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हॉब्स का सामाजिक समझौता सिद्धांत

इस आर्टिकल में हॉब्स का सामाजिक समझौता सिद्धांत क्या है, सामाजिक समझौता सिद्धांत का विकास, मानव स्वभाव, प्राकृतिक अवस्था, नवीन राज्य का रूप, सामाजिक समझौता सिद्धांत का परिणाम, हॉब्स के सामाजिक समझौते की आलोचना, हॉब्स के सामाजिक समझौता संबंधी विचार आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

हॉब्स का सामाजिक समझौता सिद्धांत क्या है

राज्य की उत्पत्ति के संबंध में सामाजिक समझौता सिद्धांत (Social Contract Theory) बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। 17 वीं और 18 वीं सदी की राजनीति की विचारधारा में तो इस सिद्धांत का पूर्ण प्राधान्य था।

इस सिद्धांत के अनुसार राज्य दैवीय संस्था (Divine Institute) न होकर एक मानवीय संस्था (Human Institute) है जिसका निर्माण व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक समझौते के आधार पर किया गया है।

इस सिद्धांत के प्रतिपादक मानव इतिहास को दो भागों में बांटते हैं :

  1. प्राकृतिक अवस्था का काल तथा
  2. नागरिक जीवन के प्रारंभ के बाद का काल।

इस सिद्धांत के सभी प्रतिपादक अत्यंत प्राचीन काल में एक ऐसी प्राकृतिक अवस्था के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं जिसके अंतर्गत जीवन को व्यवस्थित रखने के लिए राज्य या राज्य जैसी कोई अन्य संस्था नहीं थी।

सिद्धांत के विभिन्न प्रतिपादकों मे इस प्राकृतिक अवस्था के संबंध में पर्याप्त मतभेद हैं, कुछ इसे पूर्व सामाजिक (Pre – Social) और कुछ इसे पूर्व राजनीतिक (Pre – Political) अवस्था कहते हैं। इस प्राकृतिक अवस्था के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार या प्राकृतिक नियमों (Natural Rule) के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करते थे।

प्राकृतिक अवस्था के संबंध में मतभेद होते हुए भी यह सभी मानते हैं कि किन्ही कारणों से मनुष्य प्राकृतिक अवस्था का त्याग करने को विवश हुआ और उन्होंने समझौते द्वारा राजनीतिक समाज की स्थापना की।

इस समझौते के परिणामस्वरुप प्रत्येक व्यक्ति की प्राकृतिक स्वतंत्रता (Natural Liberty) आंशिक या पूर्ण रूप से लुप्त हो गई और स्वतंत्रता के बदले उसे राज्य व कानून की ओर से सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त हुआ। व्यक्तियों को प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights) के स्थान पर सामाजिक अधिकार (Social Rights) प्राप्त हुए।

इस प्रकार लिकॉक (Leacock) के शब्दों में, “राज्य व्यक्ति के स्वार्थों द्वारा चालित एक ऐसे आदान-प्रदान का परिणाम था जिससे व्यक्तियों के उत्तरदायित्व के बदले विशेषाधिकार प्राप्त किये।”

सामाजिक समझौता सिद्धांत का विकास

समझौता सिद्धांत राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy) की तरह पुराना है तथा इसे पूर्व और पश्चिम दोनों ही देशों से समर्थन प्राप्त हुआ है। महाभारत के शांति पर्व में इस बात का वर्णन मिलता है कि पहले राज्य न था, उसके स्थान पर अराजकता थी। ऐसी स्थिति में तंग आकर मनुष्य ने परस्पर समझौता किया और मनु को अपना शासक स्वीकार किया।

आचार्य कौटिल्य (Kautilya) ने भी अपने अर्थशास्त्र (Economics) में इस मत को अपनाया है कि प्रजा ने राजा को चुना और राजा ने प्रजा की सुरक्षा का वचन दिया।

