इस आर्टिकल में भारतीय आदर्शवादी विचारक अरविंद घोष का जीवन परिचय, अरविंद घोष की पुस्तकें, अरविंद घोष के समाचार-पत्र और पत्रिकाएं, महर्षि अरविन्द का योग दर्शन, अरविंद घोष के राजनीतिक विचार, अरविंद घोष का राष्ट्रवाद आदि के बारे में चर्चा की गई है।
अरविंद घोष का जीवन परिचय
Arvind Ghosh Biography : अरविंद घोष या महर्षि अरविन्द घोष (Aurobindo Ghosh) का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता (बंगाल) में हुआ था। अरविंद घोष की पत्नी का नाम मृणालिनी देवी था। भारतीय आदर्शवादी विचारक अरविंदो घोष (Aurobindo Ghosh) ने अपनी कर्मभूमि पांडिचेरी को बनाया तथा कर्म क्षेत्र कवि, दार्शनिक एवं स्वतंत्रता सेनानी के रूप में रहे।
आधुनिक भारत के ऐसे राजनीतिक विचारक थे जिन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का महान उन्ननायक माना जाता है। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ निकट से जुड़े थे और उन्होंने भारत की पूर्ण स्वाधीनता की मांग पर बल दिया। उन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से सार्वभौमिक मोक्ष का दर्शन प्रतिपादित किया था। योगी अरविंद के गुरु हंसस्वरूप स्वामी और सद्गुरु ब्रह्मानंद थे।
श्री अरविंद ने 1890 में 18 वर्ष की आयु में ही ICS (Indian Civil Service) प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण की किंतु घुड़सवारी की परीक्षा में असफल रहे। उन्होंने ब्रिटिश सेवा करना उचित नहीं समझा। अरविंद घोष (Aurobindo Ghosh) ने बड़ौदा के गायकवाड के यहां 1893 से 1906 तक नौकरी की। 1905 में बंगाल विभाजन के कारण अरविंद घोष ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया।
अरविंद घोष (Aurobindo Ghosh) ने धार्मिक आस्था से प्रेरित बंग भंग आंदोलन का नेतृत्व किया तथा अलीपुर बम कांड के अंतर्गत 1908 में अरविंदो को गिरफ्तार कर अलीपुर जेल भेज दिया गया। रिहाई के बाद घोष में क्रांतिकारी परिवर्तन आया तथा आध्यात्मिकता की और उन्नमुख हो गये।
30 मई 1909 को उत्तरपाड़ा (पश्चिमी बंगाल) में एक संवर्धन सभा की गई। वहां अरविंद ने एक प्रभावशाली व्याख्यान दिया जो ‘उत्तरपाड़ा अभिभाषण’ (Uttarpara Speech) के नाम से प्रसिद्ध हुआ था।
1910 में उन्होंने फ्रांसीसी उपनिवेश पांडिचेरी को अपनी कर्मस्थली बनाया। पांडिचेरी में उन्होंने एक आश्रम बनाया जहां उन्होंने अपना शेष जीवन पूरी तरह से अपने दर्शन को विकसित करने में लगा दिया।
उन्होंने वहां एक आध्यात्मिक विकास के अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र के रूप में एक Sri Aurobindo Asharam की स्थापना की जिसकी और विश्व भर के छात्र आकर्षित हुए। आज भी पांडिचेरी में अरविंद घोष का आश्रम दार्शनिकों के आकर्षण का केंद्र है।
इस आश्रम का नेतृत्व फ्रांसिसी महिला मीरा अल्फासा द्वारा अपनी मृत्यु 1926 तक किया। फ्रांसिसी मीरा अल्फासा पांडिचेरी आश्रम में माता जी के नाम से विख्यात थी।
