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सोवियत संघ के विघटन के कारण और परिणाम : शीत युद्ध का अंत

इस आर्टिकल में सोवियत प्रणाली (Soviet System) क्या है, सोवियत प्रणाली के पतन के कारण, सोवियत संघ के विघटन के कारण, सोवियत संघ विघटन की परिणीतियां या परिणाम, साम्यवादी शासन के बाद शॉक थेरेपी (Shock Therapy) और शीत युद्ध का अंत आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

अगर हम शीत युद्ध के अंत (End of Cold War) के काल की बात करें तो यह काल 1985 से 1991 तक का माना जाता है, जिसकी शुरुआत 1985 के जिनेवा वार्ता से मानी जाती है। 1985 में जिनेवा में अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन (Reagan) तथा गोर्बाचेव (Gorbachev) के मध्य बहुपक्षीय मुद्दों पर सहमति बनी। उसके बाद विश्व शांति की दिशा में 1987 में गोर्बाचेव और रिगन के मध्य INF संधि पर हस्ताक्षर हुए।

9 नवंबर 1989 को शीत युद्ध का प्रतीक बर्लिन की दीवार को ध्वस्त कर दिया गया। 3 अक्टूबर 1990 को जर्मनी का एकीकरण हो गया। 1990 मेेेे WARSA और NATO केे मध्य संधि हुई और 1 जुलाई 1991 को WARSA PACT समाप्त कर दिया गया। सामरिक हथियारों की कटौती संबंधी स्टार्ट संधि (1991) सोवियत राष्ट्रपति गोर्बाचेव और जॉर्ज बुश के मध्य हस्ताक्षर हुए।

शीत युद्ध के अंत (End of Cold War) की सबसे बड़ी घटना के रूप में 1989 में पूर्वी जर्मनी की जनता द्वारा बर्लिन की दीवार को ढहाना माना जाता है, जिसकी परिणति दूसरी दुनिया के अंत और शीत युद्ध की समाप्ति के रूप में जानी जाती है।

आम जनता की सामूहिक कार्यवाही के दबाव के सोवियत खेमे में शामिल देशों ने साम्यवादी शासन बदलना शुरू कर दिया।

फ्रांसीसी फुकुयामा ने सोवियत संघ के विघटन को ‘इतिहास का अंत’ नाम दिया। फुकुयामा की पुस्तक End of the History and the Last Man है। फुकुयामा का कहना है कि उदार लोकतंत्र (Liberal Democracy) में कोई बुनियादी अंतर्विरोध नहीं होने के कारण उदार लोकतंत्र (अमेरिका/पूंजीवाद) जीत गया।

सोवियत प्रणाली (Soviet System) क्या है

सोवियत गणराज्य में बोल्शेविक क्रांति (Bolshevk Revolution) ने पूंजीवाद का विरोध व निजी संपत्ति का अंत कर समानता के सिद्धांत पर समाज के निर्माण हेतु कार्य करना। 1918 में बोल्शेविक दल का साम्यवादी दल (Communist Party) में परिवर्तन हुआ इसमे अन्य राजनीतिक दल के लिए कोई स्थान नहीं था।

लोहा आवरण नीति : द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ ने क्रांति के प्रचार हेतु उग्र नीति और साम्यवादी देशों को पश्चिमी के प्रभाव से बचाने के लिए अपनाई गई नीति।

सोवियत प्रणाली के पतन के कारण

  • कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही, नौकरशाही से आम जनता त्रस्त
  • कम्युनिस्ट पार्टी का एकाधिकार, आम लोगों के प्रति उत्तरदाई नहीं
  • लोकतंत्र एवं विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त
  • वास्तविक प्रभुत्व रूस का, अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा
  • प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में यूरोपीय देशों से पिछड़ जाना
  • 1979 में अफगानिस्तान हस्तक्षेप से अर्थव्यवस्था पर कुप्रभाव
  • शीत युद्ध के दौरान विश्व अर्थव्यवस्था पूंजीवादी तर्ज पर चली।

ग्लासनोस्त (Glasnost) नीति : अर्थ – खुलापन और राजनीतिक सुधार, स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति से है।

लक्ष्य : प्रबंधन को पारदर्शी और खुला बनाना। मिखाइल गोर्बाचेव 1985 में सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने। संघ की जीर्ण अर्थव्यवस्था ओर लोकतंत्र स्थापित करने के लिए यह नीति अपनाई गई। पश्चिमी देशों के साथ संबंध बनाने हेतु प्रयास भी किया गया।