यूनान में सबसे पहले सोफिस्ट वर्ग (Sofist Class) ने इस विचार का प्रतिपादन किया। उनका मत था कि राज्य एक कृत्रिम संस्था (Artificial Institute) है और एक समझौते का फल है। इपीक्यूरियन की विचारधारा वाले वर्ग ने इसका समर्थन किया और रोमन विचारकों ने भी इस बात पर बल दिया कि जनता राजसत्ता का अंतिम स्त्रोत है। मध्ययुग में भी यह विचार काफी प्रभावपूर्ण था और मेनगोल्ड तथा थॉमस एक्वीनास (Thomas Aquinas) के द्वारा इसका समर्थन किया गया। 16 वी और 17 वी सदी में यह विचार बहुत अधिक लोकप्रिय हो गया और लगभग सभी विचारक इसे मानने लगे।

रिचार्ड हूकर (Richard Hooker) ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक रूप में समझौते की तर्कपूर्ण व्याख्या की और डच न्यायाधीश ग्रोशियश तथा स्पिनोजा (Spinoza) ने इसका पोषण किया। किंतु इस सिद्धांत का वैज्ञानिक और विधिवत रूप से प्रतिपादन हॉब्स (Hobbes), लॉक (Lock) और रूसो (Rousseau) द्वारा किया गया, जिन्हें संविदावादी विचारक कहा जाता है।

हॉब्स इंग्लैंड के निवासी थे और राजवंश (Dynasty) से संपर्क के कारण उनकी विचारधारा राजतंत्रवादी थी। हॉब्स के समय में इंग्लैंड में राजतंत्र (Monarchy) और प्रजातंत्र (Democracy) के समर्थकों के बीच तनावपूर्ण विवाद चल रहा था।

इस विवाद के संबंध में हॉब्स का विश्वास था कि शक्तिशाली राजतंत्र के बिना देश में शांति और व्यवस्था स्थापित नहीं हो सकती।

अपने इस विचार का प्रतिपादन करने के लिए उसने 1651 में प्रकाशित पुस्तक लेवायथन (Leviathan) में समझौता सिद्धांत का आश्रय लिया। हॉब्स ने सामाजिक समझौते की व्याख्या इस प्रकार की है :

मानव स्वभाव (Human Nature)

हॉब्स के समय में चल रहे इंग्लैंड के गृह युद्ध ने उसके सम्मुख मानव स्वभाव का धृणित पक्ष ही रखा। उसने अनुभव किया कि मनुष्य एक स्वार्थी, अहंकारी और आत्माभिमानी प्राणी है। वह सदा शक्ति से स्नेह करता है और शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है।

हॉब्स मनुष्य को मूलतः एक सामाजिक प्राणी मानता है। उसके अनुसार सभी मनुष्य स्वार्थी, अहंकारी, लोभी तथा एक दूसरे के विरोधी होते हैं तथा दया, प्रेम, सहानुभूति, परोपकार तथा सहयोग आदि सद्गुणों का साधारणतः उनमें अभाव होता है और यदि कभी इन सद्गुणों का उनमें उदय होता भी है तो वह भी उनके किसी स्वार्थ की सिद्धि के कारण ही होता है।

प्राकृतिक अवस्था (Natural State)

इस स्वार्थी अहंकारी और आत्माभिमानी व्यक्ति के जीवन पर किसी प्रकार का नियंत्रण न होने का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक मनुष्य प्रत्येक दूसरे मनुष्य को शत्रु की दृष्टि से देखने लगा और सभी भूखे भेड़ियों के समान एक दूसरे को निगल जाने के लिए घूमने लगे।

मनुष्यों को न्याय और अन्याय का कोई ज्ञान नहीं था और प्राकृतिक अवस्था शक्ति ही सत्य है की धारणा पर आधारित थी। मारकाट और अत्याचार का बोलबाला था फलस्वरूप ऐसी अवस्था में मानव जीवन का स्वरूप अत्यंत एकाकी, दीन, पाशविक और क्षणभंगुर होता है।

स्वयं उसके शब्दों में, “वहां कोई व्यवसाय नहीं था, कोई संस्कृति न थी, कोई विद्या नहीं थी, कोई भवन निर्माण कला न थी और न कोई समाज था। मानव जीवन असहाय, दीन, मलिन तथा पाश्विक तथा अकाल्पनिक था।