5 दिसंबर 1950 को 78 वर्ष की आयु में अध्यात्म में लीन इस महान कवि, दार्शनिक और राष्ट्रवाद के उन्नानयक का पांडिचेरी में निधन हो गया। अरविंद घोष को पांडिचेरी का संत कहा जाता है। भारत सरकार ने 1964 में श्री अरविंद की स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया था।
विभिन्न विचारकों ने अरविंदो घोष को निम्न प्रकार से उपमा दी –
रोमेन रोला – ‘भारतीय विचारकों का राजा’ और ‘एशिया तथा यूरोप की प्रतिभाओं का सर्वोत्कृष्ट समन्वय’।
दिलीप कुमार राय – ‘भारत का महानतम जीवित योगी’।
डॉ. फ्रेड्रिक स्पीजलबर्ग – ‘वसुंधरा का पथ प्रदर्शक तारा’ तथा ‘हमारे युग का अवतार’।
अरविंद घोष की पुस्तकें (Aurobindo Ghosh Books List)
- Bankim-Tilak (बंकिम-तिलक)
- Dyanand (दयानंद)
- The Synthesis of Yoga (सिंथेसिस ऑफ़ योगा)
- The Basis of Yoga
- Essay on Geeta
- Defense of Indian Culture
- The Life Divine (द लाइफ डिवाइन, जीवन परमात्मा)
- Renaissance in India
- Riddle of the World
- The Mother
- The Ideal of Human Unity
- On The Veda
- A Legend and a sible
- Lotus Temple
- The Future Poetry
- Savitri (सावित्री) – महाकाव्य
- Dwarf Napoleon (वामन नेपोलियन)
Dwarf Napoleon (वामन नेपोलियन) – अंग्रेजी कि सबसे लम्बी कविता (28813 Lines) अरविंद घोष का सबसे बड़ा खंडकाव्य है।
अरविंद घोष के समाचार-पत्र और पत्रिकाएं
- New Lamps for Old (न्यू लैम्पस फॉर ऑल्ड)
- कर्मयोगी (साप्ताहिक पत्रिका)
- धर्म (साप्ताहिक पत्रिका)
- युगान्तर (दैनिक, बंगाली समाचार पत्र)
- अन्य (मासिक पत्रिका) – पांडिचेरी आश्रम में फ्रांसीसी मित्रों की सहायता से।
- वंदेमातरम् (अंग्रेजी, साप्ताहिक पत्रिका)
New Lamps for Old (न्यू लैम्पस फॉर ऑल्ड) – विष्णु शास्त्री पंडित द्वारा संचालित इंदुप्रकाश (आंग्ल – मराठी) नामक समाचार पत्र जो बंबई से प्रकाशित होता था उसमें अरविंद घोष ने 1893 में पत्र लिखे उन पत्रों का यह शीर्षक था। इन पत्रों में कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की गई थी।
महर्षि अरविन्द का योग दर्शन
Maharishi Aurobindo philosophy of Yoga : श्री अरविंद घोष ने योग की विद्या विष्णु प्रभाकर लेले से प्राप्त की थी। उनके दर्शन को वेदांत परिप्रेक्ष्य में ही समझा जा सकता है। स्वानुभूति के अतिरिक्त वेद, उपनिषद और पुराणों वस्तुतः उनके दर्शन के स्त्रोत हैं।
उनका दर्शन सर्व स्वीकृति का वर्णन है। अरविंद घोष का दर्शन और योग जीवन की दिव्यता पर बल देता है। विष्णु प्रभाकर लेले ने अरविंद को दिव्य चेतना से संपर्क करना सिखाया। तत्पश्चात श्री अरविंद ने दिव्य शक्ति के निर्देशन के अनुसार आचरण आरंभ किया। उन्होंने अनुभव किया की “मैं जो कार्य कर रहा हूं, वह परमात्मा का है मेरा अपना नहीं है।”
योगाभ्यास के फलस्वरूप वे अपने जीवन लक्ष्य के प्रति और अधिक सचेत हो गए। अब वे कोई कार्य अपनी इच्छा अनुसार नहीं अपितु परमात्मा की इच्छा से करते थे। ईश्वर की इच्छा के प्रति इतना पूर्ण समर्पित कोई अन्य व्यक्ति उनसे पूर्व और उपरांत राजनीतिक क्षेत्र में नहीं आया।
