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सूक्ष्म शिक्षण | Micro Teaching in Hindi

इस आर्टिकल में सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching in Hindi) सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ, सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा, सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता, सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा, सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धांत आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा

Concept of Micro Teaching : आज तकनीकी का युग है जिसमें प्रत्येक क्षेत्र में गुणात्मक सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं, अध्यापन भी इससे अछूता नहीं है। सूक्ष्म शिक्षण का उद्देश्य शिक्षक प्रशिक्षण (Teacher Training) के क्षेत्र में छात्राध्यापकों को प्रभावशाली एवं योग्यतापूर्ण प्रशिक्षण देना है।

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) भी उसी की एक कड़ी है जिसमें विभिन्न शिक्षण कौशलों का अभ्यास सूक्ष्म शिक्षण द्वारा कराया जाता है। जिससे कि छात्र अध्यापक विद्यालय में जाकर विवेकपूर्ण शिक्षण कर सके। सूक्ष्म शिक्षण का कार्य शिक्षा की जटिल प्रक्रिया का सरलीकरण करके अध्यापन को सफल बनाना है।

सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी अवधारणा है जिसका उपयोग सेवा पूर्व एवं सेवारत अध्यापक दोनों ही प्रकार के अध्यापकों व्यवसायिक विकास के उन्नयन हेतु किया जा सकता है।

सूक्ष्म शिक्षण की शुरुआत 1961 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में शोधरत कीथ एचीसन द्वारा किया गया जिसमें यह विचार किया गया की छात्राध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए पाठ को VCR की सहायता से उसे पुनः दिखाया जाए तो इससे छात्राध्यापक और पर्यवेक्षक दोनों को ही प्रतिपुष्टि मिलेगी और इस रूप में अध्यापन में अपेक्षित सुधार लाए जा सकेंगे।

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रभाविता लाने एवं उनको कौशलों को सिखाने के लिए सूक्ष्म शिक्षण व्यवस्था को प्रभावी माना गया।

कक्षा शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक को अनेक कोशलों का उपयोग करना होता है। सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षक एक साथ क्रिया करके, शिक्षण के विभिन्न पक्षों को लघु रूप प्रदान कर अर्थात अलग अलग कौशलौं का अभ्यास करके शिक्षण की जटिलताओं को कम कर देता है।

इसमें छात्राध्यापक को अपने शिक्षण पर तुरंत प्रतिपुष्टि मिल जाती है। इसमें पाठ की अवधि कम की जाती है और पाठ का क्षेत्र भी संकुचित कर दिया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण विधि के जनक कीथ एचिसन को माना जाता है।

इसी प्रकार सूक्ष्म शिक्षण को एलन (Allen) ने ‘अवरोही शिक्षण विधा’ कहा है। सूक्ष्म शिक्षण छात्राध्यापकों के प्रशिक्षण क्षेत्र में एक नवाचार है जो उन्हें अपने पाठ की समाप्ति पर तुरंत इस तथ्य से अवगत कराता है कि उनका शिक्षण कैसा रहा, क्योंकि उन्हें तत्काल प्रतिपुष्टि मिल जाती है।

सारांश रुप में यह कहा जा सकता है कि सूक्ष्म शिक्षण में निम्न तत्त्व निहित हैं :

सूक्ष्म शिक्षण के घटक / तत्व

  • शिक्षण प्रक्रिया को अनेक व्यवहारों में विभक्त किया जा सकता है जिन्हें शिक्षण कौशल कहते हैं।
  • शिक्षण अनेक कौशलों का योग है जिन्हें नियंत्रित वातावरण में विकसित किया जाना संभव है।
  • शिक्षण प्रक्रिया को सरल प्रक्रिया में विभक्त कर उनके वांछित कौशलों को विकसित करता है और उन कौशलों को जोड़कर पूर्ण शिक्षण किया जा सकता है। जिससे शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।
  • इसमें पृष्ठपोषण दिया जाना संभव है। वीडियो टेप द्वारा अथवा पर्यवेक्षक द्वारा उसे पुनः सुधारा जा सकता है।
  • इसके द्वारा छात्राध्यापक के समय की बचत होती है।

