द्वितीय भाषा शिक्षण की विधियां – प्रत्यक्ष विधि
द्वितीय भाषा शिक्षण की प्रत्यक्ष विधि का मुख्य सिद्धांत यह है कि जिस प्रकार बालक सुनकर एवं अनुकरण के द्वारा मातृ भाषा सीख जाता है, उसी प्रकार वह दूसरी भाषा भी सीख सकता है। कहने का तात्पर्य है कि बातचीत और मौखिक अभ्यास द्वारा दूसरी भाषा सिखानी चाहिए। व्याकरण के नियम पर बिना बल दिए वास्तविक परिस्थितियों में भाषा के व्यवहारिक रूपों को सहज रूप से सिखाना ही प्रत्यक्ष विधि की विशेषता है।
इस विधि से व्याकरण अनुवाद विधि के दोष अपने आप दूर हो जाते हैं। व्याकरण की सहायता इस विधि में नहीं ली जाती है। जहां उसकी आवश्यकता पड़ती है और वहां भी उसके व्यवहारिक रूप पर ही बल दिया जाता है। अनुवाद का सहारा भी इस विधि में नहीं लिया जाता। दूसरी भाषा सिखाने में उसी भाषा का माध्यम अपनाया जाता है, अतः अनुवाद की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
इस विधि में चित्रों एवं शिक्षण सहायक सामग्रियों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। शब्दार्थ भी प्रयोग के माध्यम से ही बालकों को बता दिया जाता है। मातृभाषा का प्रयोग न के बराबर होता है। पाठ भी वास्तविक जीवन की परिस्थितियों जैसे परिवार, वेशभूषा, खान-पान, व्यवसाय, त्यौहार, उत्सव, रीति रिवाज, यात्रा आदि से संबंधित होते हैं।
बातचीत और मौखिक अभ्यासों के द्वारा शिक्षा प्रदान करने से उस भाषा के दो आधारभूत कौशलों – सुनने और बोलने को सीखने का पर्याप्त अवसर मिलता है तथा उस भाषा की ध्वनियों एवं उच्चारण से बालक सहज ही परिचित हो जाता है।
प्रत्यक्ष विधि के प्रतिपादकों का कहना है कि अनुभूति और अभिव्यक्ति में सीधा संबंध होना चाहिए, बीच में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। अतः शब्द का अर्थ उस शब्द के द्योतक वस्तु को प्रत्यक्ष दिखाकर ही समझाया जाता है। परन्तु इस विधि में कठिनाई यह है कि कुछ संज्ञा शब्दों जैसे पुस्तक, घड़ी, कलम गेंद, कागज, कुर्सी, मेज, लड़का-लड़की आदि का ज्ञान तो करा दिया जाता है पर भाववाचक शब्दों, विशेषणों एवं रचनात्मक शब्दों के ज्ञान में बड़ी कठिनाई होती है।
इस विधि में दूसरी कठिनाई यह है कि वाक्य संरचनाओं का भी पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं कराया जा सकता। प्रश्नोत्तर विधि द्वारा कुछ गिने चुने वाक्यों की संरचना तो बता दी जाती है पर सभी प्रकार की वाक्य संरचनाओं का ज्ञान कराना बहुत कठिन है।
द्वितीय भाषा शिक्षण की प्रत्यक्ष विधि की प्रमुख विशेषताएं
1. वस्तु और शब्द के मध्य सीधा संबंध स्थापित कर पढ़ाया जाता है।
2. प्रत्यक्ष विधि वार्तालाप पर बल देती है।
3. संज्ञा शब्दों के ज्ञान हेतु प्रत्यक्ष विधि सर्वोत्तम विधि है।
4. प्रत्यक्ष विधि के दोषों का निवारण बहुत कुछ हद तक सैनिक विधि या संघटनापरक विधि द्वारा हो जाता है।
5. प्रत्यक्ष विधि को प्राकृतिक विधि भी कहा जाता है।
6. प्रत्यक्ष विधि का सर्वप्रथम प्रयोग 1901 में फ्रांस में अंग्रेजी विषय के लिए हुआ।
7. प्रत्यक्ष विधि में बालक अनुकरण द्वारा दूसरी भाषा सीखता है।
8. प्रत्यक्ष विधि के जनक जॉन बेसडो को माना जाता है।
9. व्याकरण अनुवाद विधि के दोषों को प्रत्यक्ष विधि द्वारा दूर किया जा सकता है।
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द्वितीय भाषा शिक्षण की प्रत्यक्ष विधि के दोष
1. इसमें मातृभाषा का प्रयोग वर्जित है।
2. मौखिक कार्यों को प्रधानता दी जाती है।
3. संज्ञा शब्दों के अलावा अन्य जैसे सर्वनाम, विशेषणों, भाववाचक शब्दों, रचनात्मक शब्दों का ज्ञान नहीं होता है।
4. व्याकरण के नियमों का ज्ञान नहीं कराया जाता।
5. वाक्य संरचनाओं का पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं कराया जाता है।