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अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा

इस आर्टिकल में अभिप्रेरणा का अर्थ, अभिप्रेरणा की परिभाषा, अभिप्रेरणा के स्त्रोत, मैसलो का आवश्यकता सोपानिक सिद्धांत, अभिप्रेरणा चक्र, आवश्यकता चालक और प्रोत्साहन का संबंध, प्रेरक का अर्थ एवं परिभाषा, अभिप्रेरकों का वर्गीकरण (अभिप्रेरकों के प्रकार) आदि के बारे में चर्चा की गई है।

अधिगम प्रशिक्षण एवं अनुभव द्वारा प्राप्त व्यवहारों में स्थाई परिवर्तन है लेकिन अधिगम क्रियाओं का प्रारंभ किस रूप में किया जाए कि छात्र अधिगम के प्रतिक्रियाशील रह सके, यह प्रश्न अति महत्वपूर्ण है। बालकों को अधिगम के लिए कैसे तैयार किया जाए इस पर विचार किया जाना आवश्यक है।

कई बार छात्रों में योग्यता व रुचि होने पर भी वे अधिगम की ओर प्रेरित नहीं हो पाते इसके लिए विद्यालयों में ऐसे लक्ष्यो को निर्धारित करना अपेक्षित है जिससे छात्रों के प्रति सक्रिय हो सके और अधिगम के प्रति भी क्रियाशील हो सके।

अभिप्रेरणा से आप क्या समझते हैं

वास्तव में वे प्रयास या तत्व जो छात्र को अधिगम के प्रति प्रेरित करते हैं अभिप्रेरणा (Motivation) कहलाते हैं। प्रेरणा या अभिप्रेरणा एक आंतरिक शक्ति (Internal Power) है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए उत्तेजित करती है और यह व्यवहार का आधार भी है।

व्यवहार से संबंधित प्रश्न ‘क्यों’ क्या है कि कोई व्यक्ति ऐसा व्यवहार क्यों करता है और यही ‘क्यों’ हमें प्रेरणा के समीप ले जाता है।

अभिप्रेरणा का अर्थ अभिप्रेरणा के अंग्रेजी शब्द Motivation की उत्पत्ति लेटिन भाषा की Motum धातु से हुई है जिसका अर्थ है : Move, Motor तथा Motion. उत्पत्ति के आधार पर प्रेरणा का अर्थ किसी कार्य को करना है।

कोई भी उत्तेजना जो किसी क्रिया का संपादन करें, प्रेरणा है क्योंकि बिना उत्तेजना के व्यक्ति कोई कार्य नहीं करता है। इस रुप में प्रेरणा एक आंतरिक शक्ति है जो किसी कार्य को करने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करती है।

क्रेच एवं क्रच फील्ड ने प्रेरणा को ‘क्यों’ से संबंधित माना है। हम काम क्यों करते हैं ? खाना क्यों खाते हैं ? धनार्जन क्यों करते हैं ? आदि सभी प्रश्न प्रेरणा से संबंधित हैं।

अभिप्रेरणा क्या है, इसे जानने के लिए इससे संबंधित परिभाषाओं पर विचार करना अभीष्ट है।

अभिप्रेरणा की परिभाषा

एच डब्ल्यू बर्नार्ड के अनुसार, “अभिप्रेरणा उन समस्त प्रत्त्तयों की ओर संकेत करती है जिसमें विशिष्ट लक्ष्यों के प्रति क्रिया की उत्तेजना समाहित रहती है जहां इससे पूर्व इन लक्ष्यों के प्रति किंचित अथवा कोई भी गती नहीं थी।”

मैकडोनाल्ड (M.C. Donald) के अनुसार, “अभिप्रेरणा व्यक्ति के अंदर होने वाला शक्ति परिवर्तन है जो भावात्मक जागृति एवं पूर्वानुमान उद्देश्य प्रतिक्रियाओं द्वारा वर्णित होता है।”

