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उदारवाद : परम्परागत, आधुनिक व नव-उदारवाद

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उदारवाद (Liberalism) आधुनिक युग की एक महत्वपूर्ण एवं प्रगतिशील विचारधारा है। यही कारण है कि 19वीं सदी को 'उदारवाद का युग' कहा जाता है।

यह न केवल एक विचारधारा है वरन् एक जीवन पद्धति एवं एक आंदोलन है जो मध्यकालीन रूढ़िवादी विचारधारा, जिसके अनुसार व्यक्ति का कोई स्वतंत्र अस्तित्व एवं अधिकार नहीं था, को  अस्वीकार कर नये विचारों को अपनाता है।
 इसके अनुसार व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता एवं अधिकारों को प्राप्त महत्व दिया जाता है। उदारवाद, राज्य, उच्च वर्ग या अन्य ऐसी संस्थाओं एवं व्यक्तियों द्वारा मनुष्य के शोषण का विरोध करता है। यह व्यक्ति की अच्छाई, प्रतिभा तथा स्वतंत्रता में विश्वास करता है।

उदारवाद का उदय एवं विकास The rise and development of liberalism

राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में उदारवाद का उदय अनेक प्रवृतियों का परिणाम है।

1.औद्योगिक क्रांति एवं पूंजीपति वर्ग का उदय
मघ्ययुग में लोगों का आर्थिक व धार्मिक जीवन स्वतंत्र नहीं था वे चर्च व सामंतों के नियंत्रण में होते थे। 18वीं शताब्दी के अंत में औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप बड़े कारखानों की स्थापना हुई। इसके परिणाम स्वरूप उत्पादन में वृद्धि हुई। इससे आर्थिक सत्ता सामंत वर्ग के हाथों से उच्च मध्यम वर्ग के हाथों में स्थानांतरित हो गई। नयें उद्योगपतियों व श्रमिक वर्ग का उदय हुआ।

इन उद्योगपतियों द्वारा अधिकतम लाभ कमाने के लिए राज्य के अहस्तक्षेपवादी स्वरूप का समर्थन किया गया। दूसरी और इन उद्योगपतियों द्वारा श्रमिक वर्ग का शोषण करने के कारण राज्य के नियंत्रण व हस्तक्षेप का विचार अस्तित्व में आया। इस प्रकार आर्थिक स्वतंत्रता की भावना उदारवाद का आधार बन गई।

2. निरंकुशतावाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया
 उदारवाद के उदय का प्रमुख कारण निरंकुशतावादी सरकारों के विरुद्ध प्रतिक्रिया था। 16 वीं व 17 वीं शताब्दी में यूरोप में निरंकुश राजतंत्र विद्यमान था। कुछ शासकों ने अपने आपको ईश्वर का अवतार कहकर निरंकुशतावाद की स्थापना की।

ऐसी स्थिति में जॉन लॉक, जे एस मिल, हरबर्ट स्पेंसर, टी एच ग्रीन ने व्यक्ति की स्वतंत्रता व अधिकारों की अवधारणा को प्रतिपादित किया जिससे उदारवाद का उदय हुआ।

"जॉन लॉक उदारवाद का जनक क्यों" के संबंध में डॉ. ए के वर्मा का वीडियो 👇

3. नवजागरण
 मध्य युग में मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों पर धर्म व चर्च का नियंत्रण था। व्यक्ति पारलौकिकता में विश्वास करता था। चिंतन का एकमात्र केंद्र ईश्वर होने के कारण प्रगति संभव नहीं थी, लेकिन नवजागरण ने व्यक्तियों के दृष्टिकोण को लौकिक बना दिया।

मध्ययुगीन अंधविश्वासों का खंडन कर मनुष्य को पुनः विवेकशील बनाया। इस प्रकार नवजागरण व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बल देकर उदारवाद का मार्ग प्रशस्त किया।

