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राजनीतिक दबाव समूह क्या है | भारतीय दबाव समूह

दबाव समूह क्या है

दबाव समूह (Pressure Group) अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नीति निर्माताओं को प्रभावित करने वाले ऐसे संगठन है जिनका संबंध विशिष्ट मसलों से होता है। 20 वीं सदी में सर्वप्रथम अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था में जन्मे दबाव समूह को सर्वव्यापी मान्यता मिल चुकी है‌।

सर्वप्रथम 1908 में आर्थर बेंटले की पुस्तक द प्रोसेस ऑफ गवर्नमेंट (The Process of Government) में दबाव समूहों का क्रमबद्ध अध्ययन किया गया। इसके बाद पीटर ऑडीगार्ड ने अमेरिकी नशाबंदी आंदोलन पर एक आधिकारिक अध्ययन प्रस्तुत किया।

ब्रिटेन में 1850 ईस्वी के निकट तथा भारत में मुख्यतः स्वतंत्रता के पश्चात दबाव समूह औपचारिक रूप से विकसित हुए हैं।

दबाव समूह जिन्हें 'अज्ञात साम्राज्य', 'अदृश्य सरकार' कहा जाता है, इस कारण से महत्वपूर्ण है कि प्रशासन को प्रभावित करने के साथ-साथ शासन को निर्णय ले सकने में सहायक सूचनाओं का एकत्रीकरण करते हैं। लोकमत का शिक्षण, सरकार की निरंकुशता का सीमांकन, समाज एवं शासन के मध्य संतुलन की स्थापना एवं जनता के मध्य संवाद के मंच के रूप में कार्य करना इनकी उपयोगिता के अन्य कारण है।

दबाव समूहों की विधान निर्माण में परामर्श एवं सहायता के कारण उन्हें 'विधानमंडल के पीछे का विधानमंडल' कहा जाता है। दबाव समूह के कारण ही कुशासन की आलोचना, अत्याचारी शासन के विरुद्ध जनजागरूकता द्वारा जनमत तैयार किया जाता है। भिन्न-भिन्न वर्गों एवं दबाव समूहों की सक्रियता से विविध वर्गों की मांगों में संतुलन बनाए रखा जा सकता है। दबाव समूहों की विविध मांगों में संतुलन बनाए रखने की प्रवृत्ति के कारण समाज में कोई व्यक्तिगत समुदाय संपूर्ण शासन शक्ति हस्तगत नहीं कर सकता है।

ऑडीगार्ड के अनुसार, "दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है जिसके एक अथवा अधिक सामान्य उद्देश्य एवं स्वार्थ हो और घटनाक्रम को, विशेष रूप से सार्वजनिक नीति के निर्माण और शासन को इसलिए प्रभावित करने का प्रयत्न करें कि उनके अपने हितों की रक्षा और वृद्धि हो सके।"

मायरन वीनर, "दवाब समूह ऐसे ऐच्छिक समूह है, जो प्रशासकीय ढांचे से बाहर हो और कर्मचारियों के नामांकन अथवा नियुक्ति, सार्वजनिक रीतियों को अपनाए जाने, उनके प्रशासन और निर्वाचन को प्रभावित करने का प्रयास करता हो।"

दबाव समूह की विशेषताएं

  • दबाव समूह के सीमित उद्देश्य एवं सीमित सदस्यता होती है। दबाव समूह की सदस्यता केवल अपने वर्ग तक ही सीमित होती है।
  • दबाव समूह की प्रवृत्ति सर्वव्यापक होती है।
  • कार्य संपादन के लिए संवैधानिक तथा असंवैधानिक साधनों का प्रयोग करते हैं।
  • शासन पर आधिपत्य जमाने की इच्छा नहीं रखते हैं। उनका लक्ष्य शासन के विभिन्न अंगों पर दबाव डालकर अपना कार्य निकालना होता है।
  • दबाव समूह के साधन
  • दबाव समूहों के साधन नैतिक एवं अनैतिक दोनों तरह के होते हैं।
  • प्रचार एवं आंकड़ों का प्रशासन
  • गोष्ठियां एवं सम्मेलन
  • दबाव समूह की अवधि निश्चित होती है।
पीटर ऑडीगार्ड ने दबाव समूह को दो भागों में बांटा है -
  1.  सैक्शनल और
  2. काज (Cause)