पैरेस्त्रोइका (Perestroika) (पुनः संरचना) : राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली का पुनर्गठन, पुनर्निर्माण और आर्थिक सुधार की नीति अपनायी। इन नीतियों का कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा विरोध किया गया।

ग्लासनोस्त (Glasnost) नीति का परिणाम सर्वप्रथम लिथुआनिया में दिखाई दिया और आजादी के लिए आंदोलन प्रारंभ हो गया। 1989 में गोर्बाचेव ने घोषणा कि की वारसा संधि मे शामिल देश अपना भविष्य तय करने के लिए स्वतंत्र हैं।

फरवरी 1990 में सोवियत संसद ड्यूमा के लिए चुनाव हुए, गोर्बाचेव ने अन्य राजनीतिक दलों को चुनाव में भाग लेने का मौका दिया और वर्षों से चली आ रही एक दलीय पृथा समाप्त हो गई।

कम्युनिस्ट पार्टी की हार हुई। मार्च 1990 में लिथुआनिया (Lithuania) ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। जून 1990 में रूसी गणराज्य की संसद ने सोवियत संघ से अपनी आजादी की घोषणा की।

बोरिस येल्ट्सिन (Boris Yeltsin) रूस के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए। अगस्त 1991 में बाल्टिक गणराज्य एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया स्वतंत्र हुए।

दिसंबर 1991 में येल्ट्सिन के नेतृत्व में तीन बड़े गणराज्य रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने कोमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंस स्टेट (Commonwealth of Independent State) का गठन किया। रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना। सुरक्षा परिषद (Security Council) में स्थाई सदस्यता ग्रहण की।सोवियत संघ की सभी अंतरराष्ट्रीय संधियों को निभाने की जिम्मेदारी दी गई।

सोवियत संघ का विघटन 26 दिसंबर 1991 को हुआ। गोर्बाचेव ने इस्तीफा और 15 नए राज्यों का उदय।

15 नये राज्यों का उदय : आर्मेनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, स्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लाटविया, लिथुआनिया, मोल्दोवा, रूस, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन, उज़्बेकिस्तान।

21 दिसंबर 1991 को अर्मेनिया, अजरबैजान, कजाकिस्तान,किर्गिस्तान, मोल्दोवा, तुर्कमेनिस्तान, तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान के नेताओं ने अल्मा-अता प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर कर कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंस स्टेट में शामिल होने की सहमति प्रदान की।

हेलसिंकी सम्मेलन (Helsinki Conference) 1990 : बर्लिन की दीवार विध्वंस के बाद बुश और गोर्बाचेव के बीच हुआ जिसे 1945 में याल्टा वार्ता के समान बताया गया।

स्टार्ट संधि 1991: सामरिक आयुध न्यूनीकरण संधि, गोर्बाचेव-बुश के मध्य। एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया सितंबर 1991 में UNO के सदस्य बने। मार्च 2004 में NATO शामिल हुए।

सोवियत संघ के विघटन के कारण

  • जन असंतोष
  • कम्युनिस्ट (साम्यवादी पार्टी) की निरंकुशता
  • रूस का प्रभुत्व
  • आर्थिक संसाधनों का दुरुपयोग
  • गोर्बाचेव की ग्लास्नोस्त, उस्कोरेनी (त्वरण) और पेरेस्ट्रोइका नीति
  • अफगानिस्तान में हस्तक्षेप से अर्थव्यवस्था पर कुप्रभाव
  • पूर्वी देशों के विकास पर खर्च से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
  • राष्ट्रीयता और संप्रभुता की भावना का विकास (अंतिम और तात्कालिक कारण बना)
  • आत्मसातमीकरण नीतियां और प्रजातिय विखंडन

शीत युद्ध का अंत (End of Cold War)

  • क्षेत्रीय संघटनों की स्थापना
  • संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की सदस्य संख्या मे वृद्धि
  • जर्मनी का एकीकरण
  • गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) का अप्रासंगिक होना
  • अमेरिका अकेली महाशक्ति बन गई (एकल ध्रुवीय विश्व)
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली
  • विचारधारात्क लड़ाई का अंत
  • विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएं ताकतवर और सलाहकार बन गई
  • राजनीतिक रूप से उदारवादी लोकतंत्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबध करने की धारणा के रूप में उभरा
  • मध्य एशियाई देशों ने रूस के साथ मजबूत रिश्ते जारी रखें और पश्चिमी देशों तथा अन्य देशों के साथ संबंध बनाए।

साम्यवादी शासन के बाद शॉक थेरेपी (Shock Therapy)

रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूंजीवाद की ओर संक्रमण का विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित एक खास मॉडल शॉक थेरेपी (आघात पहुंचा कर उपचार करना) कहा गया।

विशेषता : मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व अर्थात :

  • राज्य संपदा का निजीकरण और व्यवसायिक स्वामित्व
  • सामूहिक फार्म निजी में बदले, पूंजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई
  • राज्य नियंत्रित समाजवाद/पूंजीवाद व्यवस्था – वित्तीय खुलापन और मुक्त व्यापार की नीति।

शॉक थेरेपी (Shock Therapy) के परिणाम

पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। जनता की बर्बादी हुई। औद्योगिक ढांचा चरमरा गया। 90% उद्योग निजी हाथों में चले गए। इसे ‘इतिहास की सबसे बड़ी गराज-सेल’ के नाम से जाना गया। रूस में 1500 बैंक और वित्तीय संस्थान दिवालीया हो गए। माफिया वर्ग का उदय हुआ।

चेकोस्लोवाकिया का विभाजन

शांतिपूर्वक दो भागों चेक और स्लोवाकिया में विभाजन हो गया। विद्वान इसे ‘मखमली विभाजन’ भी कहते हैं। क्योंकि चेकोसलोवाकिया का विभाजन युगोस्लाविया की तरह संघर्ष और गृह युद्ध जैसा नहीं, बल्कि शांतिपूर्वक हुआ था।

युगोस्लाविया का विभाजन

गहन संघर्ष और जातीय संघर्ष ने गृह युद्ध का रूप लेने पर नाटो के हस्तक्षेप के बाद विभाजन हुआ। बोस्निया, हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया, क्रोएशिया नए राज्य बने।

चेचन्या और दागीस्तान (रूसी गणराज्य) में हिंसक अलगाववादी आंदोलन, रुस द्वारा गैर जिम्मेदाराना और सैन्य बमबारी से हस्तक्षेप किया गया। तजाकिस्तान 10 वर्षों (2001 तक) गृह युद्ध की चपेट में रहा।

25 दिसंबर 1991 में गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। 26 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ की सुप्रीम सोवियत ने अपने अंतिम अधिवेशन में सोवियत संघ को समाप्त किए जाने का प्रस्ताव पारित कर स्वयं के भंग होने की घोषणा की। इस प्रकार शीत युद्ध के अंत के साथ ही सोवियत संघ का अस्तित्व समाप्त हो गया।

निकिता ख्रुश्चेव (1953-64) : पश्चिम के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का सुझाव दिया।

लिओनिड़ ब्रेझनेव (1964-1982) : सोवियत संघ के राष्ट्रपति रहे, एशिया की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का सुझाव दिया, अमेरिका के साथ तनाव में कमी के दौर से संबंध रहे। चेकोस्लोवाकिया के जन विद्रोह का दमन और अफगानिस्तान पर आक्रमण।

मिखाईल गोर्बाचोव 1985-91 तक राष्ट्रपति (अंतिम), जर्मनी के एकीकरण में सहायक, शीत युद्ध समाप्त किया।

बोरिस येल्ट्सिन : रूस के चुने हुए पहले राष्ट्रपति (1991-99), 1991 में संघ शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया, विघटन में केंद्रीय भूमिका निभाई, साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के दौर में आम जनता के कष्ट के लिए जिम्मेदार थे।

सोवियत संघ का विघटन का संवैधानिक कारण संबंधित डॉ. ए के वर्मा का वीडियो 👇

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के परिणाम स्वरूप कितने देशों का उदय हुआ?

    उत्तर : 1991 में सोवियत संघ के विघटन के परिणाम स्वरूप 15 नये राज्यों का उदय हुआ : आर्मेनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, स्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लाटविया, लिथुआनिया, मोल्दोवा, रूस, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन, उज़्बेकिस्तान।

  2. मिखाईल गोर्बाचेव द्वारा अपनाई गई दो प्रमुख नीतियों कौन थी?

    उत्तर : मिखाईल गोर्बाचोव द्वारा ग्लासनोस्त (Glasnost) नीति और पैरेस्त्रोइका (पुनः संरचना) की नीति अपनाई गई।

  3. सोवियत संघ के विघटन के बाद कौन सा देश अकेली महाशक्ति बन गया

    उत्तर : सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका अकेली महाशक्ति बन गई थी।

  4. सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के प्रथम राष्ट्रपति कौन बने थे?

    उत्तर : सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के प्रथम राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन बने थे।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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