Search Suggest

समाजवाद के प्रकार : समष्टिवाद और लोकतांत्रिक समाजवाद

इस आर्टिकल में समाजवाद के प्रकार, समष्टिवाद या राज्य समाजवाद, समष्टिवाद विचारधारा का विकास, समष्टिवाद की विशेषताएं, लोकतांत्रिक समाजवाद, लोकतांत्रिक समाजवाद का अर्थ व परिभाषा, लोकतांत्रिक समाजवाद के सिद्धांत आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

समष्टिवाद या राज्य समाजवाद

समष्टिवाद या राज्य समाजवाद (Collectivism or State Socialism) के विभिन्न अर्थ लगाए जाते हैं। समष्टिवाद मार्क्सवाद प्रणाली के विपरीत है जो वैज्ञानिक और क्रमिक परिवर्तन के द्वारा समाजवादी व्यवस्था स्थापित करना चाहती है। यह उत्पादन के स्त्रोतों को पूंजीवादी अधिनायकों से मुक्त कराकर राज्य के हाथों में सौंपती है।

इस व्यवस्था में वर्गीय भेदभाव नहीं रहेंगे। व्यक्तियों को सर्वव्यापी मताधिकार होगा। वे समता के वातावरण का उपभोग कर सकेंगे। समष्टिवाद का स्वतंत्रता में पूर्ण विश्वास है लेकिन सार्वजनिक हित में प्रतिबंध के भी पक्ष में है।

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, “यह वह नीति अथवा सिद्धांत है जो केंद्रीय लोकतांत्रिक सत्ता द्वारा आजकल की अपेक्षा श्रेष्ठतम वितरण तथा उसके अधीन श्रेष्ठतम उत्पादन की व्यवस्था करना चाहता है।”

एक विद्वान ने राज्य समाजवाद की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “यह भूमि तथा उद्योग पर व्यक्तिगत स्वामित्व को नष्ट करके उन्हें राज्य के अधिकार में लाना चाहता है। यह राज्य को लोक कल्याण तथा प्रगति का प्रधान यंत्र बनाना चाहता है।”

समष्टिवादी राज्य को विशेष महत्व प्रदान करते हैं। इसमें सार्वजनिक सत्ता को सर्वव्यापी मताधिकार द्वारा निर्धारित करना, कर्मचारियों की संगठनात्मक सुव्यवस्था व उत्पादन के साधनों को व्यक्तिगत नियंत्रण से हटाकर राष्ट्रीय हाथों में देना, यह सभी कार्य आ जाते हैं।

समष्टिवादी विचारधारा सार्वजनिक प्रसन्नता और कल्याण पर अधिक ध्यान देती है। पूंजीवादीयों और प्रतियोगिता पूर्ण निजी उद्योगों की समाप्ति इसका मुख्य लक्ष्य है परंतु समष्टिवादी जो कुछ भी करना चाहते हैं वह सब राज्य के माध्यम से ही होगा।

समष्टिवाद विचारधारा का विकास

Development of Collectivism ideology : समष्टिवाद मुख्यतः 20 वीं शताब्दी की विचारधारा है। इसके विकास में उन्हीं कारणों का योगदान है जिन्होंने फेबियन समाजवाद को विकसित किया। मार्क्सवाद की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप कुछ संशोधनवादियों, लोकतंत्रवादियों और उदारवादियों का एक वर्ग निर्मित हुआ जिसने राज्य समाजवाद को जन्म दिया।

आधुनिक युग में समष्टिवादी विचारधारा का विकास यूरोप के देशों में अस्तित्व में है। सी ई एम जोड़ ने इसके उदय और विकास को मार्क्सवाद और व्यक्तिवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया से संबंध किया है।

समष्टिवाद के उद्भव और विकास का प्रमुख कारण व्यक्तिवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया थी।

19वीं शताब्दी के अंत तक आर्थिक स्वतंत्रता चरम सीमा पर पहुंच गई। धीरे-धीरे इसके विरूद्ध आवाज उठी और इसके बाद समष्टिवाद अस्तित्व में आया। इस प्रकार समष्टिवाद के विकास में तीन कारणों का हाथ रहा है :

  • आर्थिक व्यक्तिवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया
  • मार्क्सवादी क्रांति एवं हिंसा का विरोध
  • पूंजीवादी शोषण के विरुद्ध शोषित वर्ग का असंतोष

समष्टिवाद की विशेषताएं

  • राज्य को एक महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक संगठन मानते हैं।
  • व्यक्तिवाद के प्रति सहमति तथा लोकतंत्र और व्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन।
  • साम्यवादी सिद्धांत का विरोध।
  • व्यक्तिगत संपत्ति और छोटे-छोटे उद्योगों का समर्थन।
  • उत्पादन तथा वितरण के साधनों का राष्ट्रीयकरण अर्थात राज्य का नियंत्रण।
  • विकासवादी और संवैधानिक साधनों में आस्था।
  • साम्राज्यवाद का विरोध।8. लोकतंत्र में आस्था।

इस प्रकार समष्टिवाद राज्य के प्रति आस्था, पूंजीवादी व्यवस्था की अकुशलता, उत्पादन के साधनों व उद्योगों के राष्ट्रीयकरण तथा लोकतंत्रीय, विकासवादी सिद्धांत में विश्वास प्रकट करता है।