4. धर्म सुधार आंदोलन
 धर्म सुधार आंदोलन से पूर्व यूरोप में चर्च का आधिपत्य था। पोप को ईश्वर का प्रतिरूप समझा जाता था और धार्मिक मामलों में वह सर्वोच्च था। व्यक्ति उसका दास था। 16 वीं शताब्दी में मार्टिन लूथर ने पोप की इस निरंकुशता के विरुद्ध विद्रोह किया, लूथर के इस विद्रोह का काल्विन जैसे धर्म सुधारकों ने समर्थन किया।

इनकी यह धारणा थी कि धर्म व्यक्ति के निजी विश्वास की वस्तु है तथा  व्यक्ति व ईश्वर के मध्य संबंध के लिए चर्च के पोप की मध्यस्थता आवश्यक नहीं है। धर्म सुधार आंदोलन से इस भावना को बल मिला कि व्यक्ति को धार्मिक क्षेत्र में भी स्वतंत्र होना चाहिए। इस प्रकार इस धार्मिक आंदोलन ने व्यक्ति को चर्च की दासता से मुक्त कराने में अहम भूमिका का निर्वहन किया है।

उदारवाद का अर्थ

Meaning of Liberalism : उदारवाद की कोई निश्चित परिभाषा देना सरल नहीं है। लास्की के शब्दों में,
"उदारवाद की व्याख्या करना अथवा उनको परिभाषित करना सरल कार्य नहीं है क्योंकि उदारवाद कुछ सिद्धांतों का समूह मात्र नहीं वरन् प्रकृति का भी परिचायक है।"

मैक्स लर्नर ने इसे मध्य युग का सबसे अधिक विवादास्पद शब्द कहा है।
उदारवाद का वास्तविक अर्थ समझने के लिए उदारवाद के अंग्रेजी पर्याय 'लिबरलिज्म' (Liberalism) के मूल अर्थ को समझना चाहिए। लिबरलिज्म अंग्रेजी के लिबर्टी (Liberty) शब्द से बना है जिसका अर्थ है स्वतंत्रता, दास्तां व प्रतिबंधों से मुक्ति तथा इच्छानुसार सोचने व कार्य करने का अधिकार है।

लिबरल का अर्थ है उदार, शिष्ट, पक्षपात रहित, पूर्वाग्रह रहित तथा लिबरलिज्म का अर्थ है उदार तथा विचारों की संकीर्णता से मुक्त, लोकतांत्रिक व्यवस्था व संवैधानिक परिवर्तनों में विश्वास करने वाली विचारधारा।

उदारवाद के प्रकार

Types of Liberalism : मूल उदारवाद से आधुनिक युग तक हुए परिवर्तनों की दृष्टि से उदारवाद के तीन प्रकार स्वीकार किए गए हैं -
  1. परंपरागत उदारवाद या नकारात्मक उदारवाद या शास्त्रीय उदारवाद
  2. आधुनिक उदारवाद या सकारात्मक उदारवाद
  3. नवउदारवाद या समकालीन उदारवाद

1. परंपरागत उदारवाद या नकारात्मक उदारवाद या शास्त्रीय उदारवाद

 उदारवाद का प्रारंभिक स्वरूप नकारात्मक था। उदारवाद निरंकुश राजतंत्र और सामंतवाद के विरुद्ध व्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग से प्रारंभ हुआ। उदारवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता, विवेकशीलता और व्यक्तिवाद पर बल देता है। परंपरागत उदारवाद में राज्य को व्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोधी माना गया क्योंकि राज्य के नकारात्मक कार्यों से व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता तथा अधिकारों का हनन होता है।

इसलिए परंपरागत (नकारात्मक) उदारवादी राज्य को आवश्यक बुराई मानते हैं। उन्होंने राज्य के अहस्तक्षेपवादी स्वरूप पर बल दिया है। जॉन लॉक, जेम्स मिल, जे एस मिल, एडम स्मिथ, रिकार्डों, बेन्थम, हॉबहाउस आदि को परंपरागत उदारवाद का समर्थक माना जाता है।