हॉब्स के अनुसार सामाजिक समझौते के कारण

जीवन और संपत्ति की इस असुरक्षा तथा मृत्यु और संहार के इस भय ने व्यक्तियों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह इस असहनीय प्राकृतिक व्यवस्था का अंत करने के उद्देश्य से एक राजनीतिक समाज का निर्माण करें।

सामाजिक समझौता (Social Contract) नवीन समाज का निर्माण करने के लिए सब व्यक्तियों ने मिलकर एक समझौता किया। हॉब्स के अनुसार यह समझौता प्रत्येक व्यक्ति ने शेष व्यक्ति समूह से किया, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक दूसरे व्यक्ति से कहता है कि ‘मैं इस व्यक्ति अथवा सभा को अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण करता हूं, जिससे कि वह हम पर शासन करें, परंतु इसी शर्त पर कि आप भी अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण इसे इसी रूप में करें और इसकी आज्ञाओं को मानें।”

इस प्रकार सभी व्यक्तियों ने एक व्यक्ति अथवा सभी के प्रति अपने अधिकारों का पूर्ण समर्पण (आत्मरक्षा के आधिकार (Self Defense Rights) को छोड़कर) कर दिया और यह शक्ति या सत्ता उस क्षेत्र में सर्वोच्च सत्ता बन गयी। यही राज्य का श्रीगणेश है।

इस समझौते के अंतर्गत शासक कोई पक्ष नहीं है और यह समझौता सामाजिक है, राजनीतिक नहीं। वह सत्ता समझौते का परिणाम है और इस प्रकार उसका पद समझौते से कहीं अधिक उच्च है।

राजसत्ता पूर्ण, निरंकुश, अटल तथा अखंड है। प्राकृतिक अवस्था में कुछ प्राकृतिक नियम थे जिन्हें हॉब्स सुविधा के नियम (Rules of Expediency) कहता है। हॉब्स प्राकृतिक नियमों (Natural Rules) की कुल संख्या 19 बताता है।

हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था (Natural State) की अराजकता से ऊबकर व्यक्ति आपस में एक समझौता करते हैं जिसके द्वारा वे अपने ऊपर शासन करने के समस्त अधिकार एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को सौंप देते हैं।

समझौते के उपरांत ‘कॉमनवेल्थ’ (राज्य के लिए हॉब्स द्वारा प्रयुक्त शब्द) का निर्माण और लेवियाथन (संप्रभु) का उद्भव होता है। यह समझौता व्यक्तियों द्वारा आपस में किया गया है इसलिए संप्रभु पक्षकार नहीं है। अधिकारों का समर्पण बिना किसी शर्त के किया गया है। हॉब्स एक ही समझौते से समाज और राज्य दोनों का जन्म मानता है।

हॉब्स अपने संविदा सिद्धांत राजा और संसद के मध्य सर्वोच्चता के तत्कालीन इंग्लैंड के विवाद में राजा का सैद्धांतिक समर्थन प्रस्तुत किया। वह निरंकुश राजतंत्र का समर्थक था।

नवीन राज्य का स्वरूप

हॉब्स के समझौते द्वारा एक ऐसे निरंकुश राजतंत्रात्मक राज्य की स्थापना की गई है जिसका शासक संपूर्ण शक्ति संपन्न है और जिसके प्रजा के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है। शासित वर्ग को शासक वर्ग के विरुद्ध विद्रोह का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।

हॉब्स के सामाजिक समझौते की आलोचना

हॉब्स के इन विचारों की कटु आलोचना की गयी। जनता, राजतंत्रवादी और चर्च के समर्थक सभी ने इसकी कुछ आलोचना की।

(1) मानव स्वभाव और प्राकृतिक अवस्था का वर्णन एकाकी और अवास्तविक : हॉब्स ने मानव स्वभाव का चित्रण स्वार्थी, अहंकारी और आत्माभिमानी रूप में किया है, लेकिन मानव स्वभाव की यह व्याख्या पूर्णतः एकाकी है। मानव स्वार्थी प्राणी होने के साथ-साथ सामाजिक प्राणी है और उसमें दया, सहानुभूति एवं प्रेम का भाव पाया जाता है।