जॉनसन के अनुसार, “अभिप्रेरणा सामान्य क्रियाओं का प्रभाव है जो प्राणी के व्यवहार की ओर संकेत करता है और उसका मार्ग निर्देशन करता है।”

गुड के अनुसार, “क्रिया को उत्तेजित करने, जारी रखने और नियंत्रित रखने की प्रक्रिया को अभिप्रेरणा कहते हैं।”

अभिप्रेरणा (Motivation) से संबंधित उपयुक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार को जागृत या संचालित करती है। इस रूप में अभिप्रेरणा क्रियाशीलता की द्योतक होती है साथ ही यह किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए एक साधन है, साध्य नहीं है। यह भावात्मक जागृति, उत्तेजना और संवेगो से जुड़ी हुई होती है। किसी भी उत्तेजना को प्रेरणा कहा जा सकता है। उत्तेजना के अभाव में कोई भी प्रतिक्रिया संपादित नहीं होती है।

उत्तेजना बाह्य और आंतरिक दोनों प्रकार की हो सकती है किंतु मनोविज्ञान में आंतरिक उत्तेजना को अति महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इस पर हमारा व्यवहार आश्रित होता है। इस दृष्टि से प्रेरणा आंतरिक शक्ति है जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है। अतः कहा जा सकता है :

  • अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार को उत्तेजित करती है और उसे स्पष्ट करती है व संचालित करती है।
  • अभिप्रेरणा क्रियाशीलता को प्रकट करती है।
  • अभिप्रेरणा साध्य तक पहुंचने का साधन है स्वयं साध्य नहीं है।
  • अभिप्रेरणा वह शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दशा है जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है।
  • अभिप्रेरणा अधिगम में सहायक होती है अतः यह अधिगम की सहायक है, प्रमुख नहीं।

अभिप्रेरणा के स्त्रोत (Source of Motivation)

प्रेरणा के स्वरूप अथवा प्रकृति को निर्मित करने वाले कुछ संबंद्ध प्रत्यय : आवश्यकता, चालक, उद्दीपन और प्रेरक है जिन्हें प्रेरणा के स्त्रोत कहा जा सकता है। इन पर निम्न रूप से विचार किया जा सकता है :

(1) आवश्यकताएं (Needs)

प्रत्येक व्यक्ति की कुछ महत्वपूर्ण आवश्यकताएं होती है जो उसे किन्हीं व्यवहारों को करने के लिए उत्तेजित करती है। भोजन, पानी, काम, आराम आदि व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकताएं हैं जिन पर व्यक्ति का जीवन आधारित रहता है।

अतः यदि इन आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है तो उसके शरीर में तनाव अथवा असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। आवश्यकता की संतुष्टि होने के पश्चात शरीर का तनाव दूर हो जाता है।

बोरिंग, लैैंगफील्ड एवं वील्ड के अनुसार, “आवश्यकता शरीर की कोई जरूरत या अभाव है जिसके कारण शारीरिक असंतुलन या तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस तनाव में ऐसा व्यवहार उत्पन्न करने की प्रवृत्ति होती है जिससे आवश्यकता के फलस्वरुप उत्पन्न होने वाला असंतुलन समाप्त हो जाता है।”

मैंसलो, मेर, कैरोल आदि मनोवैज्ञानिकों ने आवश्यकताओं को अनेक रूपों में विभाजित किया है। उदाहरणार्थ :

मैसलो का आवश्यकता सोपानिक सिद्धांत :

मैस्लो ने व्यक्ति की पांच आवश्यकताएं गिनाई हैं और इन्हें सोपानानुसार वर्गीकृत किया है, जो इस प्रकार है : इसमें सर्वप्रथम दैहिक आवश्यकताएं और सबसे बाद में आत्मसंबंधीकरण की आवश्यकताएं हैं। इनमें शारीरिक एवं सुरक्षा की आवश्यकताएं निम्नस्तरीय है और संबद्धता, सम्मान एवं आत्म-वास्तविकरण की आवश्यकताएं उच्च स्तरीय