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा

Meaning and Definition of Micro Teaching : सूक्ष्म शिक्षण प्रणाली में निपुणता पर बल दिया जाता है और प्राचीन अवधारणा की ‘शिक्षक जन्मजात होते हैं’ का खंडन करके इस अवधारणा पर आग्रह किया जाता है कि शिक्षक जन्मजात ही नहीं होता अपितु बनाए भी जा सकते हैं।

शिक्षण तकनीकी का इस बात पर आग्रह है कि अध्यापक प्रभावशाली ढंग से शिक्षण कराएं। इसी कारण शिक्षक व्यवहार में सुधार के लिए अनेक प्रविधियां आज प्रयुक्त की जा रही है। सूक्ष्म अध्यापन भी इसी प्रकार की प्रविधि है जिसके माध्यम से छात्राध्यापकों में प्रभावशाली शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा

D.W. Allen के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण सरलीकृत शिक्षण प्रक्रिया है जो छोटे आकार की कक्षा में कम समय में पूर्ण होती है।”

बुश (Bush) के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण की प्रविधि है जिसमें शिक्षक स्पष्ट रूप से परिभाषित शिक्षण कौशलों का प्रयोग करते हुए, ध्यानपूर्वक पाठ तैयार करता है। नियोजित पाठों के आधार पर 5 से 10 मिनट तक वास्तविक छात्रों के छोटे समूह के साथ अंतः क्रिया करता है जिसके परिणामस्वरुप वीडियो टेप पर प्रेक्षण प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।” (भारत की परिस्थितियों में वीडियो के स्थान पर मानवीय प्रेक्षकों की संस्तुति की गई है।)

क्लिफ्ट एवं अन्य के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण प्रशिक्षण की वह प्रविधि है जो शिक्षण अभ्यास को किसी कौशल विशेष तक सीमित करके तथा कक्षा के आकार एवं शिक्षण अवधि को घटाकर शिक्षण को अधिक सरल और नियंत्रित करती है।”

पैक एवं टकर के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी व्यवस्थित प्रणाली है जिसमें वीडियो टेप के माध्यम से विशिष्ट शिक्षण कौशलों की सूक्ष्मता से पहचान की जाती है तथा पृष्ठपोषण द्वारा शिक्षण कौशल में वृद्धि की जाती है।”

बीके पासी एवं ललिता के मत में, “सूक्ष्म शिक्षण वह प्रशिक्षण तकनीकी है जो अध्यापकों से यह अपेक्षा करती है कि वे किसी अवधारणा को थोड़े से शिक्षार्थियों के समक्ष कम समय में विशिष्ट कौशलों का प्रयोग करके पढ़ाएं।”

एलेन एवं ईव के अनुसार, “सूक्ष्म अध्यापन नियंत्रित अभ्यास का सत्र है जिसमें एक विशिष्ट अध्यापन व्यवहार का नियंत्रित दशाओं में सीखना संभव है।”

मैक कॉलन के अनुसार, “सूक्ष्म अध्यापन, अध्यापन अभ्यास से पूर्व कक्षागत क्षमताओं एवं कुशलताओं को प्राप्त करने का अवसर देता है।”

N.K.Gangira & Ajit Singh ने सूक्ष्म शिक्षण को इस रूप में परिभाषित किया है कि, “सूक्ष्म शिक्षण छात्राध्यापक के लिए एक प्रशिक्षण स्थिति है, जिसमें सामान्य कक्षा शिक्षण की जटिलताओं की एक समय में एक ही शिक्षण कौशल का अभ्यास करा कर, पाठ्य वस्तु को किसी एक सम्प्रत्यय तक सीमित करके, छात्रों की संख्या को 5 से 10 तक सीमित करके तथा पाठ की अवधि 5 से 10 मिनट करके शिक्षण अभ्यास कराया जाता है।

सूक्ष्म शिक्षण की उपर्यक्त परिभाषाओं के आधार पर सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में सूक्ष्म शिक्षण में एक-एक कौशल को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित करके प्रत्येक का बारीकी से प्रशिक्षण कराया जाता है। उनके लिए यह एक प्रशिक्षण विधि है जिसमें शिक्षण की जटिलताओं को सीमित किया जाता है अर्थात एक समय में एक ही शिक्षण कौशल का अभ्यास कराया जाता है।

