इस आर्टिकल में भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य, गुटनिरपेक्षता और विदेश नीति, पंचशील और विदेश नीति, यूएनओ और विदेश नीति, नेहरू से मोदी तक विदेश नीति आदि टॉपिक के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।
नेहरू की विदेश नीति के 3 बड़े उद्देश्य – संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता आर्थिक विकास थे। भारतीय विदेश नीति का निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू को माना जाता है। नेहरू ने भारतीय विदेश नीति के तीन प्रमुख आधार स्तंभ बताएं : शांति, मित्रता एवं समानता।
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख तत्व
- गुटनिरपेक्षता
- शांति
- मैत्री और सह अस्तित्व
- पंचशील
- UNO का समर्थन
- साधनों की पवित्रता
- विरोधी गुटों के बीच समन्वय
भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य
- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना।
- अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्था द्वारा निपटाना।
- सभी राज्यों और राष्ट्रों के बीच परस्पर सम्मान पूर्ण संबंध।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियों की पालना।
- सैन्य गुट से प्रथक रहना और ऐसी गुटबंदी को निरुत्साहित करना।
- उपनिवेशवाद का उग्र विरोध करना।
- प्रत्येक सरकार की साम्राज्यवादी भावना को निरुत्साहित करना।
- उपनिवेशवाद, जातिवाद, साम्राज्यवाद से पीड़ित जनता की सहायता।
- तीन प्रमुख आधार स्तंभ – शांति, मित्रता और समानता।
भारतीय विदेश नीति के मूल तत्व /सिद्धांत
(1) गुटनिरपेक्षता और विदेश नीति : और अधिक पढ़ें – गुट-निरपेक्ष आन्दोलन (NAM)
(2) शांति की विदेश नीति :
- अंतर्राष्ट्रीय विवाद शांतिमय साधनों, द्विपक्षी, त्रिपक्षीय वार्ताओं व समझौतों, मध्यस्थता, पंच निर्णय विवाचन आदि से निपटाना।
- नदी जल पर भारत पाक विवाद 1960 में सिंधु जल संधि द्वारा हल किया गया।
- कच्छ के प्रश्न पर 1965 में पार्क द्वारा आक्रमण, 3 सदस्य ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए निर्णयों को स्वीकारना।
- 1966 के ताशकंद समझौते में भारत ने पाक को वे क्षेत्र लौटा दिए जो भारत की सुरक्षा के लिए आवश्यक थे।
- 1972 में शिमला समझौता में द्विपक्षीय वार्ताओं पर बल दिया।
- 1974 के त्रिपक्षीय समझौते द्वारा युद्ध बंदियों को लौटा दिया गया।
- 1977 के फरक्का समझौते द्वारा पानी की कमी वाले दिनों में बांग्लादेश को गंगा का अधिक पानी देना स्वीकार किया।
- 1987 के राजीव जयवर्धने समझौते ने अंतर्गत भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजा।
- 1996 में गंगा नदी जल बंटवारे विवाद में बांग्लादेश के साथ ऐतिहासिक संधि करके दो दशक से चल रहे विवाद को समाप्त किया।
- 1963 में आणविक परीक्षण प्रतिबंध संधि हुई तो भारत वह पहला देश था जिसने अविलंब इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिए।
- 1998 में परमाणु अप्रसार संधि CTBT पर इसलिए हस्ताक्षर नहीं किए की महा शक्तियां इस प्रकार की संधि द्वारा विश्व में परमाणु शक्ति पर अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहती है।
- 1974 में भारत ने शांतिमय कार्यों के लिए अणु शक्ति परीक्षण किया।
- 1996 में जिनेवा में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में CTBT को वीटो कर दिया, क्योंकि यह संधि परमाणु हथियारों को पूरी तरह से समाप्त करने के लक्ष्य को पूरा नहीं करती थी।
(3) मैत्री और अस्तित्व की नीति : विश्व में परस्पर विरोधी विचारधारा में सह अस्तित्व की भावना। भारत- नेपाल संधि, भारत-जापान, भारत-मिश्र शांति संधि, भारत-सोवियत मैत्री संधि, भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि।
(4) विरोधी गुटों के बीच सेतु बंध बनाने की नीति : कोरिया, हिंद, चीन, कांगो आदि समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
