लिया। कांग्रेस को 45% मत तथा 70% सीटें हासिल। सोशलिस्ट पार्टी मत हासिल करने के लिहाज से दूसरे स्थान पर 10% मत मिले।

रफी अहमद किदवई : उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी नेता नेहरु के पहले मंत्रिमंडल में संचार मंत्री ; खाद्य एवं कृषि मंत्री रहे।

राजकुमारी अमृत कौर : कपूरथला के राज परिवार में जन्म, माता से ईसाई धर्म विरासत में मिला, संविधान सभा में ईसाई प्रतिनिधि, प्रथम नेहरू के कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री, सबसे लंबी अवधि तक लगातार एक ही विभाग का कार्यभार।

द्वितीय आम चुनाव 1967 में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं थी। मौलाना अबुल कलाम जो हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतिपादक तथा विभाजन विरोधी थे।

एन के गोपालन

  • केरल के कम्युनिस्ट (Communist) नेता
  • राजनीतिक जीवन का आरंभ कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में
  • 1939 में CPI में शामिल
  • 1964 में विभाजन के बाद CPI (M) में शामिल
  • सांसद के रूप में विशेष ख्याति, 1952 से सांसद है।

भारतीय जनसंघ पार्टी

  • गठन 1951 में।
  • संस्थापक अध्यक्ष : श्यामा प्रसाद मुखर्जी
  • “एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र” के विचार पर जोर
  • हिंदी को राजभाषा बनाने के आंदोलन में अग्रणी
  • धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियायत देने का विरोध
  • भारत भी अपने आणविक हथियार तैयार करें बात की पैरोकारी की
  • चुनाव चिन्ह : दीपक
  • BJP की जड़े इसी जनसंघ में है।
  • प्रमुख नेता : दीनदयाल उपाध्याय, बलराज मधोक।

दीनदयाल उपाध्याय

  • जन संघ के महासचिव व अध्यक्ष रहे।
  • समग्र मानवतावाद सिद्धांत (Humanistic Holistic Theory) के प्रणेता
  • जनसंघ के संस्थापक सदस्य
  • RSS के पूर्णकालिक सदस्य

श्री राजगोपालाचारी

  • स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल (Governor General) (1948-50)
  • आजादी के बाद अंतरिम सरकार में मंत्री
  • मद्रास के मुख्यमंत्री बने (1950)
  • भारत रत्न से सम्मानित पहले भारतीय
  • स्वतंत्र पार्टी (1959) के संस्थापक

स्वतंत्र पार्टी

  • गठन : 1959 में।
  • चुनाव चिन्ह : तारा।
  • कांग्रेस पार्टी से अलग होकर बनी है।
  • आर्थिक मसलों पर अन्य पार्टियों से भिन्न; उदारवादी विचारधारा।
  • पक्षधर : सरकार का अर्थव्यवस्था में कम हस्तक्षेप, समृद्धि सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता में, निजी क्षेत्र को खुली छूट, USA के नजदीकी संबंध बनाने।
  • विरुद्ध : आर्थिक रुप से कमजोर वर्गों के हित में कराधान, कृषि में जमीन की हदबंदी, सहकारी खेती और खाद्यान्न व्यापार पर सरकारी नियंत्रण।
  • गुटनिरपेक्षता की नीति और सोवियत संघ (Soviet Union) से दोस्ताना रिश्ते के विरुद्ध।
  • प्रमुख नेता : के एम मुंशी, एन जी रंगा, मीनू मसानी, राजगोपालाचारी।

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां

  • अनेकता में एकता स्थापित करने की चुनौती।
  • लोकतंत्र बनाए रखने की चुनौती।
  • सभी वर्गों के विकास की चुनौती।

सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने अपने को स्वतंत्र रखने की घोषणा कि। अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने घोषणा की। उस समय कुल रजवाड़ों की संख्या 565 थी।

इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेषन : रजवाड़ों द्वारा भारतीय संघ में विलय की सहमति।

हैदराबाद का विलय

  • निजाम के खिलाफ किसान और महिलाओं का आंदोलन
  • कम्युनिस्ट और हैदराबाद कांग्रेस आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में
  • निजाम द्वारा अर्धसैनिक बल ‘रजाकार’ भेजकर अत्याचार किए
  • सैनिक कार्यवाही और 1948 में हैदराबाद का भारत में विलय।

