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रूसो का सामाजिक समझौता सिद्धांत | सामान्य इच्छा का सिद्धांत

इस आर्टिकल में रूसो का सामाजिक समझौता या सामान्य इच्छा का सिद्धांत क्या है, मानव स्वभाव, प्राकृतिक अवस्था, राज्य का स्वरूप, समझौते का कारण और महत्व आदि के बारे में चर्चा की गई है।

रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धांत क्या है

15वीं शताब्दी के फ्रांसीसी विचारक रूसो (Rousseau) को लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत का जनक माना जाता है। प्राकृतिक अवस्था विषयक उसके विचार Discourse on Arts and Science तथा Discourse on the Origin of Inequality में मिलते हैं। जबकि सामाजिक संविदा या समझौते के विषय में उसकी कृति Social Contract में जानकारी मिलती है। रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धांत को सामान्य इच्छा का सिद्धांत भी कहा जाता है।

हॉब्स और लॉक के समान रूसो के द्वारा इस सिद्धांत का प्रतिपादन किसी विशेष उद्देश्य से नहीं किया गया था, लेकिन रूसो ने जिस प्रकार से अपने सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, उससे वह प्रजातंत्र (Democracy) का अग्रदूत बन जाता है।

रूसो के अनुसार मानव स्वभाव (Human Nature)

रूसो अपनी पुस्तक सामाजिक समझौता (Social Contract) में लिखता है, “मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, किंतु वह सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ है।” इस वाक्य में रूसो इस तथ्य का प्रतिपादन करता है कि “मनुष्य मौलिक रूप से अच्छा है और सामाजिक बुराइयां ही मानवीय अच्छाई में बाधक बनती है।”

रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य स्वाभाविक रूप से अच्छा, सुखी, सीधा, चिंता रहित, स्वस्थ, शांतिप्रिय और एकांतप्रिय था। स्वार्थ साधना की भावना के अलावा परोपकार और दया की भावना भी उसमें होती थी। उसमें तेरे मेरे की भावना नहीं होती है और न उसमें भविष्य के लिए धन इकट्ठा करने की लालसा ही होती थी। उसकी आवश्यकताएं असीमित होती है उसे पाप पुण्य से कोई सरोकार नहीं होता और वह अपने मे सुखी होता है।

रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था (Natural State)

प्राकृतिक अवस्था के व्यक्ति के लिए रूसो ‘आदर्श बर्बर’ (Noble Savage) शब्द का प्रयोग करता है। यह आदर्श बर्बर अपने में ही इतना संतुष्ट था कि न तो उसे किसी साथी की आवश्यकता थी और न किसी का अहित करने की उसकी इच्छा थी। इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति एक भोले और अज्ञानी बालक की भाँति सादगी और परम सुख का जीवन व्यतीत करता था।

इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था पूर्ण स्वतंत्रता एवं समानता और पवित्र तथा कपट रहित जीवन की अवस्था थी, परंतु इस प्राकृतिक अवस्था में विवेक का नितांत अभाव था।

रूसो के अनुसार प्रकृति का नियम जो इस अवस्था में उसके व्यवहार को नियंत्रित करता था यह था, यह था कि “अपने हित को देखो, किंतु दूसरों की कम से कम सम्भव हानि हो।”

संक्षेप में प्रकृति की यह अवस्था आदर्श सुख की अवस्था थी। रूसो के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में स्वाभाविक रूप से स्वतंत्र और पशुतुल्य था। परंतु सामाजिक व्यवस्था ने उसे परतंत्र बना दिया। रूसो का मत है कि, “मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है फिर भी प्रत्येक स्थान पर वह बंधनों से जकड़ा है।”

रूसो के अनुसार सामाजिक समझौते के कारण

प्राकृतिक अवस्था आदर्श अवस्था थी, लेकिन कुछ समय बाद ऐसे कारण उत्पन्न हुए जिन्होंने इस अवस्था को दूषित कर दिया। कृषि के आविष्कार के कारण भूमि पर स्थायी अधिकार और इसके परिणामस्वरुप संपत्ति तथा तेरे मेरे की भावना का विकास हुआ। जब प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक भूमि पर अधिकार करने की इच्छा करने लगा तो प्राकृतिक शांतिमय जीवन नष्ट हो गया और समाज की लगभग वही दशा हुई जो हॉब्स की प्राकृतिक दशा में थी।