(5) साधनों की पवित्रता की नीति : भारतीय विदेश नीति महात्मा गांधी के इस मत से बहुत प्रभावित है कि न केवल उद्देश्य वरन उनकी प्राप्ति के साधन भी पवित्र होनी चाहिए। 1966 का ताशकंद समझौता और 1972 का शिमला समझौता इसी का परिणाम है।
(6) पंचशील पर जोर देने वाली नीति :
- पंचशील के पांच सिद्धांतों का प्रतिपादन शांति प्रियता का द्योतक है।
- पंचशील से अभिप्राय है आचरण के पांच सिद्धांत।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन सिद्धांतों का प्रतिपादन सर्वप्रथम 29 अप्रैल 1954 को तिब्बत के संबंध में भारत चीन के मध्य एक समझौते में किया गया।
नेहरू-चाऊ एन लाई ने पंचशील में अपने विश्वासों को 28 जून 1954 को दोहराया। अप्रैल 1955 में बांडुंग सम्मेलन में पंचशील को पुनः विस्तृत रूप दिया गया। विश्व के अधिसंख्य राष्ट्रों ने पंचशील सिद्धांतों को मान्यता दी। एशिया के प्राय: सभी देशों ने इन सिद्धांतों को स्वीकार कर लिया है। 14 दिसंबर 1959 को UNO महासभा ने भारत द्वारा प्रस्तुत किए गए पंचशील के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। पंचशील के सिद्धांत आपसी विश्वास ओं के सिद्धांत हैं।
श्री परदेसी, “इस पांच सूत्रीय सिद्धांत ने शीत युद्ध के कोहरे को हटा दिया और विश्व जनता ने शांति की सांस ली।”
आलोचकों ने इन सिद्धांतों की तुलना 1928 में “केलोग-ब्रीआं पैक्ट” से की है। और भारत चीन संबंधों की पृष्ठभूमि में एक अत्यंत असफल सिद्धांत साबित हुआ।
पंचशील के पांच सिद्धांत
- एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और सर्वोच्च सत्ता के लिए पारस्परिक सम्मान की भावना
- अनाक्रमण
- एक दूसरे के मामले में आंतरिक हस्तक्षेप न करना।
- समानता एवं पारस्परिक लाभ
- शांतिपूर्ण सह अस्तित्व
(7) साम्राज्यवाद और जातीय विभेद का विरोध करने वाली विदेश नीति :
इंडोनेशिया पर जब ह़ोलेंड ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पुनः अपनी सत्ता स्थापित करने का प्रयास किया तो भारत ने इसका घोर विरोध किया।
1956 में इंग्लैंड फ्रांस ने मिलकर स्वेज नहर हड़पने हेतु मिश्र पर आक्रमण किया तो भारत ने इस नवीन साम्राज्यवाद का घोर विरोध किया। पश्चिमी एशिया में भारत ने साम्राज्यवाद का सर्वदा विरोध किया और अरब राष्ट्रों का साथ दिया।
भारत फिलिस्तीनी जनता को अपने अधिकार दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहा है। हिंद चीन (वियतनाम, कंबोडिया, लाओस) में अमेरिकी हस्तक्षेप का विरोध किया। भारत सैन्य गुटों NATO, SEATO, WARSA Pact का सर्वदा विरोध किया है।
बांग्लादेश की स्वतंत्रता में तो भारत की भूमिका एक मुक्तिदाता के रूप में रही है। UNO न्यास परिषद में भारत की भूमिका के रूप में स्वशासन न करने वाले प्रदेशों का शासन चार्टर के सिद्धांतों के अनुसार करने पर बल दिया।
दक्षिण अफ्रीका और रोडेशिया में प्रजातिय विभेद का जोरदार विरोध किया और UNO में भी बराबर यह प्रश्न उठाता रहा।
(8) UNO का समर्थन करने वाली विदेश नीति :
कोरिया और हिंद चीन में शांति स्थापना हेतु संघ की सहायता। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के आह्वान पर कांगो में शांति स्थापना हेतु सेना भेजी। भारत के सहयोग के कारण 1991 में पांचवी बार सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य चुना गया। वर्तमान तक 9 बार चुना गया है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा दल के प्रयासों, एक भारतीय राष्ट्रीक ले.जनरल सतीश नांबियार की कमांड ने भूतपूर्व युगोस्लाविया में ऑपरेशन की विश्व भर ने प्रशंसा की।
सोमालिया में मानवीय सहायता तत्काल भेजने में UNO की कार्य योजना में सहयोग। UNO के विभिन्न शांति स्थापना दलों में भाग लिया।
अंगोला में UN वेरीफिकेशन मिशन 1995 में एक बटालियन भेजी। UNO रानीवाड़ा मिशन में थल सेना बटालियन, नियंत्रण इकाई, पर्यवेक्षक स्टाफ अधिकारी भेजें। UN हैती सहायता मिशन में सीआरपीएफ की एक कंपनी भेजी।
