सविनय अवज्ञा आंदोलन : शुरुआत, समापन और परिणाम

इस आर्टिकल में सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement in hindi), सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत कब हुई, सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम क्या रहें, सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त कैसे हुआ आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि

नेहरू प्रतिवेदन में भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की गई, साथ ही यह चेतावनी भी दी गई कि यदि 1 वर्ष के भीतर इसे स्वीकार नहीं किया गया तो वह पूर्ण स्वराज्य की मांग प्रस्तुत करेगी। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस की मांग व चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया।

1929 में कांग्रेस ने प्रतिक्रिया स्वरूप पूर्ण स्वराज्य की मांग को स्वीकार किया। 31 दिसंबर 1929 की मध्यरात्रि को रावी नदी के तट पर वंदे मातरम तथा इंकलाब जिंदाबाद के नारों के बीच पूर्ण स्वराज्य को लक्ष्य बनाया गया।

26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने को कहा गया, इसके बाद प्रतिवर्ष यह दिन इसी प्रकार मनाया जाता रहा। इस प्रकार संपूर्ण देश में असंतोष का वातावरण था।

कांग्रेस द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन करने का निर्णय

14-16 फरवरी 1930 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने गांधीजी को सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने के संपूर्ण अधिकार दे दिए। इसके बाद गांधीजी ने एक लेख में वायसराय से 11 शर्तें मानने के लिए कहा गया। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसकी प्रतिक्रिया में दमन चक्र चलाया। फलत: सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया गया।

सविनय अवज्ञा का अर्थ क्या है

शिष्टतापूर्वक सरकार के नियमों व कानूनों का उल्लंघन करना। हिंसात्मक मार्ग अपनाते हुए सरकारी आदेशों की अवहेलना करना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना, खादी के वस्त्रों का प्रयोग, किसी भी प्रकार का कर न देना, सरकारी कर्मचारियों का नौकरी से इस्तीफा देना, विद्यार्थियों द्वारा स्कूलों व कॉलेजों का बहिष्कार करना आदि।

राजनीति के क्षेत्र में सविनय अवज्ञा का तात्पर्य अन्याय पूर्ण कानूनों के रूप में विद्यमान दोषों तथा बुराइयों को दूर करने से है। गांधीजी ने इसे सिविल नाफरमानी आंदोलन भी कहा है।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत

सविनय अवज्ञा आंदोलन के संघर्ष की शुरुआत कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन से हुई। इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 31 दिसंबर 1929 को पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने का निश्चय किया गया। स्त्रियों ने पहली बार भाग लिया था।

गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 सहयोगियों के साथ दांडी यात्रा के लिए प्रस्थान किया। 6 अप्रैल 1930 के दिन नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आंदोलन का श्रीगणेश किया।

राजगोपालाचारी, त्रिचनापल्ली में वेदारण्यम, मालाबार में वैकम ने जन समूह का नेतृत्व करते हुए समुद्र तटों पर जाकर नमक बनाया। आंदोलन की तीव्रता महाराष्ट्र के शोलापुर नगर में सबसे ज्यादा देखने को मिली। वहां के मजदूरों ने नगर पर कब्जा कर लिया और एक सरकार की स्थापना कर ली।

ब्रिटिश सरकार ने सैनिक कानून (मार्शल लॉ) लागू कर वहां स्थिति को सामान्य किया। 16 अप्रैल 1930 को जवाहरलाल नेहरू व अन्य कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 5 मई 1930 को गांधी जी को गिरफ्तार कर यरवदा जेल भेज दिया गया। दमन चक्र का उग्र रूप धरासना नमक कारखाने पर देखने को मिला।

इस आंदोलन में भारतीय मुसलमानों ने भाग नहीं लिया। भारत के उदारवादी नेताओं ने कांग्रेस और सरकार के मध्य समझौता कराने का प्रयास किया लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या कारण रहे

(1) औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग पर ध्यान नहीं देना : नेहरू प्रतिवेदन 1928 में भारत के लिए औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की गई थी। कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से नेहरू रिपोर्ट को पूर्ण रूप से स्वीकार करने को कहा, साथ ही यह चेतावनी भी दी कि यदि 1 वर्ष के अंदर ब्रिटिश सरकार ने औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग स्वीकार नहीं की तो वह पूर्ण स्वराज्य की मांग प्रस्तुत करेगी। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के सुझावों व चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया।