समष्टिवादी समाज का विकास चाहते हैं, परंतु वे क्रांतिकारी परिवर्तन के पक्षधर नहीं हैं। समाजवाद की समस्त विचारधाराओं में समष्टिवाद सर्वाधिक व्यवहारिक और उपयोगी है।

यदि किसी देश में प्रगति हुई है तो उसका स्वरूप समष्टिवादी है। आज की प्रतियोगितापूर्ण औद्योगिक व्यवस्था के लिए समष्टिवाद ही एक श्रेयस्कर विचारधारा सिद्ध हो सकती है। समष्टिवाद स्वार्थ के स्थान पर सेवा का भाव रखता है तथा समाज में नैतिक गुणों का विकास करता है।

लोकतांत्रिक समाजवाद (Democratic Socialism)

लोकतांत्रिक समाजवाद बीसवीं शताब्दी में राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में इंग्लैंड की प्रमुख देन है। लोकतांत्रिक समाजवाद के विचारकों में आर एच टोनी, रैम्जे मैकडॉनल्ड, सिडनी वैब, हेराल्ड लास्की, क्लेमेंट एटली अमेरिका में नॉर्मन थामस और भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरु, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, नरेंद्र देव का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है।

लोकतांत्रिक समाजवादी समस्त सामाजिक तथा अन्य परिवर्तन राज्य के माध्यम से लाना चाहते हैं। ये ऐसी किसी भी व्यवस्था के समर्थक नहीं है जिसमें राज्य का स्थान न हो। वे अपने समाजवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शांतिपूर्ण उपायों का सहारा लेते हैं। इस विचारधारा में हिस्सा और रक्तपात का कोई स्थान नहीं है। यह विचारधारा उग्र परिवर्तन के विरुद्ध विकासवादी धारणा की प्रतीक है।

लोकतांत्रिक समाजवाद का अर्थ व परिभाषा

लोकतांत्रिक समाजवाद का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है जिसमें व्यक्ति की अपेक्षा समाज को अधिक महत्व प्रदान किया जाए। आर्थिक क्षेत्र में पूंजीवाद, सामंतवाद आदि शोषण की व्यवस्थाओं का अंत किया जाए तथा आर्थिक क्षेत्र में व्यक्तिवादी प्रतियोगिता की भावना को रोका जाए।

उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त करके उनका सामाजिकरण किया जाए। आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में स्वतंत्रता, समानता व न्याय की प्राप्ति सभी व्यक्तियों को हो। इस दृष्टिकोण से यह विचारधारा समाजवादी है।

इसे लोकतांत्रिक समाजवाद इसलिए कहा जाता है कि यह क्रांतिकारी समाजवादी विचारधाराओं के विपरीत राज्य का विरोध न करके राज्य को समाजवादी समाज की स्थापना हेतु आवश्यक साधन के रूप में मानता है और इसी के माध्यम से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है।

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, “यह वह नीति अथवा सिद्धांत है जो केंद्रीय लोकतांत्रिक सत्ता द्वारा आजकल की अपेक्षा श्रेष्ठ वितरण तथा उसके अधीन श्रेष्ठ उत्पादन की व्यवस्था करना चाहती है।”

लोकतांत्रिक समाजवाद के सिद्धांत

लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित है :

  • लोकतांत्रिक समाजवाद पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों का विरोधी है।
  • सर्वाधिकारवाद का कटु आलोचक है।
  • लोकतांत्रिक समाजवाद मनुष्य को एक नैतिक प्राणी मानता है।
  • लोकतांत्रिक समाजवाद मानव जीवन में धर्म और नैतिकता के महत्व को स्वीकार करता है।
  • यह वर्ग संघर्ष की अपेक्षा वर्ग सामंजस्य में विश्वास करता है।
  • आर्थिक स्वतंत्रता के साथ-साथ राजनीतिक स्वतंत्रता पर बल देता है।
  • अर्थव्यवस्था पर लोकतांत्रिक नियंत्रण का समर्थक है।
  • राष्ट्रीयकरण के स्थान पर सामाजिकरण पर बल देता है।

Also Read :

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. समष्टिवाद किस पर विश्वास करता है?

    उत्तर : समष्टिवाद स्वार्थ के स्थान पर सेवा का भाव रखता है तथा समाज में नैतिक गुणों का विकास करता है।

  2. लोकतान्त्रिक समाजवाद किस शताब्दी वर्ष का प्रभावशाली दर्शन रहा ?

    उत्तर : लोकतांत्रिक समाजवाद बीसवीं शताब्दी वर्ष का प्रभावशाली दर्शन रहा है।

  3. लोकतांत्रिक समाजवाद की विचारधारा सर्वप्रथम किस देश ने अपनायी ?

    उत्तर : लोकतांत्रिक समाजवाद बीसवीं शताब्दी में राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में इंग्लैंड की प्रमुख देन है।

  4. लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रमुख विचारक कौन है?

    उत्तर : लोकतांत्रिक समाजवाद के विचारकों में आर एच टोनी, रैम्जे मैकडॉनल्ड, सिडनी वैब, हेराल्ड लास्की, क्लेमेंट एटली अमेरिका में नॉर्मन थामस और भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरु, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, नरेंद्र देव का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है।

  5. समष्टिवाद के उद्भव और विकास का प्रमुख कारण था?

    उत्तर : समष्टिवाद के उद्भव और विकास का प्रमुख कारण व्यक्तिवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया थी।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

إرسال تعليق