हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में छायावाद (1918-1936) का उदय होने का का कारण वह है जो द्विवेदी युग के पतन का कारण है।
द्विवेदी युग के पतन के कारण (छायावाद के उद्भव के कारण)
- इतिवृत्तात्मकता
- उपदेशात्मकता
- नैतिकता
- स्थूलता (मोटी-मोटी बातें)
- प्रचारात्मकता
छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। - डॉ. नगेंद्र सिंह
छायावाद का नामकरण - मुकुटधर पांडे, लोचन प्रसाद पांडे ने यह नाम दिया।
छायावाद के आधार स्तंभ - जयशंकर प्रसाद (ब्रह्मा), सुमित्रानंदन पंत (विष्णु ), सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (महेश), महादेवी वर्मा।
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित कामायनी छायावाद युग का सबसे अच्छा प्रबंध काव्य है।
छायावाद की विशेषताएं
- सौंदर्य चेतना
- स्वानुभूति की प्रधानता
- कल्पना का चित्रण है
- प्रकृति का आलंबन और मानवीकरण चित्रण
- रहस्य चेतना
- मुक्तक एवं प्रबंधक काव्य
- भाषा - लाक्षणिक बिम्बात्मक
- नयें अलंकारों का प्रयोग
- छंद - मुक्तक छंद।
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्य के प्रमुख प्रवर्तक है। प्रतिनिधि एवं शीर्षस्थ महाकवि है। छायावादी कविता की अतिशय काल्पनिकता, सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम और शैली की लाक्षणिकता उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएं हैं।
जयशंकर प्रसाद की रचनाएं - काव्य - कामायनी, आंसू, झरना, प्रेम पथिक, कानन- कुसुम, लहर।
नाटक - चंद्रगुप्त, स्कंद गुप्त, अजातशत्रु, ध्रुव स्वामिनी, राजश्री
उपन्यास - कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण )
कहानी - आकाशदीप, पुरस्कार, मधुआ, गुंडा, छाया, प्रतिध्वनि, आंधी, इंद्रजाल, छोटा जादूगर।
जयशंकर प्रसाद को 'कामायनी' हेतु मंगला प्रसाद पारितोषिक दिया गया। कामायनी इसकी कालजयी कृति है। प्रसाद की प्रथम काव्य कृति उर्वशी (1909 ई.) है। प्रसाद की प्रथम छायावादी काव्य कृति झरना (1918 ई.)। प्रसाद की अंतिम काव्य कृति और सर्वाधिक प्रसिद्ध 'कामायनी' (1935) हैं।
कामायनी के पात्र - मनु, श्रद्धा, इड़ा। कामायनी प्रबंध काव्य कृति है।
प्रसाद जी की सबसे लंबी लिखी कविता 'प्रलय की छाया' व 'शेर सिंह का शस्त्र समर्पण' है।
जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध पंक्तियां -
पीयूष स्रोत सी वहां करो, जीवन के सुंदर समतल में। (कामायनी से उद्धृत)
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता है एक सहारा। (चंद्रगुप्त से उद्धृत)
दुर्दिन में आंसू बनकर वह आज बरसने आई। (आंसू कृति से उद्धृत)
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वंय प्रभा समुज्ज्वला
स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है - बढ़े चलो, बढें चलो। (चंद्रगुप्त से उद्धृत)
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
छायावादी रचनाकारों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने सबसे पहले मुक्तक छंद का प्रयोग किया। शोषित, उपेक्षित, पीड़ित और प्रताड़ित जन के प्रति उनकी कविता में गहरी सहानुभूति का भाव मिलता है। 'समन्वय' और 'मतवाला' पत्रिका का संपादन किया।
आधुनिक हिंदी कविता में मुक्तक छंद के प्रवर्तक निराला ही है।वेदांत दर्शन उनके काव्य का मूल स्वर है। निराला के काव्य में प्रकृति के सौंदर्य, श्रृंगार, संघर्ष, वेदना, राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना आदि विविध भावों की अभिव्यक्ति हुई है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रचनाएं - सर्वोच्च स्मृतिका, अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, नए पत्ते, सांध्य कंकाली, वेला, तुलसीदास, अपरा, अर्चना, अराधना, गीत गूंज, जूही की कली, राम की शक्ति पूजा (खण्ड और प्रबंध काव्य), सरोज स्मृति (शोकगीत), पंचवटी प्रसंग (गीती काव्य)
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रसिद्ध पंक्तियां -
मधुमेह आसमान से उतर रही है - प्रकृति चित्रण
धीरे-धीरे -धीरे । (संध्या सुंदरी)
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता।
देखा उसे मैं इलाहाबाद के पथ पर।
पूछेगा सारा गांव बंधु।
सोती थी सुहाग भरी
स्नेह-स्वप्न-मगन अमल कोमल तन तरूणी
जूही की कली दृग बंद किए, शिथिल पत्रांक में।
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत के बचपन का नाम गोसाई दास था। छायावादी काव्य के अग्र गण्य कवि थे। प्रकृति के प्रति उनका गहरा अनुराग था। इसे प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएं - पल्लव, गुंजन, ग्रंथि, वीणा, उच्छवास, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, अणिमा, वाणी, कला और बूढ़ा चांद, स्वर्ण धुली, रश्मिवध, चिदंबरा, लोकायतन, सत्यकाम।
- उच्छवास - पंत की प्रथम छायावादी काव्य कृति (1920 ई.) गुंजन - पंत की अंतिम छायावादी काव्य कृति (1932 ई.)
- सुवर्ण रजत शिखर - गीती काव्य।
- 'लोकायतन' तथा 'सत्यकाम' प्रसिद्ध प्रबंध काव्य
- चिदंबरा - पंत की चुनी हुई कविताओं का संग्रह है, जिसे भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।
- परिवर्तन - लंबी कविता
सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध पंक्तियां -
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूं लोचन?
उमड़ कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान।।
हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन?
जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन। (युगांत)
महादेवी वर्मा
नई समाज में शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की। जीवन के साधारण प्रसंगो को शब्द चित्रों में अंकित कर देना उनकी विशेषता है। महादेवी वर्मा सफल चित्रकार भी है। उनकी कविता में वेदना की प्रमुखता है। विद्वानों ने इन्हे आधुनिक युग की मीरा कहा है। इन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का भारत भारती पुरस्कार मिला है। इन्होंने 'चांद' पत्रिका का संपादन किया और हिंदी लेखकों की सहायतार्थ 'साहित्यकार संसद' नामक संस्था की स्थापना भी की।
महादेवी वर्मा की रचनाएं - काव्य - निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यागीत, दीपशिखा, यामा, निहार, रश्मि, नीरजा।
यामा संग्रह के लिए 1983 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।
महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध पंक्तियां -
मैं नीर भरी दु:ख की बदली।
तोड़ दो यह क्षितिज, मै भी देख लूं उस और क्या है?
जा रहे जिस पंथ से युग कल्प, उसको छोड़ गया है।