हिंदी वर्ण परिचय | हिंदी व्याकरण एवं रचना

वर्ण परिचय – स्वर एवं व्यंजनों के प्रकार एवं उत्पत्ति स्थल

हिंदी में 44 वर्ण (मूलतः 52) है। 11स्वर और 33 व्यंजन। भाषा की सबसे छोटी ध्वनि वर्ण होती है। इस आर्टिकल में वर्ण परिचय के बारे में चर्चा की जाएगी।

स्वर किसे कहते हैं ?

ऐसी ध्वनियां जिनका उच्चारण करने में अन्य किसी ध्वनि की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, उन्हें स्वर कहते हैं। भाषा में स्वत: उच्चरित ध्वनियों को स्वर कहा जाता है। स्वर 11 होते हैं जो निम्न प्रकार हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। इन्हें 3 भागों में बांटा जा सकता है –

1. ह्सव – अ, इ, उ, ऋ

2. दीर्घ – आ, ई, ऊं

3. संयुक्त – ए, ऐ, ओ, औ

इन्हें अन्य 3 भागों में भी बांटा जा सकता है –

1. अग्र स्वर – इ, ई, ए, ऐ

2. मध्य स्वर – अ

3. पश्च स्वर – उ, ऊ, ओ, औ, ऑ, आ

स्वरों का उच्चारण स्थान – सभी स्वर सधोष और अल्पप्राण होते हैं।

अ,आ – कंठ्य

इ, ई – ताल्वय

उ, ऊ – ओष्ठ

ऋ – मूर्द्धन्य

ए, ऐ – कंठताल्वय

ओ, औ – कंठोष्ठ

व्यंजन किसे कहते हैं ?

जो ध्वनियां स्वरों की सहायता से बोली जाती है उन्हें व्यंजन कहते हैं। जब हम क बोलते हैं तो उसमें क् + अ मिला होता है। इस प्रकार व्यंजन स्वर की सहायता से ही बोला जाता है।

व्यंजनों की संख्या 33 है, जिन्हें तीन भागों में बांटा जाता है।

1. स्पर्शी या वर्गीय व्यंजन – यह 5 वर्गों में बंटे होते हैं।

क वर्ग – क्, ख्, ग्, घ्, (ङ्) – उच्चारण स्थान – कंठ्य

च वर्ग – च्, छ्, ज्, झ्, (ञ्) – उच्चारण स्थान – तालव्य

ट वर्ग – ट्, ठ्, ड्, ढ्, (ण्) – उच्चारण स्थान – मूर्धन्य

त वर्ग – त्, थ्, द्, ध्, (न्) – उच्चारण स्थान – दंतव्य

प वर्ग – प्, फ्, ब्, भ्, (म्) – उच्चारण स्थान – ओष्ठ्य

2. अंतस्थ व्यंजन – वर्गों के अंत में स्थित व्यंजन अंतस्थ व्यंजन कहलाते हैं। इनकी संख्या 4 होती है – य्, र्, ल्, व् । ये सघोष और अल्पप्राण होते हैं। इन्हें अर्द्ध स्वर या अर्द्ध व्यंजन भी कहा जाता है। य और व संघर्षहीन व्यंजन हैं।

इसका निर्माण इस प्रकार हुआ है –

इ + अ = य – उच्चारण स्थान – तालव्य

ऋ + अ = र – उच्चारण स्थान – मूर्धन्य

लृ + अ = ल – उच्चारण स्थान – दंतव्य

उ + अ = व – उच्चारण स्थान – दंतोष्ठय

3. उष्म व्यंजन – इन व्यंजनों की उच्चारण में हवा घर्षण के साथ बाहर निकलती है तथा गर्म हो जाती है। इसलिए इसे उस उष्म व्यंजन कहा जाता है। ये चार होते हैं श्, स्, ष्, ह् । इन्हें संघर्षी व्यंजन भी कहा जाता है। उष्म व्यंजन अघोष और महाप्राण होते हैं।

इसका निर्माण किस प्रकार हुआ है –

: + च = श – उच्चारण स्थान – ताल्वय

: + ट = ष – उच्चारण स्थान – मूर्धन्य

: + त = स – उच्चारण स्थान – दन्तव्य

: + अ = ह – उच्चारण स्थान – कंठ्य

• अन्य व्यंजन – 1. मिश्रित व्यंजन / संयुक्ताक्षर – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र

इसका निर्माण किस प्रकार हुआ है –

क् + ष = क्ष

त् + र = त्र

ज् + ञ = ज्ञ

श् + र = श्र

2. आगत व्यंजन – अन्य भाषाओं से आए हुए व्यंजन जैसे – ड़, ढ़। इन दो वर्णों से कोई भी शब्द प्रारंभ नहीं होता है। इन्हें द्विगुण या उत्क्षिप्त व्यंजन भी कहते हैं।

ड़ – सघोष, अल्पप्राण

ढ़ – सघोष, महाप्राण

अन्य आगत व्यंजन – अरबी फारसी से – क़, ख़, ज़, फ़, ब़, ग़

अंग्रेजी से – ऑ (अर्द्ध चन्द्रबिन्दु वाले)