हैं।

  • दैहिक आवश्यकताएं (Physiological Needs) : इनमें भूख, प्यास, काम आदि लिया है।
  • सुरक्षा आवश्यकताएं (Safety Needs) : इनमें सुरक्षा, स्थायित्व आदि को रखा है।
  • प्रेम या संबंद्धता आवश्यकताएं (Belongingness or Love Needs) : प्रेम, संबंधन आदि इसमें आते हैं।
  • सम्मान की आवश्यकताएं (Esteem Needs) : पद, प्रतिष्ठा, आत्मसम्मान आदि इसमें आते हैं।
  • आत्म-वास्तविकरण या संबंधीकरण आवश्यकताएं : आत्म-संबंधीकरण की आवश्यकता इससे संबंधित है।

इन्हें निम्न आरेख द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :

मैसलो का आवश्यकता सोपानिक सिद्धांत
मैसलो का आवश्यकता सोपानिक सिद्धांत

अधिगम के लिए आवश्यक है कि अध्यापक छात्रों की आवश्यकताओं को जानकर उनकी संतुष्टि करने का प्रयास करें जिससे तनाव की स्थिति न होने पाए। मुरे ने 24 आवश्यकताएं गिनाई है।

(2) चालक (Drivers)

आवश्यकता चालक को जन्म देती है अर्थात व्यक्ति की आवश्यकताएं उनसे संबंधित चालकों को जन्म देती है। शरीर की आवश्यकताएं तनाव उत्पन्न करती है और यही अवस्था चालक है।

उदाहरणार्थ : भोजन की आवश्यकता भूख चालक तथा पानी की आवश्यकता प्यास नामक चालक को जन्म देती है। वुडवर्थ एवं ड्रिवर आदि मनोवैज्ञानिकों ने कुछ मुख्य शारीरिक चालकों का वर्णन किया है और बताया है कि ये जन्म से प्रत्येक व्यक्ति के कुछ व्यवहारों को बिना सीखे ही नियंत्रित एवं प्रचालित करते रहते हैं। उनकी पूर्ति के बिना व्यक्ति जीवित ही नहीं रह सकता। भूख-प्यास आदि ऐसे ही चालक हैं जो भोजन एवं पानी जैसी आवष्यकताओं से संबंधित है।

बोरिंग, लैैंगफील्ड एवं वील्ड ने चालकों की परिभाषा इस प्रकार दी है, “चालक शरीर की आंतरिक क्रिया या दशा है जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए उत्तेजना प्रदान करती है।”

इस प्रकार चालक तनाव या क्रियाशीलता की अवस्था है जो किसी आवश्यकता द्वारा उत्पन्न होता है। चालक व्यक्ति के व्यवहार को एक निश्चित दिशा की ओर अभिप्रेरित करते हैं।

(3) प्रोत्साहन (Incentive)

प्रोत्साहन व्यक्ति के व्यवहार को उद्दीप्त करते हैं। ये व्यक्ति की आवश्यकताओं को संतुष्टि देते हैं। आवश्यकता चालक को जन्म देती है और जिस तत्व द्वारा चालक की संतुष्टि होती है उसे प्रोत्साहन कहा जाता है।

उदाहरणार्थ : भूख एक चालक है और भूख चालक को भोजन संतुष्ट करता है अतः भूख चालक के लिए भोजन एक प्रोत्साहन है जो व्यक्ति की शारीरिक कमी या तनाव को दूर करता है। इस रूप में प्रोत्साहन किसी विशेष प्रकार की अनुक्रिया से संबंधित होते हैं जो आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

बोरिंग, लैैंगफील्ड एवं वील्ड ने प्रोत्साहन को इस रुप में परिभाषित किया है, “प्रोत्साहन की परिभाषा उस वस्तु स्थिति अथवा क्रिया के रूप में की जा सकती है, जो व्यवहार को उद्दीप्त, उत्साहित और निर्देशित करता है।”

