जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत | jean piaget theory in hindi

इस आर्टिकल में जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत (jean piaget theory in hindi), जीन पियाजे का शिक्षा में योगदान पर चर्चा की गई है।

पियाजे का जीवन परिचय

पियाजे (Piaget’s) 20 वीं शताब्दी के मनोवैज्ञानिक में शीर्ष स्थान पर है। इन्हें विकासात्मक मनोविज्ञान (Develpmental Psychology) का आधार माना जाता है। पियाजे (Piaget’s) जन्म सन 1886 में स्विट्जरलैंड में हुआ था।

पियाजे (Piaget’s) की रूचि दर्शन की एक शाखा ज्ञानमीमांसा और जीव विज्ञान में थी अतः उन्होंने अधिगम संबंधी तथ्यों को नहीं छुआ किंतु बालक की शैशवावस्था से लेकर किशोरावस्था तक के संज्ञान पक्ष का अध्ययन किया और मानव विकास के क्षेत्र में अत्यधिक ख्याति प्राप्त की। आपने तर्क-विचार, चिंतन, प्रत्ययबौद्ध, नैतिक निर्णय, आदि मनोवैज्ञानिक तथ्यों का वैज्ञानिक अध्ययन किया गया था।

पियाजे (piaget’s) ने सर्वप्रथम एक पुस्तक “द लैंग्वुएज ऑफ थॉट ऑफ़ द चाइल्ड” (The Language Thought of The Child)  सन 1930 में लिखी।

इसके बाद अनेक पुस्तकें लिखी जिसमें मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं के विकास क्रम का अध्ययन किया गया है तथा मानव विकास की विशेषताओं का भी विशद वर्णन किया गया है। इसी कारण जीन पियाजे की मनोवैज्ञानिक विचारधाराएं “विकासात्मक मनोविज्ञान” (Developmental Psychology) के नाम से विदित है।

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

Piaget Theory of Cognitive Development in Hindi : पियाजे के द्वारा प्रतिपादित मानव विकास के सिद्धांत को संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) के नाम से भी जाना जाता है। मानव विकास पर ध्यान आकृष्ट करते हुए मानसिक क्रियाओं को महत्व दिया है। मनोवैज्ञानिको नेे विकास के प्रमुख तीन प्रमुख पक्ष बताएं है :

  • जैविकय परिपक्वता
  • मौलिक पर्यावरण के साथ अनुभव
  • सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुभव

इन तीनों पक्षों के साथ पियाजे ने एक और पक्ष का समावेश किया जिसे सन्तुलनीकरण कहा जाता हैै। पियाजे सन्तुलनीकरण को विकास की अनिवार्य आवश्यकता बताते हुए कहते है कि सन्तुलनीकरण विकास के उपयुक्त तीनों पक्षों के मध्य संबंध स्थापित करता है।

सन्तुलनीकरण के अभाव में किसी भी प्राणी का विकास संभव नहीं है। इसके आधार पर पियाजे ने एक दृष्टिकोण विकसित किया है जिसे ‘स्कीमा’ (Schema) के नाम से जाना जाता है।

पियाजे के अनुसार स्कीम क्या है

स्कीमा जीव विज्ञान (Biology) की अवधारणा है जो पियाजे द्वारा प्रतिपादित संतुलनीकरण का समानांतरण है और पियाजे का संतुलनीकरण ही उसके अनुसार ‘स्कीमा’ (Schema) कहलाता है अर्थात् व्यक्ति अपने व्यवहारिक जीवन में कार्य करने की जो क्रिया अपनाते हैं, वही उसका स्कीमा होता है।

इन्हें एक प्रकार से व्यवहार के प्रतिमान कहा जा सकता है। स्कीमा को सही रूप में जानने के लिए निम्न अवधारणाओं को जानना आवश्यक है :

संतुलनीकरण क्या है

विकास के लिए संतुलन एक अनिवार्य शर्त है क्योंकि यही संतुलन पूर्व के मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित तीनों पक्षों (जैविक परिपक्वता, भौतिक पर्यावरण के साथ अनुभव और सामाजिक पर्यावरण के साथ अनुभव) के मध्य समन्वय स्थापित करता है। इसके अभाव में किसी भी जीवित प्राणी का विकास संभव नहीं है।

पियाजे ने ‘संतुलनीकरण’ को ‘स्व-संचालित आरोही’ प्रक्रिया कहा है जो व्यक्ति के विकास को धीरे-धीरे आगे बढ़ाते रहती है। यह संतुलनीकरण ही पियाजे के अनुसार स्कीमा है अर्थात स्कीमा, संतुलनीकरण द्वारा उचित विकास है जिसका बालक के मानसिक अथवा संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण स्थान है।

स्कीमा बालक के पूर्वानुमानों की संगठनात्मक संरचना है। स्कीमा की संरचना की ग्राह्यता एक मुख्य प्रक्रिया है इस प्रक्रिया में दो तत्व होते हैं : (१) आत्मीकरण और (२) समंजन।

मनोविज्ञान में आत्मीकरण का अर्थ

पियाजे ने स्कीमा की ग्राह्यता में आत्मीकरण तत्व को माना है। ‘आत्मीकरण‘ को किसी व्यक्ति की वह योग्यता अथवा क्षमता कहा जा सकता है जिसके सहयोग से वह नवीन परिस्थितियों के साथ अपना सामंजस्य स्थापित करता है। अर्थात किसी व्यक्ति द्वारा किसी नवीन संरचना को ग्रहण करने की प्रक्रिया स्कीमा है जो आत्मीकरण के तत्व से संबंध होती है।