इसमें छात्रों की संख्या सीमित होती है और पाठ की अवधि 5 से 10 मिनट की होती है। इस रूप में इस विधि द्वारा शिक्षण में निपुणता एवं कुशलता प्राप्त करने पर बल रहता है। यह अध्यापन के सिद्धांत पर आधारित है, क्योंकि इसके द्वारा छात्राध्यापक के अध्यापन में प्रतिपुष्टि द्वारा परिवर्तन लाया जा सकता है।

सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता

Need of Micro Teaching : सेवा पूर्व और सेवारत अध्यापक की अध्यापन प्रक्रिया में सुधार लाने की दृष्टि से सूक्ष्म अध्यापन एक अच्छी विधि है, क्योंकि आज शिक्षा के क्षेत्र में अनेक नवाचार हो रहे हैं कि कम समय में कैसे कुशल शिक्षक तैयार किए जा सकें।

सूक्ष्म शिक्षण कार्यक्रम द्वारा प्रशिक्षणार्थियों को प्रारंभ में ही आत्मविश्वास भरते हुए शिक्षण कार्य कराया जाता है और छोटी अवधि में ही वे अध्यापन की बारीकियों को जानकर कुशलतापूर्वक अध्यापन कार्य करने के लिए उद्यत हो जाते हैं।

अतः सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता निम्न दृष्टि से है :

(1) शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले नवाचारों से शिक्षा जगत को भिज्ञ कराना जिससे प्रशिक्षणार्थी आत्मविश्वास के साथ कम समय में शिक्षण कौशलों का आयोजन कर सके।

(2) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा वास्तविक छात्रों के स्थान पर सहपाठी छात्राध्यापक ही कक्षा के छात्र हो जाते हैं इससे महाविद्यालयों को किसी विद्यालय पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। इस परेशानी से उऋण होने के लिए सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता है।

(3) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा अध्यापन में निहित जटिलताओं को सरलीकृत करने में सहायता मिलती है और कम समय में प्रत्येक कौशल में दक्षता अर्जित की जा सकती है। इस रूप में समय और शक्ति दोनों की बचत होने के कारण सूक्ष्म शिक्षण महाविद्यालयों के लिए आवश्यक है।

(4) सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता इस रूप में भी है कि इसके द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया जाता है। अध्यापक पढ़ाते समय वीडियो टेप आदि का प्रयोग कर सकता है और इससे वह अपने अध्यापन में रहने वाली कमियों को पुनः पन: अभ्यास करके सुधार सकता है।

(5) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा अध्यापकों को तुरंत प्रतिपुष्टि मिल जाती है अतः कुशल अध्यापकों का निर्माण कराने में एवं अध्यापन व्यवसाय संबंधी कौशलों के विकास में सूक्ष्म शिक्षण आवश्यक है।

(6) सूक्ष्म शिक्षण में एक समय में एक कौशल में प्रवीणता प्राप्त करने के लिए अध्यापक को अभ्यास करने का अवसर दिया जाता है और अध्यापक अपनी गति से उस कौशल को जब तक प्राप्त नहीं कर लेता तब तक अभ्यास करता रहता है। इस रूप में शिक्षण में कुशलता प्राप्त करने के लिए सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता होती है।

संक्षेप में एक शिक्षक को अपने शिक्षण में गुणात्मक सुधार लाने के लिए सूक्ष्म शिक्षण की महती आवश्यकता है।

सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धांत

सूक्ष्म शिक्षण शिक्षण विधि के पांच आधारभूत सिद्धांतों का वर्णन एलेन (Allen) और रियान (Riyan) ने 1969 में किया जो निम्न है :

(1) यथार्थ शिक्षण (Real Teaching)

यद्यपि सूक्ष्म शिक्षण कृत्रिम स्थिति में होता है फिर भी इसमें यथार्थ अथवा वास्तविक शिक्षण होता है, क्योंकि छात्राध्यापक यथार्थ पाठ्यक्रम को यथार्थ रूप में पढ़ते हैं पढ़ाते हैं। इसके उपरांत यह भी सच है कि कौशल सीखने की तुलना में पाठ्यवस्तु का महत्व प्राय: कम ही होता है।