इसी प्रकार उसके द्वारा प्राकृतिक अवस्था का जो वर्णन किया गया है वह न तो ऐतिहासिक है और ना ही वास्तविक। प्रत्येक मनुष्य की प्रत्येक दूसरे मनुष्य के साथ युद्ध की कल्पना नितांत त्रुटिपूर्ण है।

(2) अतार्किक (Irrational) : यदि यह मान लिया जाए कि प्राकृतिक अवस्था का व्यक्ति असामाजिक, स्वार्थी और झगड़ालू था, तो प्रश्न यह उपस्थित होता है कि इस प्रकार के असामाजिक व्यक्तियों से समझौता करने की इच्छा व सामाजिक भावना का उदय कैसे हो गया।

(3) भय के आधार पर राज्य की स्थापना नहीं : हॉब्स के द्वारा भय और स्वार्थ जैसी हेय भावनाओं के आधार पर राज्य की स्थापना की गई जो नितांत अनुचित और असंभव है। वास्तव में राज्य या समाज भय तथा स्वार्थ पर नहीं वरन अनुभूति, सद्भावना सहयोग और सामाजिक हित की भावना पर आधारित है।

(4) स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन की स्थापना : हॉब्स के द्वारा जारी जिस स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन की स्थापना की गई है, वह अत्यंत भयंकर है। उसने शासन की शक्ति पर कोई भी नियंत्रण नहीं लगाया है और ऐसे निरंकुश शासन में व्यक्तियों की स्वतंत्रता, जीवन और संपत्ति कुछ भी सुरक्षित नहीं रह सकते हैं।

(5) राज्य तथा सरकार में अंतर नहीं : हॉब्स के सिद्धांत की एक विशेष त्रुटि यह है कि उसने राज्य और सरकार में कोई अंतर नहीं किया है और इसलिए उसने केवल राज्य के विरुद्ध नहीं वरन सरकार के विरुद्ध भी प्रजा का विद्रोह अमान्य ठहरा दिया है।

हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत का महत्व

हॉब्स ने इस सत्य का प्रतिपादन किया है कि राज्य देवी संस्था नहीं, वरन माननीय संस्था है। इसके अतिरिक्त, हॉब्स की विचारधारा ने संप्रभुता (Sovereignty) की धारणा के प्रतिपादन का भी मार्ग प्रशस्त किया है।

वॉहन के अनुसार, “हॉब्स प्रथम लेखक था जिसने संप्रभुता के विचार के पूर्व महत्व को समझा और उसके स्वरूप, मर्यादाओं, कार्य आदि की सूक्ष्म विवेचना कर इसकी विशद व्याख्या की।”

हॉब्स प्रथम व्यक्ति था जिसने राजनीति शास्त्र के अध्ययन के लिए पूर्णतः वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया। हॉब्स का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान उसका व्यक्तिवाद है, क्योंकि उसने राज्य को एक साधन तथा व्यक्ति के कल्याण तथा उसकी सुरक्षा को एक साध्य घोषित किया।

प्रसिद्ध चिंतक R. G. कॉलिंगवुड ने हॉब्स की रचनाओं की प्रशंसा इस प्रकार की है “लेवियाथन एक ऐसी कृति है जो राजनीति शास्त्र के संपूर्ण ढांचे का अध्ययन करने की दृष्टि से बेजोड़ है।”

हॉब्स सर्वव्यापक दृष्टि से प्रभावित होकर ही कॉलिंगवुड ने अपनी पुस्तक का नाम न्यू लेवियाथन (New Leviathan) रखा और हॉब्स के दृष्टिकोण से सहमति प्रकट करते हुए कॉलिंगवुड ने अपने विषय के बारे में लिखा है कि “इस पुस्तक के अंतर्गत मैंने उन्हीं समस्याओं का (जो हॉब्स ने उठाई थी) उसी क्रम में अध्ययन किया है और पुस्तक के चार भागों को व्यक्ति, समाज, सभ्यता, तथा पाशविकता नाम दिया है।”

हॉब्स के सामाजिक समझौता संबंधी विचार

(1) हॉब्स के मत मे प्राकृतिक अवस्था मे भी एक प्राकृतिक कानून (Natural Law) विद्यमान था जो बौद्धिक आत्मरक्षा के नियम के रूप में था।