संपत्ति को समाज की स्थापना के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए रूसो लिखता है कि “वह पहला व्यक्ति समाज का वास्तविक जन्मदाता था जिसने एक भू-भाग को बाड़े से घेरकर कहा कि ‘यह मेरी भूमि है’ और जिसे अपने इस कथन के प्रति विश्वास करने वाले सरल व्यक्ति मिल गए।”

इस प्रकार प्राकृतिक दशा का आदर्श रूप नष्ट होकर युद्ध और विनाश का वातावरण उपस्थित हो गया और संघर्ष के वातावरण का अंत करने के लिए व्यक्तियों ने पारस्परिक समझौते द्वारा समाज की स्थापना का निश्चय किया।

रूसो के अनुसार राज्य का स्वरूप

रूसो के अनुसार इस समझौते से व्याप्त अराजकता और असुरक्षा की व्यवस्था समाप्त हो जाती है और राज्य की उत्पत्ति होती है जो ‘सामान्य इच्छा’ (General Will) का प्रतिनिधित्व करती है। समझौते से व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित नहीं होती इसके विपरीत वह सामान्य इच्छा के निर्देशों के अनुसार कार्य कर वास्तविक दृष्टि से स्वतंत्रता का उपयोग करता है।

रूसो का सामाजिक समझौता /सामान्य इच्छा

इस स्थिति से छुटकारा प्राप्त करने के लिए सभी व्यक्ति एक स्थान पर एकत्रित हुए और उनके द्वारा अपने संपूर्ण अधिकारों का समर्पण किया गया। किंतु अधिकारों का यह संपूर्ण समर्पण किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं वरन संपूर्ण समाज के लिए किया गया।

समझौते के परिणामस्वरुप संपूर्ण समाज की एक सामान्य इच्छा (General Will) उत्पन्न होती है और सभी व्यक्ति इस सामान्य इच्छा के अंतर्गत रहते हुए कार्यरत रहते हैं। स्वयं रूसो के शब्दों में, समझौते के अंतर्गत “प्रत्येक अपने व्यक्तित्व और अपनी पूर्णशक्ति के सामान्य प्रयोग के लिए, सामान्य इच्छा के सर्वोच्च निर्देशक के अधीन समर्पित कर देता है तथा एक समूह के रूप में अपने व्यक्तित्व तथा अपनी पूर्णशक्ति को प्राप्त कर लेता है।”

इस प्रकार के हस्थानांतरण से सभी पक्षों को लाभ है। इस प्रकार रूसो के समझौते द्वारा उस लोकतंत्रीय समाज की स्थापना होती है जिसके अंतर्गत संप्रभुता (Sovereignty) संपूर्ण समाज में निहित होती है और यदि सरकार सामान्य इच्छा के विरुद्ध शासन करती है तो जनता को ऐसी सरकार को पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त होता है।

समझौते के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से अपनी संपूर्ण स्वतंत्रता, अधिकार और शक्ति समाज को सौंपता है और समझौते के बाद निर्मित समाज के अविभाज्य अंग होने के नाते पुनः सामूहिक रूप से प्राप्त कर लेता है।”

सामाजिक समझौता दो पक्षों के मध्य संपन्न हुआ प्रथम पक्ष व्यक्तिगत जीवन का और दूसरा पक्ष उनके सामूहिक जीवन का। अतः व्यक्तिगत रूप से जो कुछ गंवाते थे उसे पुनः समझौते रूप में प्राप्त कर लेते थे। रूसो ने यह घोषणा की कि समझौते के दौरान मनुष्य अपने समस्त अधिकार किसी व्यक्ति विशेष को नहीं वरन संपूर्ण समाज को सौंपता है और स्वयं लाभ अर्जित करता है।

रूसो के अनुसार सामाजिक समझौता पूर्ण रूप से एकता की भावना पर आधारित था इसमें सबका स्थान सामान था क्योंकि रूसो कहता है, “प्रत्येक व्यक्ति सबके हाथों में अपने आप को समर्पित करते हुए किसी के भी हाथों में समर्पित नहीं होता।”

समझौते के परिणामस्वरूप किसी सरकार की स्थापना नहीं होती इसलिए रूसो ने सामाजिक समझौते को स्वीकार किया राजनीतिक समझौते को नहीं।

रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धांत की आलोचना

रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धांत की निम्नलिखित आधार पर आलोचना की जा सकती है :