अर्थात प्रोत्साहन व्यक्ति के व्यवहार को उद्दीप्त निर्देशित एवं उत्साहित करता है।

अभिप्रेरणा चक्र (Motivation Cycle) – आवश्यकता – प्रेरणा – उत्तेजना – लक्ष्य उन्मुखी व्यवहार – उपलब्धि – उत्तेजना में कमी।

आवश्यकता चालक और प्रोत्साहन का संबंध

आवश्यकता चालक और प्रोत्साहन परस्पर एक दूसरे से संबंधित हैं। हिलगार्ड के अनुसार, “आवश्यकता चालक को जन्म देती है, चालक बढ़े हुए तनाव की दशा है, जो कार्य और प्रारंभिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है। प्रोत्साहन बाह्य वातावरण की कोई वस्तु होती है, जो आवश्यकता को संतुष्ट करती है और इस प्रकार क्रिया के द्वारा चालक को कम कर देती है।”

संक्षेप में “आवश्यकता-चालक-प्रोत्साहन” सूत्र द्वारा हिलगार्ड ने इनके परस्पर संबंध को स्पष्ट किया है।

उदाहरणार्थ : भोजन की आवश्यकता भूख चालक के जन्म का कारण है, पानी की आवश्यकता प्यास चालक की उत्पत्ति का कारण है और जिस वस्तु से यह आवश्यकता संतुष्ट होती है वह प्रोत्साहन है। इस रूप में तीनों परस्पर संबंधित हैं।

अर्थात आवश्यकता चालक को जन्म देती है, चालक क्रिया अथवा व्यवहार को जन्म देते हैं और  प्रोत्साहन चालक को प्रवाहित करते हैं।

प्रेरक क्या है (Motives)

अभिप्रेरणा (Motivation) से ही संबंधित एक संप्रत्यय प्रेरक है। प्रेरक अति व्यापक शब्द है जिसमे आवश्यकता, तनाव, चालक व प्रोत्साहन सभी समाहित हो जाते हैं। ऐसा कोई भी तत्व जो व्यक्ति के व्यवहार को जन्म देता है एवं किसी एक निश्चित दिशा में मोड़ता है – प्रेरक होता है।

इस प्रकार प्रेरक एक प्रकार बल होता है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी विशेष प्रकार की अनुक्रिया अथवा व्यवहार करने के लिए उत्तेजित होता है। इस प्रकार प्रेरक एक व्यक्ति के व्यवहार को निर्देशित करते हैं और उसे क्रियाशील बनाते हैं।

प्रेरक की परिभाषाएं

गेट्स एवं अन्य के अनुसार, “प्रेरकों के विभिन्न स्वरूप हैं। इनको विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे : आवश्यकताएं, इच्छाएं, तनाव, स्वभाविक स्थितियां, निर्धारक प्रवृतियां, आदत, रूचियां, स्थाई उद्दीपक तथा इसी प्रकार के अन्य नाम।”

वुडवर्थ के मत में, “अभिप्रेरक व्यक्ति की यह दशा है जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।”

कुछ विद्वान प्रेरकों को जन्मजात मानते हैं तो कुछ के मत में यह शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दशा है। कुछ विद्वान प्रेरकों को निश्चित दिशा में कार्य करने की प्रवृत्ति मानते हैं। यद्यपि सभी विद्वान प्रेरकों को एक प्रकार के बल के रूप में देखते हैं जो व्यक्ति को किसी विशेष प्रकार के व्यवहार करने के लिए उत्तेजित करता है।

प्रेरकों को विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने अनुसार वर्गीकृत किया है जिनमें थॉमसन, मैसलों एवं थॉमस के वर्गीकरण प्रमुख है।

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इनके विभेद निम्न हैं :

अभिप्रेरणा का वर्गीकरण

थॉमसन का वर्गीकरणजन्मजात अभिप्रेरक और अर्जित अभिप्रेरक
मैस्लो का वर्गीकरणजन्मजात अभिप्रेरक और अर्जित अभिप्रेरक
थॉमसन का वर्गीकरणसुरक्षा, प्रतिक्रिया, प्रतिष्ठा और नवीन अनुभव
अभिप्रेरणा का वर्गीकरण