मणिपुर का विलय

  • महाराजा बौधचंद्र सिंह द्वारा विलय हेतु सहमति पत्र पर हस्ताक्षर
  • मणिपुर की सहायता का आश्वासन
  • जनमत के दबाव में सार्वभौमिक मताधिकार द्वारा जून 1948 में चुनाव
  • मणिपुर प्रथम प्रांत जहां मताधिकार के आधार पर आम चुनाव हुए और मणिपुर विधानसभा का गठन हुआ
  • विधानसभा से बगैर परामर्श लिए महाराजा पर दबाव डालकर समझौते पर हस्ताक्षर करवा कर मणिपुर का भारतीय संघ में विलय

जूनागढ़ का विलय

  • जूनागढ़ का मुस्लिम शासक पाकिस्तान में मिलना चाहता था।
  • राज्य की जनता द्वारा शासन के विरुद्ध विद्रोह।
  • भारतीय सेना द्वारा कार्यवाही और जनमत संग्रह के आधार पर 20 जनवरी 1949 को जूनागढ़ का सौराष्ट्र में विलय कश्मीर का विलय।

कश्मीर का विलय : अक्टूबर 1947 में विलय पत्र हस्ताक्षर करके भारत में मिलाया।

राज्यों का पुनर्गठन

सर्वप्रथम सन 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में तय किया गया कि राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर किया जाए।

मद्रास : तेलुगु भाषी लोगों के लिए नया राज्य आंध्र प्रदेश की मांग के समर्थन में कांग्रेस और गांधीवादी नेता श्री रामलुपोट्टी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर और मृत्यु। आंदोलन हिंसक हो गया। 1952 में प्रधानमंत्री द्वारा आंध्र प्रदेश की घोषणा।

1993 में फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन।

कार्य : भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन /सीमांकन करना। 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित और 14 राज्य 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए।

फजल अली आयोग की सिफारिशें

  • केवल भाषा और संस्कृति के आधार पर ही पुनर्गठन नहीं
  • राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तीय एवं प्रशासनिक आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए
  • ABC वर्ग के राज्यों को समाप्त कर 16 राज्य, 3 संघ क्षेत्र की सिफारिश
राज्य का नामस्थापना वर्षटिप्पणी
आंध्र प्रदेश1 अक्टूबर 1953स्वतंत्र भारत का प्रथम राज्य, भाषाई आधार पर गठन
महाराष्ट्र, गुजरात1 मई 1968मुंबई प्रांत से अलग करके, भाषाई आधार पर गठन
नागालैंड1962नागा आंदोलन के कारण
पंजाब-हरियाणा1966भाषाई आधार पर
हिमाचल प्रदेश1971संघ क्षेत्र था, पूर्ण राज्य का दर्जा
मेघालय-मणिपुर-त्रिपुरा1972मेघालय को असम से अलग करके
मिजोरम-अरुणाचल-गोवा1986पूर्ण राज्य का दर्जा
सिक्किम197522वां राज्य बना
गोवा1987
छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंडनवंबर 2000
तेलंगाना2014आंध्र प्रदेश से अलग करके

नए राज्यों की मांग

विदर्भमहाराष्ट्र
पश्चिमी उत्तर प्रदेशहरित प्रदेश
रायलसीमाआंध्र प्रदेश
पूर्वी उत्तर प्रदेशपूर्वांचल
उदयाचलअसम
पश्चिमी बंगालगोरखालैंड
बोडोलैंडअसम
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेशबुंदेलखंड

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. एक दलीय प्रभुत्व प्रणाली क्या है?

    उत्तर : एक दलीय प्रभुत्व प्रणाली में किसी देश में केवल एक ही दल की प्रधानता होती है। वह दल अपने प्रभुत्व में रहता है।
    जिस शासन व्यवस्था में शासन की नीतियों पर केेेवलव एक ही राजनीतिक पार्टी का नियंत्रण हो और सरकार की नीति-निर्धारण में भी वहीं राजनीतिक दल प्रभुुत्व रखता हो, तो वह प्रणाली एक दलीय प्रभुत्व कहलाती है। इस व्यवस्था में अन्य राजनीतिक पार्टी भी हो सकते हैं परंतु इन पार्टीयों का शासन की नीतियों या चुनाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

  2. कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर का कालखण्ड है?

    उत्तर : भारत में कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर का कालखण्ड 1952-1967 है।

  3. भारत में एक दल की प्रधानता का युग कब से शुरू हुआ?

    उत्तर : भारत में एक दल की प्रधानता का युग 1952 से शुरू हुआ।

  4. भारत में एक दलीय प्रभुत्व के दौर का रहने का कारण क्या था?

    उत्तर : क्योंकि विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एक दलीय प्रभुत्व का कारण था।

  5. भारत में एक दल प्रभुत्व के दौर की समाप्ति किस वर्ष हुई मानी जाती है?

    उत्तर : भारत में एक दल प्रभुत्व के दौर की समाप्ति वर्ष 1967 हुई मानी जाती है?

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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