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सामाजिक अधिगम सिद्धांत बन्डूरा | social learning theory in hindi

इस आर्टिकल में अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Bandura social learning theory in hindi) सामाजिक अधिगम क्या है, बंडुरा का जीवन परिचय, बंडुरा का प्रयोग, सामाजिक अधिगम की परिभाषा आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

सामाजिक अधिगम से आप क्या समझते हैं

मानव अपने वातावरण के द्वारा स्वयं कुछ न कुछ सीखता है। यह सर्वविदित है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के अंदर रहता है, समाज से सीखता है, समाज को सिखाता है। समाज द्वारा निर्देशित अधिगम को बंडूरा ने सामाजिक अधिगम (Social Learning) कहा है।

इसके अनुसार सामाजिक अधिगम के अंतर्गत उस तत्व का अधिगम किया जाता है जिसमें जो तत्व पुरस्कृत करते हैं, जिनकी प्रतिष्ठा होती है या जो सुयोग्य होते हैं हो, वह तत्व अधिगम नहीं किए जाते, जो प्रतिष्ठित ना हो या जो सुयोग्य ना हो अर्थात समाज द्वारा कुछ तत्व निर्धारित हो जाते हैं जिनका बालक स्वतः अनुसरण करता है और वह उसका अधिगम लक्ष्य बन जाता है।

अनेक बार ऐसा भी देखा जाता है कि व्यक्ति स्वयं के द्वारा किए गए अधिगम को भी छोड़ने को तैयार हो जाता है कई बार वह अपने अनुभवों के आधार पर परिस्थिति से समायोजन करने के लिए प्रयास करने लगता है।

बंडूरा का सामाजिक अधिगम क्या है

अल्बर्ट बंडूरा ने सामाजिक अधिगम (Social Learning) के विषय में अपने विचारों को निम्न पंक्तियों में रचित किया है, “उन प्रतिरूपों का अनुकरण अधिक किया जाता है जो पुरस्कार देने वाले होते हैं, जिनकी समाज में उच्च प्रतिष्ठा होती है अथवा जिनका पुरस्कार देने वाले स्त्रोतों पर नियंत्रण होता है। जिन प्रतिरूपों में उपयुक्त विशेषताओं का अभाव होता है उनका अधिगम अपेक्षाकृत कम करते हैं।”

दूसरों को देखकर उनके अनुरूप व्यवहार करने के कारण अथवा दूसरों के व्यवहारों को अपने जीवन में उतारने तथा समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहारों को धारण करने तथा अमान्य व्यवहारों को त्यागने के कारण ही यह सामाजिक अधिगम (Social Learning) कहलाता है। बच्चों में नैतिक व्यवहार को सीखने का मुख्य आधार प्रेक्षण (Observation) है।

इसी को बंडूरा का मॉडल द्वारा व्यवहार में रूपांतर लाने का सिद्धांत (Bandura theory of behaviour modification through modelling) कहते हैं।

देखने में आया है कि मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम के जो सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं उनमें प्रायः जानवरों पर प्रयोग करके सीखने की प्रक्रिया समझाने का प्रयास किया गया है। लेकिन कक्षा कक्ष की स्थिति में तथा पशुओं पर किए गए प्रयोगों के परिणामों को बालक पर लागू करने में शिक्षक संदेह प्रकट करने लगे।

शिक्षाशास्त्रियों का विचार है कि बालक अंतः क्रिया द्वारा व्यवहार सीखता है। अंतःक्रिया एक व्यक्ति या समूह के साथ हो सकती है। अंतः क्रिया के समय सीखे गए व्यवहार की पुष्टि किस स्थिति में मिलती है यह भी अधिक महत्वपूर्ण है। इन समस्याओं के समाधान के लिए मनोवैज्ञानिक द्वारा अध्ययन प्रारंभ किए गए।

ऐसा ही एक अध्ययन अल्बर्ट बंडूरा (Albert Bandura) महोदय का है। अंतः क्रिया संबंधी सीखने के मार्ग को अपनाने से ही सामाजिक सीखना संबंधी सिद्धांत का निरूपण हुआ। इस प्रकार सामाजिक अधिगम का सिद्धांत पोषण घटक पर बल देता है।

सामाजिक जीवन (Social Life) में अनुकरण द्वारा सीखने का प्रचलन अधिक है। किसी प्रतिमान (Model) के व्यवहार को देखकर बालक उसका अनुकरण करके उसके साथ तादात्म्य करने का प्रयास करता है। अर्थात किसी प्रतिमान द्वारा किए गए विशिष्ट व्यवहार के अवलोकन से अर्जित नवीन प्रतिक्रियाओं को ग्रहण करना ही अनुकरणात्मक सीखना कहलाता है।

बालकों के लिए ऐसे अनुकरणीय प्रतिमान अल्बर्ट बान्डुरा (Albert Bandura) के अनुसार प्रौढ़ व्यक्ति के लिए अधिक सार्थक होते हैं।

