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संप्रभुता के प्रकार : विधि अनुसार और तथ्य अनुसार

इस आर्टिकल में संप्रभुता के प्रकार या रूप विधि अनुसार संप्रभुता (de jure sovereignty) और तथ्य अनुसार संप्रभुता (de facto sovereignty) क्या है तथा विधि अनुसार और तथ्य अनुसार संप्रभुता में अंतर क्या है के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।

विधि अनुसार संप्रभुता क्या है (De Jure Sovereignty)

De Jure का शाब्दिक अर्थ – कानूनी रूप से/कानूनन/विधितः।

De Jure लैटिन भाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ ‘विधितः‘ होता है। जहाँ कानून की बात की जाती है वहाँ विधितः बतलाने के लिए De Jure शब्द काम में लिया जाता है।

संप्रभुता (Sovereignty) एक तथ्य का विषय है। इसलिए कभी-कभी यह जानना जरूरी हो जाता है कि तथ्यगत रूप से जिसके पास संप्रभुता हो सकती है, क्या वह वास्तविकता में भी उसका प्रयोग करता है? अधिकतर यह होता है कि कानूनी रूप से जिसे संप्रभुता प्राप्त होती है वही वास्तविकता में उसका प्रयोग करता है।

कभी-कभी ऐसे अवसर भी आते हैं जब कानूनी रूप से संप्रभुता प्राप्त व्यक्ति या व्यक्ति समूह अपने आदेशों का पालन नहीं करा पाता और जिस व्यक्ति का आदेश प्रभावशाली होता है उसके हाथ में कानूनी शक्ति नहीं होती।

दूसरे प्रकार के व्यक्ति को वास्तविकता संप्रभु (De Facto Sovereign) कहा जाएगा, क्योंकि यद्यपि उसे कानून ने शक्ति प्रदान नहीं की है किंतु फिर भी वह अपने आदेशों का लोगों की बहुसख्यांं से स्वेच्छापूर्वक पालन करा सकता है।

विधि अनुसार संप्रभुताधारी वह व्यक्ति या संस्था है जो कानूनी रूप से प्रभुतासत्ता का अधिकारी हो। विधि के अनुसार सम्प्रभु वह है जिसे राज्य के कानून के तहत सर्वोच्च शक्ति प्राप्त हो, जिसके पास आदेश देने तथा आज्ञा पालन कराने का वैध अधिकार (Legally Rights) होता है। सामान्य रूप से यही वास्तविक संप्रभुताधारी भी होता है।

विधि अनुसार संप्रभुता के साथ कानूनी मान्यता अवश्य जुड़ी रहती है। किसी देश में विधि अनुसार संप्रभुता (De Jure Sovereignty) किसी सम्राट, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या संसद के हाथ में रहती है।

तथ्य अनुसार संप्रभुता क्या है (De Facto Sovereignty)

De Facto का शाब्दिक अर्थ होता है : वास्तव में, वास्तविक, वस्तुतः, यथार्थ, तथ्यतः, हकीकत में, असल में, सचमुच में।

De facto लेटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “जो तथ्य पूर्ण हो या जो व्यवहार में हो”। इसके लिए हिंदी में तथ्यतः शब्द काम में लिया जाता है।

तथ्य अनुसार या वास्तविक संप्रभु (De Jure and De Facto Sovereignty) जो राज्य के सर्वोच्च पद पर अवैधानिक तरीके से अपनी शक्ति के बल पर आसीन होता है। उसकी सत्ता विधि पर आधारित न होकर शक्ति पर आधारित होती है।

विशेष परिस्थितियों में तथ्य अनुसार या वास्तविक संप्रभुता किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था के हाथ में आ जाती है जिसे कानूनी रूप से प्रभुसत्ताधारी (sovereign) के रूप में मान्यता न हो। ऐसी स्थिति में तथ्य अनुसार संप्रभुता विधि अनुसार संप्रभुता से भिन्न होती है।

तथ्य अनुसार प्रभुसत्ताधारी वास्तव में प्रभुसत्ता का प्रयोग करता है जिसके आदेश की पालना राज्य की जनता स्वेच्छा या दबाव से करती है। तथ्यपरक संप्रभुता पर सशस्त्र बल या धर्म का प्रभाव हो सकता है। यह संप्रभुता किसी तानाशाह के हाथ में रहती है। यथार्थ संप्रभुता का स्थायित्व इस बात पर निर्भर करता है कि साथ ही साथ वैधानिक (De Jure) हो।

जब कभी संप्रभुता के इन दोनों रूपों के बीच विरोध होता है अर्थात कानूनन संप्रभु वास्तविक नहीं होना और वास्तविक संप्रभु कानूनन नहीं होना, तो राज्य में अराजकता (Anarchy) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

विधि अनुसार और तथ्य अनुसार संप्रभुता में अंतर

Difference between De jure and De facto sovereignty : संप्रभुता के इन दोनों रूपों के बीच विचारको ने पर्याप्त अंतर दिखाया है। लार्ड ब्राइस ने यह माना था कि जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह अपनी तथा सबकी इच्छा को क्रियान्वित करा सकता है वह यथार्थ अथवा वास्तविक शासक है, चाहे वह कानून के अनुसार हो अथवा कानून विरुद्ध।