जब कोई दवाब समूह लंबे समय तक कार्य करने के लिए संगठित होता है तो उसे सैक्शनल या चिरकालीन समूह कहा जाता है। यदि थोड़े समय या एक ही हित की रक्षा के लिए दबाव समूह का गठन होता है तो उसे कॉज (Cause) कहा जाता है।

लॉबिंग (Lobbying) - व्यवस्थापिका सभा भवनों के कक्षों (लॉबी Lobby) में जाकर प्रत्यक्ष रूप से विधायकों से संपर्क स्थापित कर उन पर दबाव डालते हैं कि वे ऐसी विधि का निर्माण करें जिससे उनके (दबाव समूहों) हितों का संरक्षण हो सके।

अमेरिकी शासन व्यवस्था में दबाव समूह का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। चार्ल्स डी. एरियन के अनुसार, "संभवत 1000 से अधिक व्यक्ति कांग्रेस के सत्र के दौरान सक्रिय एवं लॉबिस्ट के रूप में कार्य करते हैं।"

निर्वाचनों के माध्यम से हित संरक्षण - प्रभावशाली दबाव समूह 'अपरोक्ष दबाव नीति' के तहत चुनावों के समय उन प्रत्याशियों का चुनाव के दौरान समर्थन करते हैं जिनसे उन्हें चुनाव के अनुकूल लाभ प्राप्ति की संभावना हो।

कार्यपालिका के सदस्यों को प्रभावित करने के लिए प्रचार, प्रर्दशन, घेराव एवं हड़ताल का सहारा लेते हैं।

भारत, अमेरिका, ब्रिटेन में दबाव समूह नौकरशाही को प्रभावित करने के लिए पहले तो नियुक्ति, ट्रांसफर की प्रक्रिया को प्रभावित कर उपकृत करते हैं। धन, विरोध प्रदर्शन एवं निंदा का भय दिखाकर नौकरशाही को प्रभावित करते हैं। विविध कर्मचारी संघ एक प्रकार के दबाव समूह ही है।

इसके अतिरिक्त दबाव समूह द्वारा उग्र, आलोचनात्मक एवं प्रदर्शनकारी साधनों का भी प्रयोग किया जाता है। हड़ताल, जुलूस एवं रैली आदि का प्रयोग किया जाता है। प्राय: औद्योगिक एवं व्यवसायिक दबाव समूहों द्वारा धन खर्च कर अपने साध्यों की प्राप्ति की जाती है।

भारतीय दबाव समूह (Indian Pressure Group)

1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ऐसा दबाव संगठन था जिसका लक्ष्य अंग्रेजी शासकों से कुछ विशेष रियायतें प्राप्त करना था। आमण्ड एवं कोलमैन, "दक्षिण एशिया के प्रारंभिक आधुनिक समुदाय यथार्थ में हित समुदाय ही थे, न कि राजनीतिक दल। कांग्रेस, मुस्लिम लीग आदि का ध्येय तो मात्र मध्यम वर्ग के हितों की अभिवृद्धि करना था। इसलिए इन्हें प्रारंभिक हित समूह कहा जा सकता है।"

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में दबाव समूहों के उद्भव के प्रमुख कारण लोककल्याणकारी राज्यों का सिद्धांत, आर्थिक क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप की नीतियां और व्यक्तिवाद से समाजवाद की ओर बढ़ता हुआ झुकाव रहें हैं।

मोरिस जॉन्स ने अपनी कृति 'द गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स ऑफ इंडिया' (The Government and Politics of India) में भारतीय राज्य व्यवस्था की तीन भाषाएं या प्रतिरुप व्यक्त किए हैं। प्रथम और तृतीय भाषा का संबंध दबाव समूह से है। उन्होंने द्वितिय भाषा का प्रतिरूप आधुनिक को, प्रथम और तृतीय प्रतिरूप परंपरावादी एवं संतों की भाषा से प्रभावित माना है।