परंपरागत उदारवाद की प्रमुख विशेषताएं निम्न है 

  • व्यक्ति की स्वतंत्रता में आस्था।
  • व्यक्ति पर किसी भी प्रकार के बंधनों का विरोध।
  • निरंकुश व स्वेच्छाचारी कानून का विरोध।
  • विधि व विवेकयुक्त शासन में आस्था। 
  • अहस्तक्षेपवादी राज्य में विश्वास।
  • व्यक्ति अपने शरीर, मस्तिष्क और हितों का सर्वोच्च निर्णायक होता है।
  • व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों - जीवन, संपत्ति व स्वतंत्रता की सुरक्षा बल।
  • व्यक्ति की स्वामीविहीन अवधारणा में आस्था।
  • सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक संस्थाओं के औचित्य का आधार उपयोगिता हो।
  • आवश्यक होने पर सत्ता के विरुद्ध संघर्ष व क्रांति भी उचित।

2. सकारात्मक (आधुनिक) उदारवाद

19वीं शताब्दी में उदारवादी विचारों ने परंपरागत उदारवाद में समय की मांग के अनुसार संशोधन व परिवर्तन किया, जिसे हम आधुनिक सकारात्मक उदारवाद कहते हैं। आधुनिक उदारवाद मूल उदारवाद की समाप्ति नहीं है, अपितु यह समाजवादी युग के प्रसंग में मूल उदारवाद का नवीन संस्करण है।

आधुनिक उदारवादियों में की एच ग्रीन, रिची, हॉब्सन, कीन्स, ही भी मेकफर्सन  एवं लास्की प्रमुख है।

आधुनिक उदारवाद के समर्थक राज्य को एक आवश्यक बुराई नहीं मानते हैं। वे राज्य को लोगों के हितों के विकास एवं सुरक्षा के लिए एक सकारात्मक और कल्याणकारी संस्था मानते हैं। उदारवादी जनता के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक दायित्वों की पूर्ति हेतु राज्य द्वारा सकारात्मक भूमिका को उचित मानते हैं।

उदारवादी संवैधानिक प्रजातांत्रिक व संसदीय तरीकों से समाज में सामाजिक व आर्थिक सुधार लाना चाहते हैं। ये अपेक्षा करते हैं कि नागरिकों में व्याप्त भूख, गरीबी और बीमारी जैसी बुराइयों का निवारण करें तथा लोगों की प्रगति व विकास के लिए निरंतर प्रयास करें। सकारात्मक (आधुनिक) उदारवाद की प्रमुख विशेषताएं निम्न है-
  • राज्य एक नैतिक एवं कल्याणकारी संस्था है। यह एक आवश्यक बुराई नहीं है।
  • व्यक्ति और राज्य एक-दूसरे के विरोधी नहीं सहयोगी एवं पूरक है।
  • सभी नागरिकों का सर्वांगीण विकास करना राज्य का दायित्व है।
  • व्यक्ति की स्वतंत्रताएं व अधिकार राज्य द्वारा संरक्षित है।
  • राज्य का अर्थव्यवस्था पर संपूर्ण नियंत्रण है।
  • राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक परिवर्तन के लिए राज्य द्वारा संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक विधियों को अपनाया जाना चाहिए।
  • राज्य की शक्तियां असीमित नहीं है उन पर यथोचित मर्यादाएं होनी चाहिए।
  • लोकप्रभुता एवं विधि के शासन में अटूट आस्था।

परंपरागत उदारवाद और आधुनिक उदारवाद में तुलना

यद्यपि परंपरागत व आधुनिक उदारवाद के दोनों ही स्वरूप व्यक्ति को संपूर्ण व्यवस्था का केंद्र बिंदु मानते हैं। वे व्यक्ति को साध्य मानते हुए राज्य सहित अन्य सभी संगठनों को एक साधन के रूप में मानते हैं। दोनों ने ही व्यक्ति की स्वतंत्रता व अधिकारों को सर्वोपरि माना है। व्यक्ति को स्वामीविहीन मानते हैं। नकारात्मक व सकारात्मक उदारवाद के अंतर को निम्न बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है -
१. प्रमुख समर्थकों की दृष्टि से अंतर - परंपरागत उदारवाद का समर्थन जॉन लॉक, एडम स्मिथ, रिकार्डो, बेंथम आदि ने किया। आधुनिक उदारवाद का समर्थन टी एच ग्रीन, रिची, हॉब्सन, किन्स, लास्की आदि ने किया।