उनका दृढ़ विश्वास था कि संसार के दुख का निवारण केवल आत्मा के विकास से ही हो सकता है, जिसकी प्राप्ति केवल योग द्वारा ही संभव है। वे मानते थे कि योग से ही नई चेतना आ सकती है। उन्होंने माना की भारत अपनी एकता और स्वतंत्रता को केवल आवश्यक योग बल से प्राप्त कर सकता है।
अरविंद घोष के राजनीतिक विचार
Political views of Aurobindo Ghosh : अरविंद घोष के राजनीतिक विचार उनकी पुस्तक मानव एकता का आदर्श (The Ideal of Human Unity) में देखने को मिलते हैं। उन्होंने मानव की एकता के लिए स्वतंत्र राष्ट्रों के विश्व-संघ की स्थापना पर बल दिया।
कांग्रेस के नरमपंथी नेता ब्रिटिश शासन के अंदर स्वशासन प्राप्त करना चाहते थे। दूसरी और गरम दल के नेता पूर्ण स्वराज की मांग रखते थे। श्री अरविंद घोष का झुकाव भी गरम दल की ओर था। उन्होंने अपने आप को केवल राष्ट्रवादी (Nationalist) कहना पसंद किया। अरविंद घोष निष्क्रिय या शांतिपूर्ण प्रतिरोध (Passive Resistance) की नीति के रूप में राजनीतिक कार्रवाई की योजना बनाई जिसका वंदे मातरम के संपादकीय के अंतर्गत विस्तृत निरूपण किया।
नोट – वंदे मातरम श्री अरविंद घोष द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी साप्ताहिक समाचार पत्र है। इस पत्र में अरविंद को भड़काऊ लेख प्रकाशित करने के लिए 1907 में गिरफ्तार किया गया था।
श्री अरविंद स्वराज्य प्राप्ति के लिए हिंसा और अहिंसा क्रांतिकारी और संवैधानिक दोनों तरह के तरीके अपनाने का समर्थन किया था।
अरविंद घोष का राष्ट्रवाद
Nationalism of Aurobindo Ghosh : श्री अरविंद राष्ट्रवाद को एक आंदोलन ही न मानकर आस्था का विषय और मनुष्य का धर्म भी मानते हैं। उन्होंने राष्ट्रवाद को ऐसा धर्म बताया जो ईश्वर की देन है। राष्ट्रवाद आत्मा का संबल है।
अरविंद का राष्ट्रवाद नव वेदांत दर्शन पर आधारित था, जिसमें मानव एकता और ईश्वर में एकत्व पर विचार किया गया है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘लोटस टेंपल’ (Lotus Temple) में राष्ट्रवाद की विशेषताएं बतायी है। डॉ कर्ण सिंह ने अरविंद घोष को राष्ट्रवाद का पैगम्बर कहा है।
श्री अरविंद के राष्ट्रवाद का मूल मंत्र है भारत को विदेशी शासन से मुक्त कराना। श्री अरविंद के अनुसार स्वराज की मांग राष्ट्रवाद का स्वभाविक अंग है, क्योंकि कोई भी राष्ट्र विदेशी सत्ता के अधीन रहकर अपनी विलक्षण व्यक्तित्व और स्वतंत्र अस्तित्व को कायम नहीं रख सकता।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी संस्कृति भौतिकवाद से प्रेरित है और भारतीय संस्कृति को अध्यात्मवाद में अगाध आस्था है। सच्चे राष्ट्रवाद की भावना ही भारतीय संस्थाओं और संस्कारों को नष्ट होने से बचा सकती है। अरविंद का मानना था की यूरोप की नकल करके भारत अपना पुनरुत्थान कभी नहीं कर सकता।