(2) पूर्ण स्वराज्य की मांग : ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य नहीं दिए जाने के कारण कांग्रेस ने 1929 में कठोर रुख अपनाया और लाहौर अधिवेशन में इसके स्थान पर पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई तथा 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने को कहा गया था। इसके बाद प्रतिवर्ष यह दिन इसी प्रकार मनाया जाता रहा।

(3) देश की आंतरिक स्थिति : इस समय संपूर्ण भारत आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा था। श्रमिक और व्यापारी सभी असंतुष्ट थे। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के क्रांतिकारी कार्यों तथा लाहौर षड्यंत्र केस के कारण भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा था। इस प्रकार सन 1930 के प्रारंभ में संपूर्ण देश में असंतोष का वातावरण था।

(4) गांधीजी की 11 शर्तों पर ध्यान नहीं देना : यद्यपि 14-16 फरवरी 1930 को साबरमती में कांग्रेस कार्यकारिणी ने गांधीजी को सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने के संपूर्ण अधिकार दे दिए थे, तथापि गांधी जी ने सरकार को एक और अवसर प्रदान किया।

गांधी जी ने अपने साप्ताहिक पत्र यंग इंडिया में लिखे एक लेख में वायसराय को 11 शर्ते मानने के लिए कहा। यदि इन शर्तों को सरकार स्वीकार कर ले तो सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ नहीं किया जाएगा। इन शर्तों में प्रमुख शर्त थी :

  • नमक पर लगने वाला कर समाप्त हो।
  • सैनिक व्यय कम किया जाए।
  • अधिकारियों का वेतन आधा कर प्रशासनिक व्यय में कमी की जाए।
  • विदेशी वस्तुओं पर तटकर लगाया जाए।
  • सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए आदि।

ब्रिटिश सरकार ने इन मांगों पर ध्यान देना तो दूर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी प्रारंभ कर दी। ऐसी स्थिति में आंदोलन आरंभ करना आवश्यक हो गया था।

ब्रिटिश सरकार द्वारा समझौते का प्रयास

आंदोलन की तीव्रता को देखकर ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस से समझौता करने का निश्चय किया। 9 जुलाई 1931 को वायसराय ने कांग्रेस के सामने गोलमेज सम्मेलन का प्रस्ताव रखा जिसमें औपनिवेशिक स्वराज्य पर विचार विमर्श किया जाएगा।

डॉ. तेज बहादुर सप्रू ने कांग्रेस को गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए राजी करने का प्रयास किया, लेकिन वे अपने प्रयास में असफल रहे।

कांग्रेस द्वारा बहिष्कृत प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को लंदन के जेम्स महल में हुआ। इस सम्मेलन में मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, नरम दल के नेताओं ने भाग लिया। यह सम्मेलन असफल रहा। इस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड थे।

गांधी इरविन समझौता और आंदोलन की समाप्ति

26 जनवरी 1931 को गांधी जी तथा कांग्रेस कार्यकारिणी को बिना शर्त रिहा कर दिया गया। वायसराय इरविन व गांधीजी के बीच 15 दिन लंबी बातचीत के बाद 5 मार्च 1931 को एक समझौता हुआ, जिसकी शर्ते निम्न है :

  • सरकार उन सभी राजनीतिक बंदियों को मुक्त कर देगी जिन्होंने हिंसक कार्यवाही में हिस्सा नहीं लिया।
  • सभी अध्यादेश व चालू मुकदमे वापस ले लेगी।
  • सरकार समुंद्र के समीप रहने वाले लोगों को बिना कर लिए नमक एकत्रित करने तथा बनाने का अधिकार देगी।
  • सरकार सत्याग्रहियों की जब्त की हुई संपत्ति को वापस कर देगी।
  • उन सभी सरकारी कर्मचारियों को नौकरी में लेने का आश्वासन दिया जिन्होंने आंदोलन के दौरान अपनी नौकरी से त्यागपत्र दिए थे।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित किया जाएगा
  • महात्मा गांधी निष्पक्ष जांच की मांग छोड़ेंगे।
  • कॉन्ग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।9. सब बहिष्कार बंद करेंगे।

कराची अधिवेशन

जवाहरलाल लाल नेहरू ने भी इस समझौते से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि, “जब दुनिया का अंत होता है तो कोई धमाका नहीं होता, एक करूण सिसकी भर निकलती है।”