(1) अस्पष्ट एवं जटिल : रूसो का सिद्धांत नितांत अस्पष्ट, जटिल एवं साधारण व्यक्ति की समझ से परे है। रूसो ने व्यक्ति को प्रजा और नागरिक दोनों का रूप प्रदान किया है। राज्य की सत्ता के अधीन होने के कारण वह प्रजा और राज शक्ति का एक भाग होने के कारण वह नागरिक है।

इसी प्रकार रूसो की विचारधारा के अनुसार जब किसी व्यक्ति को दंडित किया जाता है तो उसे दंड उसकी अपनी ही इच्छा से मिलता है। ये बातें साधारण व्यक्ति की समझ से परे तो है ही साथ ही बुद्धिमान व्यक्तियों को भी हास्यास्पद प्रतीत होती है।

(2) राजसत्ता निरंकुश व स्वेच्छाचारी : रूसो के समझौते में व्यक्ति अपनी संपूर्ण स्वतंत्रता और अधिकार समाज को सौंप देता है। इस प्रकार व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकार रह ही नहीं जाते और समझौते के परिणामस्वरुप निर्मित सामान्य इच्छा सर्वशक्तिशाली हो जाती है। इस प्रकार निरंकुश व स्वेच्छाचारी राजसत्ता को जन्म मिलता है।

(3) समझौता विरोधाभासी है : रूसो के अनुसार समझौता व्यक्ति के व्यैक्तिक तथा सामाजिक पक्ष में होता है लेकिन जब समाज ही नहीं था तो व्यक्ति का सामाजिक पक्ष कहां से आया। यह विरोधाभास है जो समझौते की धारणा को असंगत बताता है।

वाह्न का कथन है कि, “यदि हॉब्स के मानव देव (लेवियाथन) का शीश काट दिया जाए तो वह रूसो की सामान्य इच्छा होगी।”

रूसो के सामाजिक समझौता का महत्व

उपर्युक्त आलोचनाओं के होते हुए भी रूसो के राजनीतिक दर्शन को अमरभेंट प्रदान की है। उसके दर्शन में जनता की सत्ता, अधिकार और शक्ति का सबसे प्रबल समर्थन मिलता है।

फ्रांस की क्रांति बहुत कुछ सीमा तक रूसो के विचारों का परिणाम थी और अमेरिकी संविधान के निर्माताओं ने भी रूसो से प्रेरणा ग्रहण की।

रूसो ने जनसंप्रभुता (Popular Sovereignty) के विचार को बल दिया। रूसो ने सर्वोच्च इच्छा (लोकतंत्र) और सर्वोच्च विवेक (पूर्णसत्तावाद) को मिलाकर भ्रांति पैदा कर दी है।

अतः जहां लोकतंत्र के समर्थक रूसो के लोकप्रिय प्रभुसत्ता के सिद्धांत को इतना महत्व देते हैं वहींं पूर्णसत्तावाद के समर्थक भी उसके असीम संप्रभुता के सिद्धांत को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं।

रूसो ने सामाजिक समझौता सिद्धांत के अन्य समर्थकों के समान राज्य को एक कृत्रिम संगठन सिद्ध करने के बजाय एक प्राकृतिक संगठन सिद्ध किया।

रूसो के सामाजिक समझौता या रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धांत संबंधित वीडियो डॉ. ए के वर्मा 👇

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. रूसो की प्रसिद्ध पुस्तक सामाजिक समझौता कब प्रकाशित हुई थी?

    उत्तर : रूसो की प्रसिद्ध पुस्तक सामाजिक समझौता (Social Contract) 1762 ईस्वी में प्रकाशित हुई थी।

  2. मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है किंतु सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ है यह कथन किसका है?

    उत्तर : मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है किंतु सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ है यह कथन जे जे रूसो का है। रूसो ने अपनी पुस्तक सामाजिक समझौता (Social Contract) में यह विचार प्रकट किया था।
    इस वाक्य में रूसो इस तथ्य का प्रतिपादन करता है कि “मनुष्य मौलिक रूप से अच्छा है और सामाजिक बुराइयां ही मानवीय अच्छाई में बाधक बनती है।”

  3. जनसंप्रभुता (Popular Sovereignty) के विचार को बल दिया था?

    उत्तर : जे जे रूसो ने जनसंप्रभुता (Popular Sovereignty) के विचार को बल दिया था।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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