• प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

ध्वनियों का उच्चारण करते समय प्रश्वास को रोककर उसे कई प्रकार से विकृत किया जाता है। इस प्रक्रिया को प्रयत्न कहते हैं। व्यंजन ध्वनियों का वर्गीकरण प्रमुख दो आधारों पर किया जाता है – प्रयत्न स्थान के आधार पर और प्रयत्न विधि के आधार पर। प्रयत्न दो प्रकार के होते हैं – अभ्यांतर प्रयत्न और बाहृय प्रयत्न।

I. अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण  –

कंठ से ऊपर तथा मुख और नासिका के अंदर तक किए जाने वाले प्रयत्न अभ्यांतर प्रयत्न कहलाते हैं। इन प्रयत्नों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है –

* स्पर्शी व्यंजन – के से म तक (कुल 25)

* स्पर्श संघर्षी व्यंजन – च, छ, ज, झ, फ, ब, ख, ग

* अनुनासिक व्यंजन – ङ, ञ, ण, न, म (कुल 5)

* पार्श्विक व्यंजन – ल

* लुण्ढित / प्रकम्पित व्यंजन – र

II. बाह्य प्रयत्न के आधार पर व्यंजन –

मुख और नासिका से बाहर तथा कंठ से नीचे किए जाने वाले प्रयत्न बाह्य प्रयत्न कहलाते हैं। वास्तव में यह अधिक अभ्यातर होते हैं। इस आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है –

* अघोष व्यंजन – जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वर यंत्र में कंपन नहीं होता वे अघोष कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला और दूसरा वर्ण तथा उष्म व्यंजन (‘ह’ नहीं) अघोष व्यंजन है। ये कुल 13 होते हैं। क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स

* सघोष या घोष व्यंजन – जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर यंत्र में कंपन होता है वे घोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा और पांचवां वर्ण, अंतस्थ व्यंजन और  ‘ह’ घोष व्यंजन है। ये कुल 20 होते हैं। ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह

III. प्रश्वास के आधार पर व्यंजन –

* अल्पप्राण व्यंजन – जिन व्यंजनों के उच्चारण में प्रश्वास की मात्रा कम निकलती है वे अल्पप्राण कहलाते हैैं।

प्रत्येक वर्ग का पहला तीसरा और पांचवां वर्ण अल्पप्राण है। इसके साथ ही अंतस्थ व्यंजन ( य, र, ल, व) अल्पप्राण होते हैं। सभी स्वर अल्पप्राण होते हैं। 19 व्यंजन अल्पप्राण होते हैं।

* महाप्राण व्यंजन – जिन व्यंजनों के उच्चारण में प्रश्वास की मात्रा अधिक लगती है वे महाप्राण व्यंजन कहलाते है।

प्रत्येक वर्ग का दूसरा, चौथा वर्ण और उष्म व्यंजन महाप्राण होते हैं। 14 व्यंजन महाप्राण हैं।

हिंदी वर्ण परिचय | हिंदी व्याकरण एवं रचना

नोट – शब्दकोश के अनुसार अनुस्वार और विसर्ग का स्वतंत्र वर्ण के रूप में प्रयोग नहीं होता। लेकिन संयुक्त वर्णों के रूप में इन्हें अ, आ, इ, ई……..ओ, औ के पहले स्थान मिलता है। जैसे – कं, क:, क, का, कि, की………को, कौन।

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प्लुत स्वर – जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता हो, किसी को पुकारने में या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे – राऽऽऽम, नाऽस्ति, ओ३म

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• अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q.1 मुलत: हिंदी में कुल कितने वर्ण हैं ?

Ans – मूल रूप से हिंदी में 52 वर्ण है। जिसमे 13 स्वर, 35 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन है।

Q. 2 हिंदी वर्णमाला में कुल कितने वर्ण हैं ?

Ans – हिंदी वर्णमाला में कुल 44 वर्ण है। जिसमे 11 स्वर तथा 33 व्यंजन है।

Q. 3. स्वर किसे कहते हैं ?

Ans – ऐसी ध्वनियां जिनका उच्चारण करने में अन्य किसी ध्वनि की सहायता की आवश्यकता नहीं होती उन्हें स्वर कहते हैं। भाषा में स्वत: उच्चरित ध्वनियों को स्वर कहा जाता है। स्वरों की कुल संख्या 11 है।

Q.4. व्यंजन किसे कहते हैं ?

Ans – जो ध्वनियां स्वरों की सहायता से बोली जाती है उन्हें व्यंजन कहते हैं। जब हम क बोलते हैं तो उसमें क्+ अ मिला होता है। इस प्रकार व्यंजन स्वरों की सहायता से ही बोला जाता है। व्यंजनों की कुल संख्या 33 है।

Q. 5. उत्क्षिप्त व्यंजन कौन-कौन से हैं ?

Ans – ड़ और ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाते हैं। यह व्यंजन अन्य भाषाओं से जैसे अरबी फारसी से आए हुए हैं। इन्हें आगत व्यंजन या द्विगुण व्यंजन भी कहा जाता है।

Q. 6. प्लुत स्वर किसे कहते हैं ?

Ans. जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता हो उसे प्लुत स्वर कहते हैं। किसी को पुकारने में या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे – ओ३म, नाऽस्ति

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