पूर्व अनुभव के अधार पर निर्मित पृष्ठभूमि ही आत्मीकरण है। यह वातावरण से प्राप्त ज्ञान तक ही सीमित नहीं है अपितु इसमें पूर्व में प्राप्त वे अनुभव भी समाहित हैं जो वर्तमान में ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होते हैं।

मनोविज्ञान में समंजन का अर्थ

संतुलनीकरण में एक तत्व आत्मीकरण है तो दूसरा तत्व समंजन है। समंजन का अर्थ है पूर्व अनुभवों की पृष्ठभूमि में नवीन अनुभवों का आत्मीकरण अर्थात वातावरण से प्राप्त ज्ञान करने में बालक के पूर्व अनुभव सहायक होते हैं जो समंजन कहलाते हैं और पूर्व अनुभवों को ही संगठनात्मक संरचना कहा जा सकता है जो बालक के संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

इस प्रकार यह आत्मीकरण से एक तत्व आगे की प्रक्रिया है। पियाजे के अनुसार यही स्कीमा है। बालक जैसे-जैसे अपने वातावरण से समंजन करता जाता है, उनका संज्ञानात्मक विकास आगे बढ़ता जाता है।

जैसे : प्रारंभ में बालक बोतल पकड़ता है और बाद में वह टम्बलर पकड़ना सीख जाता है। अर्थात पुराने अनुभव में नया अनुभव संतुलनीकरण है। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि स्कीमा (Schema) एक प्रकार से बालक के संज्ञानात्मक योग्यता अथवा संभाव्यता क्षमता है।

उदाहरण के लिए : सर्वप्रथम बालक केवल चूसना जानता है। यह एक स्कीमा है। धीरे-धीरे वह बोतल को पकड़ना सीखता है फिर उसे उल्टा सीधा करना सीखता है। ये सभी क्रियाएं जो वह अपने भौतिक और सामाजिक वातावरण से सीखता है। स्कीमा का विकास है।

अर्थात बालक जितनी अधिक अंत: क्रिया अपने वातावरण के सानिध्य में करेगा उतना ही उसमें स्कीमा विकसित होगा। प्रत्येक बालक दूसरे से भिन्नता रखता है अतः प्रत्येक का स्कीमा अलग-अलग होता है।

यह स्कीमा मिलकर हमारा संज्ञानात्मक संगठन बनाते हैं और संज्ञानात्मक प्रकार्यत्ता में संतुलनीकरण, आत्मीकरण और समंजन तीनों प्रक्रियाएं कार्य करती है। पियाजे ने स्कीमा के साथ-साथ बालक के बौद्धिक विकास की अवस्थाएं भी बताई है जो निम्न है :

मानसिक अथवा संज्ञानात्मक विकास के सोपान अथवा चरण

पियाजे ने बालक के मानसिक विकास के चरणों की व्याख्या अत्यंत गहराई से की है। आपने बालक के मानसिक विकास को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया है।

जीन पियाजे के सिद्धांत का शिक्षा में योगदान

जीन पियाजे विकासवादी संप्रदाय के प्रवर्तक रहे हैं। आपने बालक के विकास के संबंध में नवीन दृष्टिकोण विकसित किया। उनका महत्वपूर्ण योगदान शिक्षा जगत में उल्लेखनीय है जिस पर आज शोध हो रहे हैं। कुछ बिंदु इस प्रकार हैं :

👉 पियाजे ने बालक के संज्ञानात्मक विकास की जो अवस्थाएं बताई है उन पर किसी मनोवैज्ञानिक ने विचार नहीं किया है। सभी पूर्ववर्ती मनोवैज्ञानिकों ने शारीरिक विकास की दृष्टि से ही शैशवावस्था व बाल्यावस्था का विभाजन किया है।

पियाजे का मानसिक विकास के आधार पर शैशवावस्था और बाल्यावस्था का वर्गीकरण, भाषा-विकास शैक्षिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।

👉 मोंटेसरी विद्यालयों के लिए पियाजे के मानसिक विकास के वर्गीकरण, सिद्धांत अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जा सकते हैं क्योंकि पियाजे के मत में अच्छा वातावरण “अधिगम की क्षमता” (Capacity of Learning) को बढ़ाता है।

👉 पियाजे ने स्कीमा का संप्रत्यय दिया जिसमें संतुलनीकरण, आत्मीकरण और समंजन जैसे सम्र्पत्ययों की व्याख्या की है। वह संज्ञानात्मक विकास में अति महत्व रखता है।

जीन पियाजे ने बताया, “बच्चा अपनी उम्र अनुसार अपने पूर्व ज्ञान में नए अनुभवों को सिम्मिलत कर के अपनी समझ को बनाता है।” ये हमें बच्चों के पूर्व ज्ञान के उपयोग और स्वयं से सोचने के मौके देने के लिये प्रेरित करता है : यानी E (अनुभव) और R (चिंतन) एवं A (अनुप्रयोग) सुझाता है।

👉 जीन पियाजे के सिद्धांतों (piaget theory in hindi) के आधार पर शिक्षण-कौशलों का विकास किया जा सकता है। इस प्रकार जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का शिक्षा जगत में अति महत्व है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत क्या है?

    उत्तर : जीन पियाजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया है। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है। जीन पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।

  2. जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की प्रथम अवस्था कौन सी है?

    उत्तर : जीन पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की प्रथम अवस्था संवेदी गामक अवस्था है। यह अवस्था जन्म से 2 वर्ष तक रहती है। इस अवस्था में बालक बाहरी वातावरण का ज्ञान अपनी संवेदनाओं तथा क्रियाओं की सहायता से अर्जित करता है।

  3. पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास के किस चरण पर बच्चा वस्तु स्थायित्व को प्रदर्शित करता है?

    उत्तर : पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास के संवेदी प्रेरक अवस्था पर बच्चा वस्तु स्थायित्व को प्रदर्शित करता है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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