मुख्य बिंदु – अधिगम में अधिगमकर्ता (Learner) किसी प्रतिमान को देखता और सुनता है। अधिगमकर्ता प्रतिमान द्वारा किए गए व्यवहार को ज्ञानात्मक प्रक्रियाओं द्वारा मस्तिष्क में संग्रहित करता है। बालक प्रतिमान द्वारा किए गए व्यवहार के परिणामों का निरीक्षण करता है।

इसके बाद अधिगमकर्ता स्वयं प्रतिमान के व्यवहार का अनुकरण करके सबलीकरण की आशा करता है।

सबलीकरण धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है। लोगों से धनात्मक पुष्टिकरण मिलने पर बालक उस व्यवहार को सीख लेता है और किसी व्यवहार के प्रति लोगों का नकारात्मक होने पर उस व्यवहार को त्याग देता है।

अल्बर्ट बंडूरा का जीवन परिचय

सामाजिक अधिगम (Social Learning) पर कार्य करने वाले अल्बर्ट बान्डुरा (Albert Bandura) का जन्म 4 दिसंबर 1925 को कनाडा के अल्बर्ट प्रदेश में हुआ था। यह 1953 से स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में शिक्षण कार्य कर रहे थे। 28 जुलाई 2021 को 85 वर्षीय कनेडियन मनोवैज्ञानिक अल्बर्ट बन्डूरा का निधन हो गया है।

बान्डुरा ने बालकों द्वारा किए जाने वाले व्यवहारों की क्रिया – प्रतिक्रिया पर अध्ययन किया। इन्होंने अपने सिद्धांत को सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धांत (Social Cognitive Theory) नाम से प्रतिपादित किया।

इस सिद्धांत को इन्होंने विस्तृत रूप से 1986 में स्वलिखित पुस्तक Social Foundations of Thought & Action में उल्लेखित किया है।

इनके अनुसार व्यवहारों का अर्जन दूसरों के व्यवहार के निरीक्षण से होता है। व्यक्ति के व्यवहारों हेतु अभिप्रेरणा (Motivation) कारक एवं स्वनियंत्रण तंत्र उत्तरदायी होता है। इन्हें सामाजिक अधिगम (Social Learning) के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हेतु थार्नडाइक “एवार्ड फॉर डिसटिनगुइश्ड कन्ट्रीब्यूशन्स ऑफ साइकोलॉजी टू एजूकेशन” नामक पुरस्कार दिया गया।

बंडूरा का प्रयोग

बंडूरा ने अनेक प्रयोग किए हैं। हम लोगों के जीवन में प्रतिदिन अनेक प्रतिमान आते हैं और उनके व्यवहारों का अनुकरण करते हैं। यही स्थिति बालक के सामने पैदा होती है।

एक बालक दूरदर्शन पर प्रदर्शित चलचित्र में हीरो के कार्यकलापों को देखकर उसके व्यवहार को अपने मस्तिष्क में संग्रहित कर लेता है। बालक वहां अन्य लोगों को भी उसके व्यवहार की प्रशंसा करता देखता है। वही बालक घर पहुंचने पर अपने माता पिता के सामने वैसा ही व्यवहार करता है।

इस स्थिति में यदि माता पिता उसके व्यवहार की प्रशंसा करते हैं तो वह उस व्यवहार को करना सीख लेता है और यदि माता-पिता उस व्यवहार को पसंद नहीं करते हैं तो वह इस व्यवहार को नहीं सीखेगा।

1963 में बंडूरा ने अपने अध्ययन में दो स्थितियां रखी :

(1) बंडूरा ने बालकों को ऐसे मॉडल दिखाएं जो एक खेल के कमरे में आक्रामक व्यवहार कर रहे थे। बंडूरा ने पाया कि निरीक्षण करने वाले बालकों ने भी आक्रामक व्यवहार वैसी ही परिस्थितियों में किया।

(2) दूसरी स्थिति मे अवरोध के प्रभाव को देखा गया। यह देखा गया कि आक्रामक व्यवहार करने पर दंडित किया जाता है तो उन बालकों के सीखने में दंड एक अवरोध के रूप में आ गया। इसके कारण उन्होंने आक्रामक व्यवहार बंद कर दिया। यदि निरीक्षण करने वाले बालक देखते हैं कि आक्रामक व्यवहार वाले बालकों को दंडित नहीं किया गया तो विशेष स्थिति में वैसा व्यवहार करते हैं।

बंडूरा ने संक्षेप में मॉडल की विशेषताओं के बारे में लिखा है कि वह मॉडल जो आदरपूर्ण होते हैं, पुरस्कृत कर सकते है,योग्य है या जिसका स्तर उच्च होता है के व्यवहार का अनुकरण शीघ्रता से कर लिया जाता है। प्रायः शिक्षक और अभिभावक बालक के अनुकरणात्मक व्यवहार पर अधिक प्रभाव डालते हैं।