UN इराक और लाइबेरिया के पर्यवेक्षक मिशन में भारतीय पर्यवेक्षकों की तैनाती। UNO के शांति सेना द्वारा चलाए गए 60 अभियानों में भारत ने 42 अभियानों में भाग लिया। भारत UN शांति स्थापना में सैनिक सहायता देने वाला भारत दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। सूडान में 2005 में एक बड़े दल के तैनात के बाद प्रथम देश बन गया।
भारतीय विदेश नीति बदलाव के मार्ग पर
- सोवियत संघ का एक राष्ट्र के रूप में अवसान और उससे उत्पन्न परिस्थिति।
- पंजाब एवं कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद से निपटने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता।
- कश्मीर मुद्दे को UNO कार्य सूची से बाहर रखने के लिए आवश्यक सहयोग।
- एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था के अनुरूप अपने को ढालने का प्रयास।
- UNO सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता प्राप्त करने का प्रयास।
- बदले विश्व परिदृश्य में आर्थिक पहलू को मुख्य मुद्दा मानकर सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास।
- NAM देशों का नेता होने के कारण तीसरी दुनिया के देशों की आकांक्षा पूर्ति करने का प्रयास।
मोदी के शासनकाल के दौरान भारत की विदेश नीति
भारतीय विदेश नीति के नवीन आयाम –
पहले पड़ोस की नीति – 1996 में गुजराल सिद्धांत द्वारा निर्मित पड़ोस की नीति को प्रभावी रूप से लागू करने का प्रयास नरेंद्र मोदी के द्वारा किया गया जिसमें उसने पड़ोसी देशों के साथ ज्यादा बेहतर संबंध बनाने के लिए पहल की जरूरत बताई।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी – मोदी के द्वारा आधारभूत संरचना के बेहतर विकास के लिए आसियान देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए पूर्व की ओर देखो की नीति के स्थान पर एक्ट ईस्ट पॉलिसी का निर्माण किया गया।
फास्ट ट्रैक डिप्लोमेसी – पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधार एवं भारत के आर्थिक विकास के लिए मोदी द्वारा फास्ट ट्रैक डिप्लोमेसी का अनुकरण किया है।
पेरा डिप्लोमेसी – नरेंद्र मोदी के द्वारा भारत के शहरों का दूसरे देशों के शहरों से विशेष संबंध बनाने पर बल दिया गया इसमें जुड़वा शहर समझौता अस्तित्व में आया इसमें मुंबई-शंघाई अहमदाबाद- गुआंग हाउ, वाराणसी तथा क्योटो के बीच ऐसी सहमति बनी है।
प्रवासी को जोड़ने पर बल।
आर्थिक विकास पर बल – भारत को निवेश का केंद्र बनाने के लिए मेक इन इंडिया (Make In India) कार्यक्रम का आरंभ किया गया।
सांस्कृतिक कूटनीति पर बल – जापान तथा म्यांमार से सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ बनाया जा रहा है। भारत में पहली बार योग दिवस का सार्वजनिक आयोजन किया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भारतीय विदेश नीति से संबंधित ‘पंचामृत’ सिद्धांत 2015 में भारतीय विदेश नीति में शामिल किया गया।
पंचामृत के पांच सिद्धांत निम्न हैं –
- सम्मान
- संवाद
- समृद्धि
- सुरक्षा और
- सभ्यता एवं संस्कृति
भारतीय विदेश नीति में संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य –
- 2005 में पश्चिम की ओर देखो की नीति भारतीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के युग में अपनाई गई।
- लुक ईस्ट पॉलिसी पूर्व की ओर देखो की नीति 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा इसका प्रतिपादन किया गया।
- भारत की विदेश नीति की मूल बातों का समावेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में किया गया है।
- गुजराल सिद्धांत पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने की नीति हैंड्स ऑफ श्री लंका सिद्धांत इंदिरा गांधी द्वारा प्रतिपादित किया गया।
- पी वी नरसिम्हा राव ने आर्थिक पहलू पर अधिक ध्यान दिया।
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