(2) शिक्षण की जटिलताओं की कमी (Reduction Complexity of Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण में साधारण कक्षा शिक्षण की जटिलताओं को कम कर दिया जाता है अर्थात इसमें कक्षा का आकार, पाठ्यवस्तु, समय, भूमिका एवं कौशल सभी को इतना कम कर दिया जाता है कि प्रशिक्षणार्थी नियंत्रित रहते हैं। एक समय में वे एक ही कौशल का अभ्यास करते हैं इसमें सामान्य शिक्षण की जटिलताएं कम हो जाती है।

(3) विशिष्ट शिक्षण कौशलों का विकास (Development of Specific Teaching Skills)

सूक्ष्म अध्यापन में एक विशिष्ट शिक्षण कौशल के सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है अर्थात एक समय में एक विशेष शिक्षण कौशल का अभ्यास कराया जाता है। इसका मुख्य केंद्र किसी एक विशिष्ट कार्य को पूरा करने का प्रशिक्षण देना, अभ्यास कराना, प्रदर्शन करना अथवा पाठ्य सामग्री पर अधिकार करना आदि हो सकता है।

(4) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा अभ्यास पर नियंत्रण (Micro Teaching Cantrols Practice)

सूक्ष्म शिक्षण कराते समय अभ्यास क्रियाओं को पूर्व नियोजित ढंग से नियंत्रित किया जाता है। छात्राध्यापकों को प्रतिपुष्टि अथवा पृष्ठ पोषण प्रदान करके निरीक्षण एवं अभ्यास पर नियंत्रित रखा जा सकता है। इस रूप में अवांछित अभ्यास क्रियाओं पर नियंत्रण रखा जा सकता है और उसे समायोजित किया जा सकता है।

(5) प्रतिपुष्टि के अनेक साधन (Various Means of Feedback)

सूक्ष्म शिक्षण में अनेक साधनों द्वारा प्रतिपुष्टि दी जा सकती है :

उदाहरण के लिए एक सूक्ष्म पाठ को पढ़ाने के पश्चात तुरंत ही उस शिक्षण कार्य का विश्लेषण, समालोचना की जाती है इससे छात्राध्यापकों में अंतर्दृष्टि का विकास होता है और उन्हें प्रतिपुष्टि मिलती है। टेप रिकॉर्डर का प्रयोग करके, वीडियो फिल्म तैयार करके अथवा निरीक्षक द्वारा उन्हें प्रतिपुष्टि प्रदान की जा सकती है।

इसमें प्रतिपुष्टि के पक्ष तथा परिणाम के ज्ञान को ध्यान में रखा जाता है। इसका अर्थ है कि छात्राध्यापक के शिक्षण पर चर्चा करके उनकी कमियां अथवा अच्छाइयों को दिखा कर या बता कर उन्हें प्रतिपुष्टि प्रदान की जाती है जिससे भविष्य में उसे और सुधार सकते हैं।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. सूक्ष्म शिक्षण कितने मिनट का होता है?

    उत्तर : सूक्ष्म शिक्षण में छात्रों की संख्या सीमित होती है और पाठ की अवधि 5 से 10 मिनट की होती है।

  2. सूक्ष्म शिक्षण का उद्देश्य क्या है?

    उत्तर : सूक्ष्म शिक्षण का उद्देश्य शिक्षक प्रशिक्षण (Teacher Training) के क्षेत्र में छात्राध्यापकों को प्रभावशाली एवं योग्यतापूर्ण प्रशिक्षण देना है।

  3. सूक्ष्म शिक्षण प्रणाली में बल दिया गया है?

    उत्तर : सूक्ष्म शिक्षण प्रणाली में निपुणता पर बल दिया जाता है और प्राचीन अवधारणा की ‘शिक्षक जन्मजात होते हैं’ का खंडन करके इस अवधारणा पर आग्रह किया जाता है कि शिक्षक जन्मजात ही नहीं होता अपितु बनाए भी जा सकते हैं।

  4. सूक्ष्म शिक्षण के जनक माने जाते हैं?

    उत्तर : सूक्ष्म शिक्षण की शुरुआत 1961 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में शोधरत कीथ एचीसन द्वारा किया गया।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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