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स्वतंत्रता से संबंधित अवधारणाएं

इस आर्टिकल में स्वतंत्रता (Liberty) से संबंधित अवधारणाएं जैसे उदारवादी, स्वेच्छातंत्रवादी, समतावादी, मार्क्सवादी, व्यक्तिवादी और आदर्शवादी आदि के बारे में चर्चा की गई है।

स्वतंत्रता की उदारवादी अवधारणा

स्वतंत्रता की उदारवादी अवधारणा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समानता जैसे अन्य मूल्य से अधिक वरीयता देती है। व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा में राज्य की भूमिका पर बल देती हैं। स्वतंत्रता की उदारवादी विचारधारा नकारात्मक स्वतंत्रता के साथ जुड़ी हुई है।

स्वतंत्रता की स्वेच्छातंत्रवादी अवधारणा

समकालीन उदारवाद के अंतर्गत नकारात्मक स्वतंत्रता और अहस्तक्षेप नीति को उचित ठहराते हैं। स्वतंत्रता की स्वेच्छातंत्रवादी धारणा के प्रतिपादक आइज़िया बर्लिन, मिल्टन फ्रीडमैन, रॉबर्ट नॉजिक एवं एफ ए हेयक है।

यह विचारधारा व्यक्ति की स्वतंत्रता को सार्वजनिक नीति का प्रामाणिक आधार मानती है। केवल औपचारिक समानता की बात की जाती है। कल्याणकारी राज्य को अस्वीकार करती है।

स्वतंत्रता की स्वेच्छातंत्रवादी अवधारणा मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था (Free Market Economy) को स्वतंत्रता का मूल मंत्र मानती है। राज्य के न्यूनतम हस्तक्षेप को समर्थन देती है।

नॉजिक, “व्यक्ति की स्वतंत्रता को सबसे बड़ा खतरा इस बात से है कि उस व्यक्ति पर उसकी सहमति के बिना ही दायित्व थोप दिए जाएं।”

फ्रीडमैन, “पूंजीवाद स्वतंत्रता की आवश्यक शर्त है।”

हेयक, “स्वतंत्रता के नाम पर स्वेच्छातंत्रवाद का समर्थन करता है।”

स्वतंत्रता की समतावादी अवधारणा

स्वतंत्रता की समतावादी अवधारणा सकारात्मक स्वतंत्रता से संबंधित है। इनका मानना है कि राज्य का उत्तरदायित्व स्वतंत्रता को सर्वोच्च मूल्य और उसका लाभ वंचित स्तरो तक पहुंचाने का है।

स्वतंत्रता की समतावादी आधारणा के समर्थक मैकफर्सन, जॉन रॉल्स (समान स्वतंत्रता) है।

स्वतंत्रता की मार्क्सवादी अवधारणा

स्वतंत्रता की मार्क्सवादी अवधारणा के अनुसार समाजवाद ही स्वतंत्रता को बढ़ावा दे सकता है। पूंजीवाद या मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत स्वतंत्रता नहीं हो सकती।

मार्क्सवादियों की प्रारंभिक रचनाओं में स्वतंत्रता का मानवतावादी आधार है। ये सकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं।

मार्क्सवाद के अनुसार एक भूखे व्यक्ति (आर्थिक स्वतंत्रता) के लिए अभिव्यक्ति (राजनीतिक स्वतंत्रता) की स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।

मार्क्सवाद स्वतंत्रता का अध्ययन ऐतिहासिक तथा समाजशास्त्र के संदर्भ में करता है। मार्क्सवाद के अनुसार प्रारंभिक समाजवादी समाज में सभी व्यक्तियों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी किंतु कालांतर में वर्ग समाज के उदय ने इसे समाप्त कर दिया।

मार्क्सवाद के अनुसार राज्य एक कृत्रिम संस्था है। इसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली वर्ग के हितों की रक्षा के लिए हुई है। अतः जब तक राज्य में वर्ग विभाजन रहेगा तब तक राज्य अपने जन्मदाता संपत्तिशाली वर्ग के हितों का संरक्षक बना रहेगा और तब तक मनुष्यों को वास्तविक अर्थ में स्वतंत्रता प्राप्त न हो सकेगी।

मार्क्सवाद के अनुसार सच्ची स्वतंत्रता तो तर्कसंगत उत्पादन प्रणाली में ही संभव है जिससे उत्पादन के साधन पर संपूर्ण समाज का स्वामित्व होगा और शोषण की स्थिति समाप्त हो जाएगी।

मार्क्स के अनुसार पूंजीवाद समाज में स्वतंत्रता का अर्थ तो हो ही नहीं सकता यह केवल समाजवाद में ही संभव है।

मार्क्सवाद के अनुसार सच्ची स्वतंत्रता वर्ग भेद की समाप्ति पर ही संभव है जिसके लिए वह क्रांति द्वारा पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करने पर जोर देता है। वह स्वतंत्रता की प्राप्ति तथा इसे बनाए रखने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों को आवश्यक मानता है।