इस प्रकार वास्तविक सत्ताधारी वह है जिसकी आज्ञा का यथार्थ में पालन किया जाता है। प्रायः देखा जाता है कि इस प्रकार के संप्रभु की शक्तियां शारीरिक एवं आध्यात्मिक प्रभाव पर निर्भर करती है।

विधि अनुसार और तथ्य अनुसार संप्रभुता में अंतर राज्य में क्रांति के समय देखने को मिलता है। यदि कोई सैनिक गुट विधि अनुसार सरकार का तख्ता पलट कर देता है तो विधि की दृष्टि से प्रभुसता पहले वाली सरकार के हाथ में रहती है परंतु वास्तविक रूप से शासन सत्ता उस सैनिक गुट में आ जाती है। जब तक नए शासक वर्ग को विधि सम्मत मान्यता नहीं मिलती तब तक उसकी सत्ता तथ्य अनुसार प्रभुसत्ता ही कहलाती है।

1971 में बांग्लादेश की क्रांति के दौरान ऐसी स्थिति हुई थी। 1922 में मुसोलिनी ने जब रोम पर आक्रमण किया तब वहां की प्रभुसत्ता संसद में निहित थी। मुसोलिनी प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए और संसद के माध्यम से देश पर शासन किया। विधि अनुसार संप्रभुता अब भी इटली की संसद में थी परंतु वास्तविक प्रभुसत्ता मुसोलिनी के हाथ में आ गई।

हिटलर ने जर्मनी में भी ऐसी स्थिति पैदा की थी। रूस में तीन शताब्दियों तक तथ्य अनुसार संप्रभुता स्टालिन के हाथ में रही जबकि विधि अनुसार प्रभुसत्ता वहां की सर्वोच्च सोवियत में थी।

जहां कभी भी क्रांति, बलपूर्वक या सेना द्वारा सत्ता परिवर्तन की स्थिति में विधि अनुसार और तथ्य अनुसार प्रभुता में अंतर ज्यादा दिन तक नहीं रहता। क्योंकि तथ्य अनुसार प्रभुसत्ताधारी जल्द ही कानूनी मान्यता प्राप्त कर विधिवत् प्रभुसत्ताधारी (De jure) के रूप में स्थापित हो जाता है।

वहीं दूसरी और वहां का संवैधानिक ढांचा (Constitutional Structure) नष्ट न करके वास्तविक शक्ति को लंबे समय तक प्रभावशाली व्यक्ति के हाथ में रहती है।

इस प्रकार वहां लोकतंत्र की ओट में अधिनायकतंत्र फलता फूलता है। गार्नर (Garner) के अनुसार जो संप्रभुता अपनी शक्तियों को स्थिर रखने में सक्षम हो जाती है वह कुछ समय बाद वैद्य संप्रभु बन जाती है। ऐसा होने के लिए उसे या तो लोगों की सहमति प्राप्त करनी होती है या फिर राज्य का पुनर्गठन करना होता है।

यद्यपि वास्तविक संप्रभुता (De facto) शारीरिक बल एवं धार्मिक प्रभाव के आधार पर स्थापित की जा सकती है किंतु उसे स्थायित्व प्रदान करने के लिए कानूनी आधार प्रदान करना होता है।

ब्राइस (Bryce) का कहना था कि लोग बल प्रयोग पर आधारित शक्ति के सामने प्राकृतिक या स्वाभाविक रूप से झुकने में अरुचि दिखाते हैं। यही कारण है कि वास्तविक संप्रभु अपने अधिकार एवं शक्तियों को वैधानिक रूप प्रदान करने का प्रयास करता है।

राज्य की आंतरिक शांति व्यवस्था इस बात की मांग करती है कि वास्तविक एवं कानूनी संप्रभुता साथ साथ रहे। जहां कहीं इसके बीच विरोध होता है उसको शीघ्र ही दूर करना जरूरी है।

डॉ. आशीर्वादम के शब्दों में, “शक्ति एवं औचित्य साथ साथ चलने चाहिए।”

ऑस्टिन (Austin) आदि विचारकों ने वास्तविक एवं कानूनी संप्रभुता को अलग अलग नहीं माना। यह हो सकता है कि सरकार वास्तविक हो या कानूनन हो किंतु कानूनन सरकार को संप्रभु नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त वास्तविक संप्रभु को गैरकानूनी कहना भी गलत है। क्योंकि संप्रभुता (sovereignty) केवल एक शक्ति है जो कि अपनी आज्ञा पालन के लिए बाध्य कर सकती है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. यथार्थ संप्रभु कहलाता है?

    उत्तर : जब कोई व्यक्ति या गुट प्रचलित संविधान की उपेक्षा कर क्रांति या शक्ति के प्रयोग द्वारा शासन शक्ति अपने हाथों में ले लेता है तो वह यथार्थ संप्रभु कहलाता है। जैसे बेल्जियम और फ्रांस को जीतकर हिटलर द्वारा वहां सरकार स्थापित करना।

  2. De Jure का अर्थ क्या है?

    उत्तर : De Jure लैटिन भाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ ‘विधितः’ होता है। जहाँ कानून की बात की जाती है वहाँ विधितः बतलाने के लिए De Jure शब्द काम में लिया जाता है।

  3. De facto का अर्थ क्या है?

    उत्तर : De facto लेटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “जो तथ्य पूर्ण हो या जो व्यवहार में हो”। इसके लिए हिंदी में ‘तथ्यतः’ शब्द काम में लिया जाता है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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