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संप्रभुता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए

इस आर्टिकल में राजनीतिक अवधारणा संप्रभुता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन किया गया है।

संप्रभुता की प्रमुख विशेषताएं

संप्रभुता की प्रमुख विशेषताएं/लक्षण जैसे सर्वव्यापकता, पूर्णता या असीम, अपृथक्करणीय/अदेयता, स्थायित्व, अविभाज्यता आदि का विस्तार से वर्णन निम्न प्रकार से है –

सर्वव्यापकता (Universal)

राज्य के भीतर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति और राज्य में विद्यमान प्रत्येक संघ या समुदाय पर संप्रभु द्वारा निर्मित कानून बाध्यकारी है।

किसी राज्य के भीतर गुजरती हुई विदेशी सेनाएं, व्यापारिक प्रतिनिधि तथा राजनयिक को राज्य के अधिकार क्षेत्र से जो उन्मुक्तियां प्राप्त होती है वह अंतर्राष्ट्रीय शिष्टाचार का विषय है। प्रभुसत्ता के सिद्धांत का अपवाद नहीं।

कोई भी राज्य अपनी संप्रभुता के नाते किसी को ऐसी उन्मुक्ति प्रदान करने से मना कर सकता है। यह अतिरिक्त प्रदेशीय अधिकार क्षेत्र (Extra Territorial Jurisdiction) कहलाता है जो दूसरे देशों के राजदूतों को प्रदान किया जाता है। गिलक्राइस्ट (Gilchrist) ने इस सीमा का उल्लेख किया है। इसे राज्येतर संप्रभुता का सिद्धांत कहा जाता है।

आशीर्वादम के अनुसार, “इस स्थिति को कोई वास्तविक अपवाद नहीं मान सकते वरन यह तो एक अन्तर्राष्ट्रीय सौजन्य का विषय है। कोई भी राज्य संप्रभु होने के नाते इस प्रकार प्रदान किए गए विशेषाधिकार को देने से इंकार कर सकता है।”

पूर्णता/असीम (Absoluteness)

प्रभुसत्ता एक पूर्ण और असीम शक्ति है। यह किसी की इच्छा से बाधित नहीं है। राज्य के बाहर भी अपने राज्य के संदर्भ में उसे सर्वोच्च (Supreme) माना जाता है। अन्य कोई राज्य न तो उसके मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है, न उसे किसी बात के लिए विवश कर सकता है। यह विधि द्वारा भी अनियंत्रित है, क्योंकि विधि स्वयं इसकी कृति है।

हॉब्स के अनुसार, “संप्रभुता विधि द्वारा भी निलंबित नहीं है क्योंकि विधि संप्रभु की आज्ञा है।”

अंतर्राष्ट्रीय संधियां और समझौते प्रभुसत्ता को नष्ट नहीं कर देते क्योंकि कोई राज्य इन्हें अपनाने को बाध्य नहीं होता है ये तभी तक मान्य होते हैं जब तक संप्रभुता संपन्न राज्य उनका सम्मान करने को तैयार हो। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय अंतर्राष्ट्रीय कानून की व्याख्या तो कर सकता है परंतु उसे लागू करना उसके हाथ में नहीं है।

संप्रभुता का परंपरागत (Traditional) सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय कानून को कानून नहीं मानता क्योंकि वह किसी की इच्छा को व्यक्त नहीं करता।

अंतर्राष्ट्रीय कानून :- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्य राष्ट्र आपसी संबंधों को निभाते हुए जिन सिद्धांतों और विशेष नियमों को मान्यता देते हैं उसे ही अंतर्राष्ट्रीय कानून कहते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुख्य विषय :- शांति कानून (law of peace), युद्ध कानून (law of war) और तटस्थता कानून (neutrality law)

संप्रभुता का यह निरपेक्ष अथवा निरंकुश रूप सिद्धांत एवं कानून की दृष्टि से पूर्णतः सत्य होते हुए भी व्यावहारिक अनुभव मे असत्य भी हो सकता है।

वास्तविकता यह है कि इस धरती पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो पूर्ण रूप से स्वेच्छाचारी हो। निरंकुश से निरंकुश शासक की अपनी अनेक स्वाभाविक परंपराओं से सीमित होता है। शिक्षा, चरित्र, वातावरण और धर्म आदि का उनकी क्रियाओं पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।

अपृथक्करणीय/अदेयता (Inalienability)

प्रभुसत्ता पूर्ण और असीम होती है अतः यह किसी और को नहीं दी जा सकती है। प्रभुसत्ता को राज्य से प्रथक करने का अर्थ होगा राज्य का ‘अस्तित्व मिटाना’। प्रभुसत्ता को राज्य से निकाल देने पर वह राज्य नहीं रह पाएगा।