२. विकास के आधार पर अंतर - परंपरागत उदारवाद का विकास 16 से 18 वीं शताब्दी के बीच हुआ जबकि आधुनिक उदारवाद का विकास 19वीं शताब्दी से वर्तमान तक माना जाता है।

३. उदय के कारणों के आधार पर अंतर - परंपरागत उदारवाद के विकास के पीछे निरंकुश राजतंत्र सामंतवाद व पोपवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया कारण रहे जबकि आधुनिक उदारवाद का उदय पूंजीवादी व्यवस्था तथा मार्क्सवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।

४. राज्य के प्रति धारणा के आधार पर अंतर - परंपरागत उदारवादी राज्य को एक आवश्यक मानते हैं जबकि आधुनिक उदारवादी राज्य को आवश्यक बुराई नहीं मानते।

५. राज्य के स्वरूप के आधार पर अंतर - परंपरागत उदारवादी अहस्तक्षेपवादी (लैसेज फेयर) राज्य में आस्था रखते हैं। जबकि आधुनिक उदारवादी लोक कल्याणकारी राज्य में विश्वास रखते हैं।

६. स्वतंत्रता के आधार पर अंतर - परंपरागत उदारवादी व्यक्ति की असीमित स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं जबकि आधुनिक उदारवादी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर सामाजिक व राज्य हित में प्रतिबंध आवश्यक मानते हैं।

७. अधिकारों की दृष्टि से अंतर - परंपरागत उदारवादी व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों को नैसर्गिक मानते हैं। जबकि आधुनिक उदारवाद व्यक्ति के अधिकारों को राज्य द्वारा प्रदत व संरक्षित मानते हैं।

८. सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से अंतर - परंपरागत उदारवादी सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में राज्य की न्यूनतम भूमिका को स्वीकार करते हैं। आधुनिक उदारवादी सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिए राज्य की भूमिका व्यापक रूप से स्वीकार करते हैं।

इस प्रकार परंपरागत उदारवाद व आधुनिक उदारवाद में अंतर पाया जाता है लेकिन दोनों ही प्रकार के समर्थक व्यक्ति को साध्य व राज्य को साधन मानते हैं। दोनों ही उदारवादी एक दूसरे के पूरक है।

नव उदारवाद या समकालीन उदारवाद

Neo-Liberalism : हेरल्ड जे लास्की ने बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में राज्य के उदारवादी सिद्धांत को आगे बढ़ाया। लास्की के अनुसार लोगों द्वारा संपदा अर्जित करने पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, परंतु संपन्न वर्ग पर भारी कर लगाकर आर्थिक विषमताओं को कम किया जाना चाहिए।

आर एम मैकाइवर ने अपनी कृति 'द मॉर्डन स्टेट' में तर्क दिया कि राज्य को विभिन्न साहचर्यो (Associations) की गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। वहां परस्पर विरोधी वर्गों के आपसी संबंधों को अपने आप समायोजित होने के लिए स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता। राज्य को न्याय के आधार पर इन संबंधों का नियमन करना चाहिए। मैकाइवर ने सेवाधर्मी राज्य (Service state) का समर्थन किया है।

👉 नव उदारवाद क्या है संबंधी डॉ ए के वर्मा का वीडियो 👇

20 वीं सदी में राज्य ने अपने नागरिकों के कल्याण की दिशा में सकारात्मक भूमिका निभाना प्रारंभ कर दिया तब से लोक कल्याणकारी राज्य का उदय हुआ। लोक कल्याणकारी राज्य के विकास में औद्योगिक क्रांति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

इस तरह जब राज्य ने केवल कर वसूलने एवं कानून व व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित नहीं रहा वरन् व्यक्ति के कल्याण के दायित्व को भी संभाल लिया तो लोक कल्याणकारी राज्य का उदय हुआ।