मार्क्सवादी विचारक स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष पर बल देते हैं। मार्क्सवादी केवल उतनी ही स्वतंत्रता देने के पक्ष में है जो सभी व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास और समान विकास के लिए संभव तथा उचित हो तथा जो समाजवादी व्यवस्था के अनुरूप हो।

स्वतंत्रता की आदर्शवादी अवधारणा

स्वतंत्रता की आदर्शवादी अवधारणा के समर्थक हीगल, ग्रीन, बोसांके, ब्रेटली, प्लेटो, फिक्टे आदि है।

आदर्शवाद के अनुसार कानून के पालन में ही स्वतंत्रता निहित है तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राज्य में रहकर ही संभव है।

हिगल, “स्वतंत्रता का लाभ केवल राज्य में ही हो सकता है क्योंकि राज्य बुद्धि की साक्षात मूर्ति है।”

“स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ कानून का पालन करना।”

“राज्य को स्वतंत्रता की पूर्ण अभिव्यक्ति माना।”

टी एच ग्रीन स्वतंत्रतावादी व समष्टिवादी विचारक था। समुदाय के हितों को व्यक्ति के हितों से ऊपर माना और व्यक्ति के हितों को समाज के हितों में समाहित कर दिया।

स्वतंत्रता की व्यक्तिवादी अवधारणा

स्वतंत्रता की व्यक्तिवादी अवधारणा के समर्थक जे एस मिल, एडम स्मिथ, हरबर्ट स्पेंसर, सिजविक, हंबोल्ट आदि है।

व्यक्तिवादियों के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ “प्रतिबंधों का अभाव” है। अर्थात व्यक्ति को अपने अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता। जे एस मिल का कहना है कि कानून ही नहीं वरन सामाजिक प्रथा एवं नैतिक धारण का भी बंधन नहीं होना चाहिए।

18 वीं – 19 वीं शताब्दी में व्यक्तिवादियों ने राज्य के नियंत्रण को व्यक्ति के लिए हितकारी समझा। राज्य के कार्यों और कानून के नियंत्रण को कम से कम माना।व्यक्तिवाद स्वतंत्रता और कानून को एक दूसरे का विरोधी मानते हैं। आधुनिक व्यक्तिवाद स्वतंत्रता की मांग व्यक्ति के लिए करता है। स्वतंत्रता को निजी अधिकारों के रूप में मानता है।

स्वतंत्रता की व्यक्तिवादी अवधारणा एक निषेधात्मक विचारधारा है। अराजकतावादी (Anarchist) और श्रमसंघवादी (Trade Unionist) भी इसी प्रकार की विचारधारा है वे राज्य के नियंत्रण को नहीं मानते।

विलियम गोल्डविन – एक अराजकतावादी विचारक (Anarchist Thinker) है। विलियम गोल्डविन, “कानून स्वतंत्रता के लिए सबसे हानिकारक संस्था है।”

एडम स्मिथ ने “अहस्तक्षेप के सिद्धांत” का समर्थन किया और राज्य को दो प्रकार के कार्य सौंपे – सुरक्षा और न्याय।

हरबर्ट स्पेंसर – कृति “व्यक्ति बनाम राज्य”. राज्य को व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक माना। स्पेंसर के इस विचार को ‘सामाजिक डार्विनवाद’ (Social Darwinism) की अभिव्यक्ति माना जाता है। उसके अनुसार कम योग्य व्यक्तियों को अधिक योग्य व्यक्तियों के पक्ष में अपने हितों का बलिदान कर देना चाहिए।

हरबर्ट स्पेंसर ने कल्याणकारी कार्यक्रमों का विरोध किया और माना कि यह कर्मठ लोगों के विरुद्ध अन्याय है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. स्वतंत्रता की स्वेच्छातंत्रवादी धारणा के प्रतिपादक कौन है ?

    उत्तर : स्वतंत्रता की स्वेच्छातंत्रवादी धारणा के प्रतिपादक आइज़िया बर्लिन, मिल्टन फ्रीडमैन, रॉबर्ट नॉजिक एवं एफ ए हेयक है।

  2. स्वतंत्रता की समतावादी धारणा के समर्थक कौन है ?

    उत्तर : स्वतंत्रता की समतावादी धारणा के समर्थक मैकफर्सन, जॉन रॉल्स है।

  3. मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था को स्वतंत्रता का मूल मंत्र मानने वाली विचारधारा है ?

    उत्तर : स्वतंत्रता की स्वेच्छातंत्रवादी अवधारणा मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था (Free Market Economy) को स्वतंत्रता का मूल मंत्र मानती है।

  4. व्यक्तिवादियों के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ है ?

    उत्तर : व्यक्तिवादियों के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ “प्रतिबंधों का अभाव” है। अर्थात व्यक्ति को अपने अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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