29 मार्च 1931 को कराची में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को श्रद्धांजलि तथा गांधी इरविन समझौते को मंजूरी दी गई। पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को दोहराते हुए गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी को भेजने का निश्चय किया गया।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन

1931 में लंदन में हुए द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने वाले भारतीयों में अधिकांश ब्रिटिश समर्थक थे। ब्रिटिश सरकार ने गोलमेज सम्मेलन में स्वाधीनता की मूल मांग पर विचार करने से ही इनकार कर दिया। इस प्रकार द्वितीय गोल में सम्मेलन भी असफल रहा।

नोट : ब्रिटिश सरकार ने तीन गोलमेज सम्मेलन क्रमशः 1930, 1931 तथा 1932 में आयोजित किए। कांग्रेस ने केवल द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। 5 मार्च 1931 को गांधी इरविन समझौता हुआ।

इसके अनुसार कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करके द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया था। तीनों ही सम्मेलन भारत की संविधान इस समस्या का समाधान नहीं कर सके। 1932 में गांधी जी ने आमरण अनशन किया जिसका परिणाम पूना पैक्ट के रूप में सामने आया।

मैकडोनाल्ड पंचाट तथा पूना पैक्ट समझौता

1932 के मैकडोनाल्ड पंचाट में भारत की दलित जातियों के लिए भी पृथक निर्वाचन का प्रावधान किया गया। गांधी जी ने इसके विरोध में उपवास किया। पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा आयोजित सम्मेलन प्रथमत: मुंबई में हुआ जो बाद में पुणे में आयोजित हुआ।

इस सम्मेलन में तत्कालीन दलित वर्ग के नेता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सहित विभिन्न जातियों एवं राजनीतिक दलों के नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में अंततः गांधीजी के आमरण अनशन के छठे दिन 25 सितंबर 1932 को समझौता हुआ जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है।

इसे बाद में ब्रिटेन की सरकार तथा हिंदू महासभा ने भी स्वीकार कर लिया। इसके अंतर्गत 2 शर्तों के आधार पर सामान्य निर्वाचन मंडल बनाए जाने के संबंध में सहमति हुई। यह दो शर्तें इस प्रकार थी :

  • विभिन्न आठ प्रांतों के विधान मंडलों (व्यवस्थापिका सभा) में दलित वर्गों के लिए 148 सीटें आरक्षित की गई।
  • केंद्रीय विधानमंडल (व्यवस्थापिका) में दलित वर्गों के लिए 18% सीटें आरक्षित की गई।

मई 1934 में पटना में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में आंदोलन बंद करने की घोषणा कर दी गई। गांधी जी ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और कहा कि कांग्रेसजनों व मेरे बीच दृष्टिकोण का अंतर है, इसलिए मैं कांग्रेस में नहीं रह सकता। इस आंदोलन में भारतीय मुसलमानों ने भाग नहीं लिया था।

5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक राजनीतिक समझौते के तहत सविनय अवज्ञान आंदोलन समाप्त कर दिया गया था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का योगदान

यह आंदोलन दूसरा महत्वपूर्ण राष्ट्रव्यापी आंदोलन था। असहयोग आंदोलन की तुलना में यह व्यापक था। इसमें जनता ने अधिक संख्या में भाग लिया था। नमक जैसे साधारण मुद्दे पर आंदोलन की सफलता भारतीय जनता की बढ़ती हुई राजनीतिक चेतना को बताती है।

इसमें मध्यमवर्ग, मजदूर, किसान सभी सम्मिलित हुए। इस आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब सरकार की नीतियों के विरुद्ध जनता अहिंसात्मक आंदोलन चलाने में कुशल हो गई थी। इसमें जनता ने अपनी श्रद्धा व निष्ठा का प्रदर्शन किया था।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू हुआ था?

    उत्तर : गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 सहयोगियों के साथ दांडी यात्रा के लिए प्रस्थान किया। 6 अप्रैल 1930 के दिन नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आंदोलन का श्रीगणेश किया।

  2. सविनय अवज्ञा आंदोलन कब समाप्त हुआ

    उत्तर : 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक राजनीतिक समझौते के तहत सविनय अवज्ञान आंदोलन समाप्त कर दिया गया था।

  3. गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को क्या नाम दिया था?

    उत्तर : गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को सिविल नाफरमानी आंदोलन भी कहा है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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