श्री अरविंद का ध्येय केवल औपनिवेशिक शासन की जगह स्वशासन स्थापित करना ही नहीं था, परंतु उसे राष्ट्र का पुनर्निर्माण भी करना था, जो उनके राजनीतिक कार्यक्रम का एक हिस्सा था। श्री अरविंद ने दावा किया कि भारत अपनी आध्यात्मिक चेतना के बल पर संपूर्ण मानवता को मुक्ति का मार्ग दिखा सकता है और यह उसका कर्तव्य भी है।
श्री अरविंद घोष ने 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान बंगाल में क्रांतिकारी दल का संगठन किया और प्रचार व प्रसार हेतु अनेक शाखाएं खोली। 1907 में राष्ट्रीयता के साथ भारत को ‘भारत माता’ के रूप में वर्णित और प्रतिष्ठित किया था। बंगाल में घोष ने राष्ट्रवादी शक्तियों का नेतृत्व किया। वे स्वराज हेतु संवैधानिक आंदोलन की पद्धति को सर्वथा निष्फल मानते थे।
घोष ने अपने जीवन के अंतिम समय में भारत की स्वतंत्रता के लिए आध्यात्मिक बल पर विश्वास किया। उनका मानना था की भारत का उत्थान योग के द्वारा ही हो सकता है।
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद परिस्थितियों को देखते हुए अरबिंदो घोष (Aurobindo Ghosh) ने भविष्यवाणी की थी, “भारत एक बार फिर एशिया का नेता होकर समस्त भूमंडल को एकात्मा की मूलभूत श्रंखला में आबद्ध करने का महान कार्य संपन्न करेगा।”
निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय आदर्शवादी विचारक श्री अरविंद घोष (Sri Aurobindo Ghosh) का महत्वपूर्ण योगदान देशवासियों के समक्ष पूर्ण स्वाधीनता का आदर्श प्रस्तुत करना रहा है। उन्होंने राष्ट्रवाद को एक महान धार्मिक भावना बना दिया, उसे आध्यात्मिक बनाकर उन्होंने उसे उच्च स्तर पर ला दिया। यदि भारत को ऊंचा उठकर अपने स्व को प्राप्त करना है तो उसे अपनी अंतर्निहित आध्यात्मिकता को सचेत करना होगा।
उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को एक जन आंदोलन बनाकर उसे वास्तव में राष्ट्रीय बना दिया था। भारत की स्वतंत्रता को सर्वाधिक महत्व देते हुए श्री अरविंद ने उसे मानव एकता के आदर्श के साथ संबंध करने की आवश्यकता पर बल दिया।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
अरविंद के द्वारा भारत विश्व को अपना संदेश व्यक्त करेगा यह कथन किसने कहा?
उत्तर : अरविंद के द्वारा भारत विश्व को अपना संदेश व्यक्त करेगा यह कथन रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा।
अरविंद घोष द्वारा प्रारंभ अंग्रेजी साप्ताहिक का क्या नाम था?
उत्तर : अरविंद घोष द्वारा प्रारंभ अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका का नाम ‘वंदेमातरम’ था।
अरविंद घोष को भारतीय राष्ट्रवाद का पैगम्बर किसने कहा?
उत्तर : अरविंद घोष को भारतीय राष्ट्रवाद का पैगम्बर डॉ कर्ण सिंह ने कहा।
योगी अरविंद के गुरु का नाम क्या था?
उत्तर : योगी अरविंद के गुरु का नाम हंसस्वरूप स्वामी और सद्गुरु ब्रह्मानंद था।
अरविंद घोष ने राष्ट्रवाद को कौन-सा विशेष नाम दिया था?
उत्तर : अरविंद घोष ने राष्ट्रवाद को ‘आध्यात्मिक राष्ट्रवाद’ का नाम दिया।