किसी भी समाज में दबाव समूहों की प्रकृति एवं उसकी विशेषताएं मुख्य रूप से सरकारी ढांचे, उसके कार्य तथा सामाजिक आर्थिक संदर्भ पर निर्भर करते हैं। भारत में दबाव समूह पश्चिमी दबाव समूह से भिन्न है।

भारत में दबाव की राजनीति का विश्लेषण करने वाली प्रथम वैज्ञानिक रचना प्रो. मायरन वीनर कृत 'पॉलिटिक्स ऑफ स्कैरसिटी' है। भारतीय राजनीति में व्यवसायिक दबाव की भूमिका का सूक्ष्म अध्ययन करने वाला एक अन्य ग्रंथ स्टेनली कोचनीक का 'बिजनेस एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया' है।

भारत में दबाव समूहों की विशेषताएं

भारत में वर्ग या हित संगठन आर्थिक या सामाजिक आधार पर न होकर पुरानी जात पात के आधार पर हुआ है।

विभिन्न हित या वर्ग राजनीतिक दलों या गुटों के जरिए ही सरकार को प्रभावित कर सकते हैं।

भारत में परंपरावादी दबाव समूह अपने हितों की अभिव्यक्ति के लिए चुनाव और राजनीतिक दलों का प्रयोग करते हैं, जबकि आधुनिक दबाव समूह कार्यपालिका और नौकरशाही को प्रभावित करते हैं।

समुदायात्मक दबाव समूहों पर राजनीतिक दलों का नियंत्रण होता है। व्यापार उद्योग हित समूह नियंत्रण से स्वायत है।

• स्वतंत्र भारत में आर्थिक हितों के अनुसार दबाव समूह चार प्रकार के हैं -

भारत में दबाव समूहों के प्रकार :

  1. व्यवसायिक - भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल संघ
  2. श्रमिक - अखिल भारतीय मजदूर कांग्रेस, भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस
  3. कृषि - कृषक समाज, किसान सभा
  4. राज्य कर्मचारी संघ - डॉक्टर, वकील, अध्यापक, सरकारी कर्मचारी आदि।

आमण्ड एवं पावेल के अनुसार दबाव समूह के प्रकार :

प्रसिद्ध विद्वान आमण्ड एवं पावेल ने संरचनात्मक तथा हित संचरण के आधार पर दबाव समूहों को विभक्त किया है। आमण्ड एवं पावेल मॉडल के आधार पर चार समूह है -

1. संस्थानात्मक दबाव समूह

 व्यवस्थापिकाओं, नौकरशाही, सेना तथा कार्यपालिका में ही कुछ हित विशेषज्ञों के इर्द-गिर्द बनने वाले समूहों को कहा जाता है।

इन दबाव समूहों में राजनीतिक दलों ने अपने आंतरिक संगठन (भाजपा - राष्ट्रीय कार्यकारिणी, कांग्रेस - कार्य समिति, संसदीय बोर्ड), नौकरशाही के संगठन, सेना के संगठन, मुख्यमंत्री क्लब आदि शामिल है।

2. समुदायात्मक/संसर्गात्मक दबाव समूह

अपने हित सरंक्षण के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं। ये हितों की अभिव्यक्ति के ऐसे विशेषीकृत संघ होते हैं जिसकी मुख्य विशेषता विशिष्ट हितों की पूर्ति होती है।

जैसे - श्रमिक संघ, व्यवसायिक संघ, कृषक संघ, छात्र संघ, हिंदू महासभा, कायस्थ सभा, पारसी एसोसिएशन, सरकारी कर्मचारियों के संघ आदि। भारत में वर्तमान समय में लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के श्रमिक संघ हैं।