(2) प्रभुसत्ता सर्वोच्च तथा पूर्ण है। प्रभुसत्ताधारी को सौंपे गए अधिकार वापस नहीं मांगे जा सकते क्योंकि इन अधिकारों को वापस मांगने का अर्थ होगा प्राकृतिक अवस्था में पुनः लोटना।

(3) हॉब्स द्वारा प्रतिपादित समझौता सिद्धांत सामाजिक तथा राजनीतिक दोनों है। सामाजिक इसलिए कि इसके द्वारा मनुष्य ने अपनी व्यक्तिगत शक्ति को त्याग कर सामाजिक बंधन स्वीकार किया तथा राजनीतिक इसलिए कि समझौते के परिणाम स्वरुप राजसत्ता की स्थापना हुई।

(4) प्रभुसत्ताधारी के अधिकारों को पूर्ण मान्यता प्रदान करने के बावजूद हॉब्स ने व्यक्ति के जीवन के अधिकार को महता प्रदान की।

(5) यदि शासन व्यक्ति को अपने आप को मारने, घायल करने अथवा पंगु बनाने या अपने को आघात पहुंचाने वालों का विरोध न करने अथवा भोजन, औषधि या जीवन के आवश्यक अन्य किसी वस्तु के प्रयोग की मनाही करें तो प्रत्येक व्यक्ति को उसके आदेश का उल्लंघन करने का अधिकार है।

(6) हॉब्स ने शासक के हाथों में असीम सत्ता सौंपकर और जनसाधारण को विरोध के अधिकार से वंचित करके पूर्णसत्तावाद (Absalutism) को प्रेरित किया।

(7) हॉब्स कहता है कि जनता का एकमात्र कार्य संप्रभु के आदेशों का पालन करना है, चाहे वह आदेश ईश्वरीय या प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध ही क्यों ना हो जनता के लिए उनका पालन करना ही न्याय पूर्ण एवं वैद्य है।

(8) संप्रभु को जनता की संपत्ति छीनने का, यहां तक कि उसके प्राण लेने का अधिकार भी है, क्योंकि जनता की सम्पत्ति और प्राण उसकी सत्ता से ही सुरक्षित है।

(9) हॉब्स के मत में संप्रभु किसी भी कानून को मानने के लिए बाध्य नहीं है। उनके अनुसार “कानून संप्रभु का आदेश है।”

(10) हॉब्स का राज्य व्यक्ति के लिए उसका निर्माण व्यक्तियों ने अपने हितों की सिद्धि हेतु किया जो निरंकुश सत्ता उनके द्वारा उसे दी गई उसका ध्येय भी व्यक्तिगत सुरक्षा की प्राप्ति ही है। इस तरह उसने निरंकुशवादी होकर भी पूर्ण व्यक्तिवाद का समर्थन किया।

(11) संप्रभु की निरंकुश (Autocratic) सत्ता का सिद्धांत जिसके साथ है सामान्यतया हॉब्स (Hobbes) का नाम जोड़ा जाता है वास्तव में उसके व्यक्तिवाद (Individualism) का आवश्यक पूरक था।” – सेबाइन

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत का वर्णन किस पुस्तक में है?

    उत्तर : हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत का वर्णन लेवियाथन नामक पुस्तक में है?

  2. थॉमस हॉब्स के अनुसार सामाजिक समझौते के क्या कारण थे?

    उत्तर : थॉमस हॉब्स के अनुसार सामाजिक समझौते का कारण जीवन और संपत्ति की असुरक्षा तथा मृत्यु और संहार का भय था।

  3. हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक कानून की संख्या कितनी है?

    उत्तर : हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक कानून की संख्या 19 है।

  4. क्यों हॉब्स व्यक्तिवाद के पिता के रूप में जाना जाता है?

    उत्तर : हॉब्स प्रथम व्यक्ति था जिसने राजनीति शास्त्र के अध्ययन के लिए पूर्णतः वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया। हॉब्स का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान उसका व्यक्तिवाद है, क्योंकि उसने राज्य को एक साधन तथा व्यक्ति के कल्याण तथा उसकी सुरक्षा को एक साध्य घोषित किया।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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