1970 के पश्चात राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप के अंतर्निहित दोष प्रकट होने लगे। लोक कल्याण के नाम पर राज्य के कार्य क्षेत्र को इतना अधिक बढ़ा दिया गया कि उन कार्यों को संपन्न करना राज्य के लिए कठिन हो गया। राज्य अधिभारित (Over Burdened) हो गया और राज्य के समक्ष गंभीर संकट उत्पन्न होने लगे। ऐसी स्थिति में यह विचार प्रकट हुआ कि राज्य अपने कार्यक्षेत्र को सीमित करें एवं निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन दें।

लोक कल्याणकारी राज्य की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप  समकालीन उदारवाद का उदय हुआ। समकालीन उदारवाद को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है -
  1. स्वेच्छातंत्रवाद (Libertarianism) और 
  2. समतावाद (Egalitarianism)।
• स्वेच्छातंत्रवाद की मान्यताएं
१. समकालीन उदारवाद के अंतर्गत जो सिद्धांत व्यक्ति की नकारात्मक स्वतंत्रता पर बल देता है और अहस्तक्षेप की नीति को उचित ठहराने के लिए नया आधार प्रस्तुत करते हैं उसे स्वेच्छातंत्र  की संज्ञा दी गई।
२. निर्धन वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए धनवान वर्ग पर कर लगाना अनुचित है।
३. समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए कराधान का अर्थ होगा एक व्यक्ति के श्रम के फल को बलपूर्वक दूसरे को स्थानांतरित करना।
४. इसके विपरीत यदि राज्य किसी व्यक्ति को त्याग के लिए बाध्य नहीं करेगा तो वे सब व्यक्ति समाज को अपना अपना सर्वोत्तम योगदान दे पाएंगे।
५. चरम स्वेच्छातंत्रवादी (Extreme Libertarians) ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जिसमें सुरक्षागत कार्य एवं अनुबंधों के प्रवर्तन संबंधी कार्य निजी अभिकरणों (Private Agencies) को सौंप दिए जाएंगे।
६. संयत स्वेच्छातंत्रवादी (Moderate Libertarians) यह मानते हैं कि ऐसे कार्य सरकार को सौंप देने चाहिए किंतु सरकार इन कार्यों के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य न करें।
७. प्रजा पर करारोपण केवल सुरक्षागत कार्यों को संपन्न करने के लिए किया जाए।
८. स्वेच्छातंत्रवाद के उन्नायकों में एफ ए हेयक, आइजिया बर्लिन, मिल्टन फ्रीडमैन और रॉबर्ट नोजिक के नाम उल्लेखनीय हैं।

समतावाद की मान्यताएं
१. समतावाद सकारात्मक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना राज्य का उत्तरदायित्व मानता है, उन्हें समतावाद की श्रेणी में रखा जाता है।
समतावादी ऐसी व्यवस्था का समर्थन करते हैं जिसमें समर्थ और संपन्न वर्गों के साथ-साथ निर्बल, निर्धन और वंचित वर्गों को भी अपने स्वतंत्रता के प्रयोग के लिए अनुकूल परिस्थितियां और पर्याप्त अवसर प्राप्त होने चाहिए।
२. समतावाद समाज के सभी सदस्यों को एक श्रृंखला की कड़ियां मानता है जिसमें मजबूत कड़ियां, कमजोर कड़ियों की स्थिति से अप्रभावित नहीं रह सकती।
३. समतावाद के समर्थक उन विचारों की कड़ी आलोचना करते हैं जो स्वतंत्रता के नाम पर समाज के कमजोर और वंचित वर्गों की आवश्यकताओं पर कोई ध्यान नहीं देते।
४. यह सिद्धांत व्यक्ति के सकारात्मक स्वतंत्रता को राज्य का उत्तरदायित्व मानते हैं।
५. इनका मत है कि स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक विषमता का निवारण भी आवश्यक है।
६. इसके प्रमुख प्रतिपादक जॉन रॉल्स और सी बी मैकफर्सन है।

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My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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