अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा | अधिकारों के प्रकार

इस आर्टिकल में राजनीतिक संकल्पना अधिकार (Rights) के अंतर्गत अधिकार किसे कहते हैं, अधिकार का अर्थ एवं परिभाषा, अधिकारों के प्रमुख प्रकारों का वर्णन किया गया है।

अधिकार के विभिन्न अर्थ

व्यक्ति कि जिन गतिविधियों पर राज्य का कोई प्रतिबंध नहीं होता उन्हें नकारात्मक अधिकार कहते हैं। जबकि सकारात्मक अधिकार ऐसी व्यवस्था के सूचक हैं जो व्यक्ति के आत्म विकास में सहायता देने के लिए राज्य की ओर से विशेष रूप से की जाती है। अतः अधिकार में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रवृत्तियां पाई जाती है।

  • राज्य के द्वारा व्यक्ति को प्रदान की जाने वाली बाहरी सुविधा अधिकार है।
  • अधिकार राज्य द्वारा व्यक्ति को दी गई कुछ कार्य करने की स्वतंत्रता या सकारात्मक सुविधा है।
  • कोई भी मांग जो स्वार्थपूर्ण है अधिकार नहीं हो सकती अतः समाज हित मांग ही अधिकार कहलाता है।
  • अधिकार वे दावे होते हैं जिनको समाज मान्यता देता है और राज्य संरक्षण प्रदान करता है।
  • व्यक्ति की वही स्वतंत्रताएं अधिकार कहलाती है जो समाज और राज्य द्वारा स्वीकृत और सुरक्षित हो।

अधिकारों की विशेषताएं

  • अधिकारों का आधार सामाजिक कल्याण (Social Welfare) है।
  • अधिकारों का अस्तित्व समाज में ही संभव है।
  • अधिकार सर्वव्यापी होते हैं।
  • अधिकार व्यक्तिगत विकास के साधन हैं।
  • अधिकार सीमित होते हैं।
  • अधिकार परिवर्तनशील होते हैं।
  • अधिकार और कर्तव्य का घनिष्ठ संबंध है।
  • अधिकार राज्य से अपेक्षित तथा राज्य के विरुद्ध दावे हैं।
  • अधिकार निरपेक्ष (Absolute) या असीमित नहीं होते।
  • राज्य अधिकारों का जन्मदाता नहीं वरन् उन्हें केवल मान्यता प्रदान करता है।
  • अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य को विकेंद्रित होना चाहिए।
  • अधिकारों का संबंध व्यक्ति, समाज तथा राज्य तीनों से रहता है।
  • अधिकार का उद्देश्य व्यक्ति और समाज के कल्याण में वृद्धि करना है अतः इस की प्रवृत्ति व्यक्ति तथा समाज विरोधी नहीं हो सकती।
  • अधिकार में सार्वजनिक हित छिपा होता है। यह समाज के सभी लोगों को बिना किसी धर्म, जाति, लिंग भेद के समान रूप से प्राप्त होते हैं।

अधिकार की परिभाषाएं

ग्रीन, “अधिकार मनुष्य के आंतरिक विकास की बाह्या परिस्थितियों है।”

UN का मानवाधिकार सार्वभौमिक घोषणा पत्र (UN Universal declaration of human rights) (1948), “मनुष्य अपने अधिकारों के मामले में स्वतंत्र पैदा हुए हैं और ऐसे ही रहेंगे।”

बोसांके, “अधिकार वह मांग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।”

वाइल्ड, “कुछ विशेष कार्यों को करने के लिए स्वतंत्रता की विवेकपूर्ण मांग को अधिकार कहा जाता है।”

लास्की, “एक राज्य अपने नागरिकों को जिस प्रकार के अधिकार प्रदान करता है उन्हीं के आधार पर राज्य को अच्छा या बुरा कहा जा सकता है।”

लास्की, “अधिकार जीवन कि वे परिस्थितियां हैं जिनके बिना साधारणतया कोई व्यक्ति अपने उच्चतम स्वरूप की प्राप्ति नहीं कर सकता।”

गांधी जी, “कर्तव्य का पालन कीजिए और अधिकार स्वतः ही मिल जाएंगे।”

ऑस्टिन, “एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों में कुछ विशेष प्रकार का कार्य करने की क्षमता का नाम अधिकार है।”

लास्की, “अधिकार सामाजिक जीवन के वे शर्ते हैं जिसके बिना कोई मनुष्य अपनी सर्वोत्तम अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकता।”

लास्की, “प्रत्येक राज्य अपने द्वारा प्रदत्त अधिकारों से आंका जाता है। बिना अधिकार के स्वतंत्रता का अस्तित्व संभव नहीं है।”

अधिकारों के प्रमुख प्रकार

(1) नैतिक अधिकार (Ethical Rights)

  • नैतिक अधिकारों का संबंध मनुष्य के नैतिक जीवन से है।
  • नैतिक अधिकारों के पालन का आधार मनुष्य की नैतिक भावना है।
  • नैतिक अधिकार मनुष्य के नैतिक आचरण से संबंधित है।
  • नैतिक अधिकार व्यक्ति पर बाध्यकारी नहीं होते।
  • नैतिक अधिकारों के उल्लंघन पर किसी प्रकार का दंड नहीं।
  • उच्च चरित्र, शिष्ट व्यवहार, बड़ों का आदर, माता -पिता की सेवा नैतिक अधिकार हैं।
  • नैतिक अधिकार राज्य द्वारा रक्षित नहीं है।
  • नैतिक अधिकारों का कानूनों से कोई संबंध नहीं।
  • नैतिक अधिकार धर्मशास्त्र, जन्मत या आत्मिक चेतना द्वारा स्वीकृत किया जाता है।
  • नैतिक अधिकारों के अनुमोदन के पीछे समाज की शक्ति होती है। शिशु का यह नैतिक अधिकार है कि उसके माता-पिता उसकी रक्षा करें, किंतु यदि वह ऐसा नहीं करते तो न्यायालय द्वारा उन्हें दण्डित नहीं किया जा सकता।