3. असमुदायात्मक/संघेतर दबाव समूह

अनौपचारिक रूप से अपने हितों की अभिव्यक्ति करते हैं। ये संगठित नहीं होते हैं और इनमें सांप्रदायिक और धार्मिक समुदाय, जातीय समुदाय, गांधीवादी समुदाय, भाषागत समुदाय तथा सिंडीकेट तुर्क आदि शामिल हैं। जैसे -

धार्मिक समुदाय - आर एस एस, विश्व हिंदू परिषद, नैयर सेवा समाज, बजरंग दल।

जातीय समुदाय - तमिलनाडु में नाडार जाति संघ, आंध्र प्रदेश में कामा तथा रेडी जातीय समुदाय, कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिंगा, राजस्थान में जाट- राजपूत गुट, गुजरात में क्षत्रिय महासभा।

गांधीवादी समुदाय - सर्व सेवा संघ, सर्वोदय, भूदान, खादी ग्रामोद्योग संघ, गांधी प्रतिष्ठान।

सिंडिकेट तुर्क - कांग्रेश के प्रभावशाली नेताओं का समूह जो 1960 से 70 के मध्य सिंडिकेट के नाम से तथा 1969 के पश्चात कांग्रेस के युवा नेताओं का संगठन, त्वरित आर्थिक परिवर्तन में विश्वास करने वाले 'युवा तुर्क' के नाम से जाने जाने वाला समूह भी इस अवधि में सरकारी नीतियों को प्रभावित करने में ये संगठन सफल हुए हैं।

4. प्रदर्शनकारी / चमत्कारी दबाव समूह

वे समूह जो अपनी मांगों को लेकर अवैधानिक उपायों का प्रयोग करते हुए हिंसा, राजनीतिक हत्या, दंगे और अन्य आक्रामक रवैया अपना लेते हैं। प्रदर्शनकारी दबाव किसी विशेष नीति को बनवाने या बदलने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।

जैसे - पंजाब, जम्मू कश्मीर एवं देश के पूर्वोत्तर भाग में आंदोलन एवं हिंसा।

भारत में दबाव गुटों की कार्यशैली प्राय: गुप्त रहती है। दबाव गुटों द्वारा अनैतिक एवं असंवैधानिक साधनों का प्रयोग कर अपनी मांग मनवाई जाती है। भारत में दबाव हितों एवं राष्ट्रीय हितों के मध्य संतुलन कायम करना एक समस्या है।

दबाव गुटों द्वारा राष्ट्रीय हितों की तुलना में निजी हितों को प्राथमिकता दी जाती है। सार्वजनिक हितों के स्थान पर व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता देते हैं। राजनीति में दबाव व्यवस्था का सिद्धांत कमजोर है।

भारतीय व्यवस्था में ये समूह एक प्रकार से जनसाधारण और विशिष्ट जनों (Masses and Elite) के बीच कड़ी और संचार का साधन है। ये बढ़ती हुई हिस्सेदारी के लिए अवसर प्रदान करते हैं। दबाव समूह लोकतांत्रिक व्यवस्था का दूसरा नाम है और इन्हें 'लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्राणवायु' कहा जाने लगा है।

दबाव समूह अच्छे हैं या बुरे इस संबंध में सूचना एकत्र करना वैसा ही है जैसा इस संबंध में विचार करना कि हवाएं और ज्वार-भाटे अच्छे हैं या बुरे।" --- राशेल

 विभिन्न विचारकों द्वारा दबाव समूह के लिए प्रयुक्त शब्द

विचारक दबाव समूह के लिए प्रयुक्त शब्द
मेकिंग दिखाई ना देने वाली सरकार
SE फाइनर अज्ञात साम्राज्य
सेलीन एवं लैम्बर्ट औपचारिक सरकार (गैर सरकारी शासन)
बहुलवादी समूह
अक्सरीन,VOK,पिनॉक,स्मिथ दबाव समूह
आमण्ड,हिचनर,गैरीली,हवौल्ड हित समूह
शुम्पिटर गुमनाम सम्राज्य
एलन बॉल प्रभावक गुट
एलन पाटर संगठित समूह
My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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