अभिप्रेरको के प्रकार (Types of Motives)

इन सभी के वर्गीकरण को मोटे रूप में निम्नानुसार दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है : स्वभाविक अभिप्रेरक तथा कृत्रिम अभिप्रेरक।

स्वाभाविक अभिप्रेरक (Natural Motives)

स्वाभाविक अभिप्रेरकों को जन्मजात अभिप्रेरक भी कहा जाता है। इनका प्रयोग व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में नित्य करता है और यह सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं। यह हमारे जीने के लिए आवश्यक है इसलिए इन्हें स्वभाविक अभिप्रेरक कहा जाता है। भूख, प्यास, काम, निंद्रा, क्रोध, विश्राम आदि स्वभाविक अभिप्रेरक है।

कृत्रिम अभिप्रेरक (Artificial Motives)

कृत्रिम अभिप्रेरक से तात्पर्य उन अभिप्रेरकों से है जिन्हें व्यक्ति अपने वातावरण से प्राप्त करता है। ये अभिप्रेरक स्वाभाविक अभिप्रेरकों के सहायक होते हैं। अथवा यह कहा जा सकता है कि स्वाभाविक अभिप्रेरक कृत्रिम अभिप्रेरकों के साधन के रूप में प्रयुक्त किए जा सकते हैं।

दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। स्वभाविक अभिप्रेरकों को सफलता दिलाने में कृत्रिम अभिप्रेरक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अर्थात बालक के अनुचित अभिप्रेरकों को परिवर्तित करके उन्हें वांछित दिशा प्रदान करने में कृत्रिम अभिप्रेरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

कृत्रिम अभिप्रेरकों के दो प्रकार हैं : व्यक्तिगत एवं सामाजिक। इन अभिप्रेरकों में रूचि, आदत, आत्मरक्षा, दंड, पुरस्कार, प्रशंसा, निंदा आदि आते हैं। इन्हें निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट समझा जा सकता है।

👉 अभिप्रेरक व्यवहार को शक्तिवान एवं स्थायित्व प्रदान करते हैं।

👉 प्रेरक हमारे व्यवहार को संचालित करते हैं।

👉 प्रेरक हमारे व्यवहार के चयनकर्ता होते हैं – प्रेरित व्यवहार किसी उत्तेजना विशेष के प्रति ही प्रतिक्रिया करने को तत्पर होते हैं अर्थात एक विशिष्ट दिशा में ही प्रेरित व्यवहारों का संचालन होता है। किस अवस्था में व्यक्ति कैसा व्यवहार करेगा यह भी चयनित होता है।

जैसे – समाचार पत्र में अनेक विषय होते हैं किंतु प्रत्येक पाठक अपनी रुचि के विषय का ही चयन सर्वप्रथम करता है। एक बेरोजगार व्यक्ति आवश्यकता के कॉलम को सर्वप्रथम देखेगा जबकि राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए तद् विषयक जानकारी को प्राथमिकता मिलेगी।

अभिप्रेरकों के प्रकार
अभिप्रेरकों के प्रकार

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. अभिप्रेरण का अर्थ क्या है?

    उत्तर : वे प्रयास या तत्व जो छात्र को अधिगम के प्रति प्रेरित करते हैं अभिप्रेरणा (Motivation) कहलाते हैं। प्रेरणा या अभिप्रेरणा एक आंतरिक शक्ति (Internal Power) है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए उत्तेजित करती है और यह व्यवहार का आधार भी है।

  2. प्रेरको को जन्मजात और अर्जित में वर्णित करने वाले विद्वान कौन है?

    उत्तर : प्रेरको को जन्मजात और अर्जित में वर्णित करने वाले विद्वान थॉमसन और मैसलो है।

  3. स्वाभाविक अभिप्रेरकों के उदाहरण है।

    उत्तर : भूख, प्यास, काम, निंद्रा, क्रोध, विश्राम आदि स्वभाविक अभिप्रेरक है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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