(2) कानूनी/वैधानिक अधिकार (Legal Rights)

कानूनी अधिकार, नैतिक अधिकारों के विपरीत हैं। लिकॉक के अनुसार, “उन विशेषाधिकारों को कानूनी अधिकार कहा जाता है जो एक नागरिक को अपने साथी नागरिक के विरुद्ध प्राप्त होते हैं जो राज्य की सर्वोच्च शक्ति द्वारा प्रदान किए जाते हैं और उनकी रक्षा राज्य करता है।”

(3) नागरिक या सामाजिक अधिकार (Civil/Social Rights)

व्यक्तियों के पारस्परिक संबंध और आचरण को नियमित करने वाले अधिकार नागरिक/सामाजिक अधिकार होते हैं। नागरिक अधिकारों का उद्देश्य व्यक्ति के सामाजिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना है।

ये वे अधिकार है जो एक राज्य के भीतर रहने वाले सभी व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं। चाहे वह नागरिक हो या विदेशी इन अधिकारों के द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास कर सकता है। राज्य अपने कानूनों द्वारा इन अधिकारों को मान्यता देता है तथा इनकी रक्षा भी करता है।

नागरिक अधिकारों का संबंध व्यक्ति के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने से हैं। नागरिक अधिकार समय, काल, परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं।

आधुनिक राज्य में नागरिकों को निम्नलिखित महत्वपूर्ण नागरिक अधिकार दिए जाते हैं –

  • जीवन का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • समानता का अधिकार
  • संपत्ति का अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • परिवार का अधिकार
  • संविदा करने का अधिकार
  • काम का अधिकार
  • धर्म का अधिकार
  • संगठन बनाने तथा स्वतंत्रता पूर्वक भ्रमण करने का अधिकार
  • लेखन, भाषण तथा सभा करने का अधिकार आदि।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सबसे बड़ा प्रतिपादक जे एस मिल के अनुसार, “स्वयं अपने ऊपर, अपने शरीर, मस्तिष्क और आत्मा पर व्यक्ति सम्प्रभु होता है।”

महात्मा गांधी, मिल्टन, वाल्तेयर, मिल, लास्की, आदि विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के निरपेक्ष (Absolute) समर्थक हैं।

मिल्टन के अनुसार, “मुझे अन्य स्वतंत्रताओं के अतिरिक्त स्वतंत्रतापूर्वक जानने, व्यक्त करने तथा विवाद करने की स्वतंत्रता प्रदान करें।”

सुकरात, “विचार स्वातंत्रय त्यागने की अपेक्षा मृत्यु को श्रेयस्कर समझा।”

(4) राजनीतिक अधिकार (Political Rights)

राजनीतिक अधिकार राज्य द्वारा केवल नागरिकों को दिए जाते हैं विदेशियों को नहीं। लोकतंत्र की स्थापना तथा सफल संचालन के लिए राजनीतिक अधिकार अत्यधिक आवश्यक है।

राजनीतिक अधिकारों के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार आते हैं :

  • मत देने का अधिकार।
  • निर्वाचित होने का अधिकार।
  • सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार।
  • प्रार्थना पत्र देने/सम्मत्ति देने का अधिकार।
  • राजनीतिक दल बनाने का अधिकार।
  • शासन की आलोचना करने का अधिकार।

जे एस मिल, “सार्वजनिक व्यस्क मताधिकार का प्रबल विरोधी था।”

गिलक्रिस्ट, “सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौम नहीं है।”

(5) मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)

नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों के अतिरिक्त, व्यक्ति को कुछ मौलिक अधिकार भी दिए जाते हैं। ये मौलिक इस अर्थ में है कि ये व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

मौलिक अधिकार, नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों से अधिक श्रेष्ठ हैं तथा इनका संविधान में उल्लेख होता है। इनका उल्लघंन करने पर न्यायालय द्वारा दंडित किया जाता है।

भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. अधिकार वह मांग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है। किसने कहा?

    उत्तर : बोसांके के अनुसार अधिकार की परिभाषा, “अधिकार वह मांग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।”

  2. किसने कहा था राज्य अधिकारों से जाना जाता है जिसे वह बनाए रखता है?

    उत्तर : लास्की ने कहा था राज्य अधिकारों से जाना जाता है जिसे वह बनाए रखता है।

  3. अधिकार क्या हैं और वे महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकता हैं?

    उत्तर : अधिकार से आशय उन सुविधाओं और अवसरों से है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है और उन्हें समाज में मान्यता प्राप्त है। अधिकार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक होते है। अधिकार सुदृढ़ तथा कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक होते हैं।

  4. नागरिक अधिकार किन-किन लोगों को प्राप्त होते हैं?

    उत्तर : नागरिक अधिकार एक राज्य के भीतर रहने वाले सभी व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं। चाहे वह नागरिक हो या विदेशी। इन अधिकारों के द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास कर सकता है।

  5. लोकतंत्र की स्थापना तथा सफल संचालन के लिए कौन-सा अत्यधिक आवश्यक है।

    उत्तर : लोकतंत्र की स्थापना तथा सफल संचालन के लिए राजनीतिक अधिकार अत्यधिक आवश्यक है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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