लार्ड कर्जन की दमनकारी नीति क्या थी

इस आर्टिकल में लार्ड कर्जन की दमनकारी नीतियों जैसे कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट 1899, भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904, शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1903, केंद्रीकरण की नीति, साम्राज्यवादी नीति, भारतीयों के प्रति अभद्र व्यवहार, बंगाल का विभाजन 1905 आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

लार्ड कर्जन की दमनकारी नीतियां

लार्ड कर्जन साम्राज्यवादी नीति में विश्वास करते थे। 1898 ई. में वह भारत के वायसराय बनकर आए तथा उन्होंने भारत विरोधी अनेक कार्य किए।

लार्ड कर्जन कुशल प्रशासक थे परंतु भारतीयों में घृणा करते थे। उन्होंने समय-समय पर दिए गए अपने भाषणों में भारतीयों के लिए अनेक अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। जिससे भारतीय अत्यधिक उग्र हो गए।

कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट 1899

Calcutta Corporation Act 1899 : लार्ड रिपन द्वारा स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में जो उत्तम कार्य किया गया था उसको लार्ड कर्जन ने समाप्त कर दिया।

कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट 1899 के द्वारा कलकत्ता कॉरपोरेशन के सदस्यों की संख्या 75 से घटाकर 50 कर दी गई।

इस अधिनियम का उद्देश्य यह था कि निगम तथा उसकी संपत्तियों में निर्वाचित भारतीय सदस्य अल्पमत में रह जाए और सरकारी सदस्यों का बहुमत हो जाए। जिससे निगम पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो जाए। निगम एंग्लो-इंडियन सभा के रूप में रह गया। इससे भारतीयों में असंतोष फैल गया था।

भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904

Indian Universities Act 1904 : भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904 का उद्देश्य भारतीय विश्वविद्यालयों पर अधिक सरकारी नियंत्रण स्थापित करना था।

इस अधिनियम को 1902 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति थॉमस रैले की अध्यक्षता में आयोग के सुझावों के आधार पर पारित किया गया।

इस अधिनियम द्वारा विश्वविद्यालयों की सिंडिकेट और सीनेट के सदस्यों की संख्या में कमी कर दी गई और 80% सदस्य सरकार द्वारा मनोनीत रखने का प्रावधान किया गया। और आंतरिक स्वतंत्रता को नष्ट कर दिया गया। इससे शिक्षित भारतीयों में असंतोष फैला।

शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1903

Official Secrets Act 1903 : इसके अनुसार सरकारी गतिविधियों का भेद देना दंडनीय बना दिया गया और समाचार पत्रों की स्वतंत्रता को मर्यादित कर दिया गया। सरकार की आलोचना पर प्रतिबंध लगाया गया तथा प्रेस की स्वतंत्रता नष्ट कर दी गई।

केंद्रीकरण की नीति (Centralization Policy)

लार्ड कर्जन ने केंद्रीकरण की नीति अपनाई। वह एकीकृत व केंद्रित शासन में विश्वास करता था। वह पदों पर भारतीयों की नियुक्ति का समर्थक नहीं था। वह शासन कार्य में भारतीयों की भागीदारी के पक्ष में नहीं था।

साम्राज्यवादी नीति (Imperial Policy)

लार्ड कर्जन की नीति साम्राज्यवादी थी। उसने पड़ोसी देशों में भी अपने साम्राज्यवादी नीति का विस्तार किया। कर्जन की सीमांत नीति, तिब्बत, फारस की खाड़ी तथा चीन में सैनिक दस्ते भेजने की घटनाओं से भारतीयों में काफी असंतोष फैला और इन कार्यों का काफी विरोध हुआ। सैनिक व्यय अत्यधिक बढ़ा दिया गया जबकि जनता भूखी मर रही थी। इससे भारतीय और अधिक उग्र हो गए।

भारतीयों के प्रति अभद्र व्यवहार

Indecent Behavior Towards Indians : लार्ड कर्जन का व्यवहार भारतीयों के प्रति अपमानजनक था। वह भारतीयों को शासन करने के योग्य नहीं मानता था। वह भारतीयों को अविकसित जाति मानता था तथा उच्च पदों के लिए भारतीयों को अनुपयुक्त मानता था। इस व्यवहार से भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई।

बंगाल का विभाजन 1905

Partition of Bengal 1905 : बंगाल का विभाजन का मूल उद्देश्य बंगाल में बढ़ती हुई राष्ट्रीय चेतना को कुचलना था। भारतीयों के मन में इससे अंग्रेजो के प्रति और भी घृणा उत्पन्न हुई।

अंग्रेजों की यह नीति ‘फूट डालो और राज करो’ के अनुरूप थी। जबकि अंग्रेजों ने बंगाल के विभाजन का कारण प्रशासनिक सुविधा माना परन्तु इसका कारण राजनैतिक अधिक था।

हालांकि कर्जन ने इस विभाजन को केवल प्रशासनिक सीमाओं का पुनर्व्यवस्थापन ही बताया। वस्तुतः यह विभाजन राष्ट्रीय एकता के लिए घातक था।

प्रशासनिक दृष्टि से भले ही बंग बंग को न्याय संगत बताया गया हो लेकिन बंगाल का विभाजन कर्जन की सबसे बड़ी भूल थी।

इससे भारतीय ब्रिटिश संबंधों में कटुता आ गई। हिंदुओं और मुसलमानों में वैमनस्य बढ़ा। इससे राष्ट्रीय आंदोलन को नई स्फूर्ति मिली। मजबूर होकर ब्रिटिश सरकार को 1911 में बंगाल विभाजन को रद्द करना पड़ा।

निष्कर्ष (Conclusion)

लार्ड कर्जन ने भारत के आधुनिकीकरण में विशेष भूमिका निभाई परंतु आज वे अपने कार्यों के लिए नहीं अपितु अपने विरोध में किए गए कार्यों के लिए स्मरण किया जाते हैं।

बुरे शासक परोक्ष रूप से ईश्वर का वरदान होते हैं। कर्जन की साम्राज्यवादी नीतियों के विरोध में जो प्रतिक्रिया हुई उसके फलस्वरूप भारत में राजनीतिक जागृति आई। उसकी कठोरता से भारत में राष्ट्रवाद की अधिक सशक्त भावना उपजी। वास्तव में न चाहते हुए भी वह भारत का हितकारी सिद्ध हुआ।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. लार्ड कर्जन के व्यक्तित्व की दो विशेषताएं लिखिए?

    उत्तर : 1. लार्ड कर्जन साम्राज्यवादी नीति में विश्वास करते थे।
    2. लार्ड कर्जन कुशल प्रशासक थे परंतु भारतीयों में घृणा करते थे।

  2. भारत में लार्ड कर्जन के शासन का अंत समय से पहले क्यों हो गया?

    उत्तर : लॉर्ड कर्जन का कार्यकाल 1899 से 1904 तक था। उसे ब्रिटेन ने अपने पक्ष में अच्छा मानकर उन्हें पुनः 1904 में भारत भेजा। इससे लार्ड कर्जन का अहंकार और निरंकुशता और भी बढ़ गई। कर्जन अपनी इच्छा से कुछ लोगों (ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों) की नियुक्ति की माँग की थी जिसे ब्रिटिश सरकार ने पूरा नहीं किया।

  3. भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम कब पारित किया गया था?

    उत्तर : भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम को 1902 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति थॉमस रैले की अध्यक्षता में आयोग के सुझावों के आधार पर 1904 में पारित किया गया।

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