यदि कोई राज्य अपने अधिकार क्षेत्र का कोई हिस्सा किसी अन्य राज्य को सौंप देता है तो उस पर उसकी संप्रभुता समाप्त हो जाएगी और उस क्षेत्र पर दूसरे राज्य की प्रभुसत्ता स्थापित हो जाएगी। राज्य स्वयं को नष्ट किए बिना प्रभुसत्ता को स्थानांतरित नहीं कर सकता। जब कोई प्रभुसत्ताधारी सत्ता (Authority) का त्याग करता है तो ऐसी हालत में सरकार बदलती है, प्रभुसत्ता का स्थान नहीं बदलता वरन वहींं राज्य में ही निवास करती है।

संप्रभुता (Sovereignty) की इस विशेषता का रूसो ने पर्याप्त समर्थन किया है। रूसो के अनुसार, “शक्ति स्थानांतरित की जा सकती है पर इच्छा नहीं है।”

गार्नर के अनुसार, “राज्य अपने को नष्ट किए बिना प्रभुसत्ता को किसी दूसरे को नहीं सौंप सकता। प्रभुसत्ता को त्यागना आत्महत्या के समान है।”

लायवर (Laivre) का कहना है कि, “प्रभुसत्ता को उसी तरह स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है जैसे वृक्ष को उसके अंकुरित होने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। जैसे मनुष्य आत्महत्या के बिना अपना जीवन या व्यक्तित्व किसी अन्य को स्थानांतरित नहीं कर सकता।”

स्थायित्व (Permanence)

राज्य स्थायी है, संप्रभुता भी स्थाई है। राज्य के अस्तित्व में ही संप्रभुता का अस्तित्व है। दोनों को अलग अलग नहीं किया जा सकता। सत्ताधारी की मृत्यु या पद से त्यागपत्र देने से संप्रभुता का अंत नहीं होता वरन् वह दूसरे सत्ताधारी/सम्राट में स्थानांतरित हो जाती है। सरकार बदलने से राज्य और प्रभुसत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

अविभाज्यता (Indivisibility)

संप्रभुता पूर्ण और स्थाई है अतः इसे विभाजित नहीं किया जा सकता। यदि संप्रभुता को विभाजित कर दिया जाए तो राज्य का भी विभाजन हो जाएगा। जैसे – सोवियत संघ।

यदि संप्रभुता विभाजित है तो इसका मतलब है कि वहां एक से अधिक राज्यों का अस्तित्व है। राज्य के अंदर समूह, संस्थाएं जिस सत्ता का प्रयोग करती है वह संप्रभुता को अलग करके नहीं दी जाती वरन उसी की देन है।

संघीय व्यवस्था (Federal System) में प्रभुसत्ता संघ और इकाइयों में विभाजित नहीं होती बल्कि निर्दिष्ट विषयों के संबंध में उसके अधिकार क्षेत्र विभाजित होते हैं।

कलहन के अनुसार, “संप्रभुता एक समग्र वस्तु है इसे विभाजित करना इसे नष्ट करना है। राज्य में यह सर्वोच्च शक्ति (Supreme Power) है। हम अर्द्ध वृत्त या अर्द्ध त्रिभुज की तरह अर्द्ध संप्रभुता की बात नहीं कर सकते।”

किसी राज्य में दो संप्रभु (Sovereign) नहीं हो सकते। संघ (federal) राज्यों में प्रभुसत्ता संघ और इकाइयों में बंट नहीं जाती बल्कि निर्दिष्ट विषयों के संबंध में इसके अधिकार क्षेत्र बंट जाते हैं। यदि प्रभुसत्ता विभाजित है तो वहां एक से अधिक राज्यों का अस्तित्व है। गेटेल इसे राज्य के अस्तित्व का आधार तक कहते है।

बहुलवादियोंं (Pluralism) ने संप्रभुता की इस विशेषता का खुले रूप में विरोध किया है। लावेल (Lowell) के अनुसार, “एक ही प्रदेश में एक ही जनता के लिए अलग-अलग विषयों पर आज्ञा देने के लिए दो संप्रभु (Sovereign) रह सकते हैं।”

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. राज्य अपने को नष्ट किए बिना प्रभुसत्ता को किसी दूसरे को नहीं सौंप सकता। प्रभुसत्ता को त्यागना आत्महत्या के समान है। कथन किसका है?

    उत्तर : यह कथन गार्नर का है। जो संप्रभुता की अपृथक्करणीय/अदेयता (Inalienability) के लक्षण को प्रकट करता है।

  2. सरकार बदलने से राज्य और प्रभुसत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह कथन संप्रभुता की कौन-सी विशेषता को प्रकट करता है?

    उत्तर : सरकार बदलने से राज्य और प्रभुसत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह कथन संप्रभुता के स्थायित्व (Permanence) विशेषता को प्रकट करता है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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