सामाजिक अधिगम की परिभाषा

लिण्डग्रेन के अनुसार, “सामाजिक अधिगम की प्रक्रिया संपर्क के कारण आरंभ होती है”।

लिण्डग्रेन ने बताया है की सामाजिक अधिगम संपर्क से आरंभ होता है।

सिकोर्ड एवं बैकमैन ने सामाजिक अधिगम के विषय में लिखा है, “सामाजिक अधिगम का एक अधिक सामान्य रूप भूमिका अधिगम है, जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति दूसरे उन व्यक्तियों, जिनकी समान भूमिका स्थित है, के समान व्यवहार करना और समान ढंग से देखना सीखता हो।”

बंडूरा तथा सिकोर्ड व बैकमैन द्वारा दी गई परिभाषाओं से सामाजिक अधिगम के विषय में यह निश्चित किया जा सकता है कि बालक दूसरे बालकों के अनुसार अपने व्यवहार को परिवर्तित कर सकता है। उसे अपने जीवन में अंगीकार कर लेता है। अर्थात बालक द्वारा समाज के निर्धारित व्यवहारों को धारण करना तथा असामान्य व्यवहारों का त्याज्य सामाजिक अधिगम कहलाता है।

किसी प्रतिमान द्वारा किए गए विशिष्ट व्यवहार के अवलोकन से अर्जित नवीन प्रतिक्रियाओं को ग्रहण करना ही अनुकरणात्मक सीखना कहलाता है। अल्बर्ट बंडूरा थ्योरी के अनुसार व्यवहार व्यक्तियों के अनुभव में वृद्धि करता है।

इसके अनुप्रयोगात्मक विधियों के द्वारा निरीक्षण मापन व परिवर्तन आदि तत्वों को स्थान दिया गया। इस सामाजिक अधिगम प्रक्रिया में किसी एक तत्व में परिवर्तन करके उसके प्रभाव को दूसरे तत्व पर देखा गया।

बंडूरा ने इसी सिद्धांत को अपने साथी वाल्टर्स के सहयोग से प्रतिपादित किया। इन्होंने इस सिद्धांत की बंडूरा की दूसरी पुस्तक “सामाजिक अधिगम तथा व्यक्तित्व विकास” (Social Learning & Personality Development) नामक पुस्तक में विस्तृत रूप से चर्चा की है।

सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory) हेतु उन्होंने अनेक प्रयोग किए, जैसे एक प्रयोग में कुछ बालकों को एक फिल्म दिखायी जिसमें एक व्यस्क व्यक्ति के व्यवहार को प्रदर्शित किया गया। उस फिल्म में तीन भाग है, उन चयनित बालकों को प्रथम फिल्म दिखायी जिसमें फिल्म का नायक आक्रामक व्यवहार करता है और इस प्रकार के व्यवहार के लिए दंड भी दिया जाता है।

दूसरी फिल्म में भी अभिनेता आक्रामक व्यवहार करता है किंतु इसमें उस नायक को पुरस्कृत किया जाता है। इसी प्रकार तृतीय फिल्म में नायक को आक्रामक व्यवहार के लिए न तो पुरस्कृत किया जाता है और ना ही दंडित किया जाता है।

इन तीनों प्रकार की फिल्में दिखाने के बाद बालकों को बंडूरा ने वैसी ही परिस्थिति में रखा। इन विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में रखकर बालकों का निरीक्षण किया गया तो पाया गया कि बालकों में उस व्यवहार का अनुकरण अपेक्षाकृत कम किया गया जो बालक के आक्रामक व्यवहार और दंड से संबंधित था।

इस प्रकार बालक अंतः क्रिया द्वारा व्यवहार करते हैं। अंतः क्रिया व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से दोनों प्रकार की हो सकती है। सामाजिक जीवन में अनुकरण करके शीघ्र अधिगम किया जा सकता है। अर्थातः किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए विशिष्ट व्यवहार के अवलोकन से अर्जित नवीन प्रतिक्रियाओं को अपनाना ही अनुकरणात्मक सीखना या सामाजिक अधिगम होता है।

अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत
अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. सामाजिक अधिगम का सिद्धांत किस घटक पर बल देता है?

    उत्तर : सामाजिक अधिगम का सिद्धांत पोषण घटक पर बल देता है।

  2. बंडूरा ने सामाजिक अधिगम सिद्धांत कब दिया था?

    उत्तर : बंडूरा ने सामाजिक अधिगम सिद्धांत को विस्तृत रूप से 1986 में स्वलिखित पुस्तक Social Foundations of Thought & Action में उल्लेखित किया है।

  3. बंडूरा सिद्धांत क्या है?

    उत्तर : मॉडल द्वारा व्यवहार में रूपांतर लाने का सिद्धांत (Bandura theory of behaviour modification through modelling) ही बंडूरा का सिद्धांत है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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