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संघात्मक शासन व्यवस्था : शासन का स्वरूप

इस आर्टिकल में शासन का स्वरूप संघात्मक शासन व्यवस्था, संघात्मक शासन प्रणाली का अर्थ, संघ में शक्तियों का विभाजन, संघात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं, संघात्मक शासन व्यवस्था वाले देश, संघात्मक शासन के गुण-दोष, संघ निर्माण के लिए आवश्यक शर्तें / संघ के आधार, भारत के लिए संघात्मक शासन का औचित्य आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।

संघात्मक शासन व्यवस्था किसे कहते है

जिन राज्यों में संविधान के द्वारा ही केंद्रीय सरकार और प्रांतीय सरकारों के बीच शक्ति विभाजन कर दिया जाता है और ऐसा प्रबंध कर दिया जाता है कि इन दोनों पक्षों में से एक अकेला इस शक्ति विभाजन में परिवर्तन न कर सके उसे संघात्मक शासन (Federal Governance) कहते हैं।

विभिन्न विद्वानों द्वारा संघात्मक शासन प्रणाली की परिभाषा इस प्रकार दी गई है –

डॉक्टर गार्नर कहते हैं कि, “संघ एक ऐसी प्रणाली है जिसमें केंद्रीय तथा स्थानीय सरकारे एक ही प्रभुत्व शक्ति के अधीन होती है। ये सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में, जिसे संविधान तथा संसद का कोई कानून निश्चित करता है, सर्वोच्च होती है।”

डायसी का कथन है, “संघात्मक राज्य एक ऐसे राजनीतिक उपाय के अतिरिक्त कुछ नहीं है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा राज्य के अधिकारों में मेल स्थापित करना है।”

के. सी. ह्वियर के अनुसार, “संघात्मक शासन से मेरा तात्पर्य शासन शक्तियों के वितरण की ऐसी व्यवस्था से है जिसके अनुसार केंद्रीय और प्रांतीय शासन अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र होते हैं तथा उनके बीच सामंजस्य होता है।”

संघ में शक्तियों का विभाजन

Division of Powers in the Union : संघीय शासन (Federal government) में केंद्र और इकाइयों के बीच शक्ति विभाजन साधारणतया इस आधार पर किया जाता है कि राष्ट्रीय महत्व के सभी विषय, जिनसे संपूर्ण राज्य के लिए एक ही प्रकार के नियमन और नियंत्रण की आवश्यकता होती है, केंद्रीय सरकार को दे दिए जाते हैं एवं विभिन्न इकाइयों के पृथक पृथक हितों और स्थानीय समस्याओं से संबंधित विषय प्रांतीय सरकारों को दे दिए जाते हैं।

संघ में शक्ति विभाजन निम्नलिखित तीन में से किसी एक पद्धति के आधार पर किया जा सकता है –

  1. संविधान के द्वारा केंद्रीय सरकार की शक्तियां स्पष्ट कर दी जाती है और शेष अधिकार राज्यों के पास छोड़ दिए जाते हैं। अमेरिका में ऐसा ही किया गया है।
  2. प्रथम के नितांत विपरीत शक्ति विभाजन का दूसरा तरीका यह है कि राज्यों के अधिकार संविधान द्वारा निश्चित कर दिए जाते हैं और अवशिष्ट अधिकार केंद्र के पास छोड़ दिए जाते हैं।
  3. केंद्र और इकाइयां दोनों के अधिकार निश्चित कर दिया जाते हैं और इसके बाद अवशिष्ट अधिकार केंद्र को दे दिए जाते हैं। भारतीय संविधान द्वारा ऐसा ही किया गया है।

संघात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं

Characteristics of Federal Governance System :

(1) प्रभुत्व शक्ति का दोहरा प्रयोग

यद्यपि संप्रभुता का विभाजन नहीं हो सकता और संघात्मक राज्य में भी संप्रभुता अविभाजित होती है, किंतु एक संघ राज्य में संप्रभुता की अभिव्यक्ति केंद्रीय सरकार और स्थानीय सरकार इस प्रकार की दो सरकारों द्वारा होती है।

संघात्मक राज्य (Federal state) के अंतर्गत जो इकाइयां (अनेक प्रकार की सरकारें) होती है, उन्हें अपनी सत्ता केंद्र सरकार से प्राप्त न होकर संविधान से प्राप्त होती है। ये इकाइयां किसी प्रकार से केंद्रीय सरकार के अधीन न होकर केंद्रीय सरकार के समान ही वैधानिक महत्व की होती है।

(2) शक्तियों का विभाजन

संघीय व्यवस्था के अंतर्गत संविधान द्वारा ही केंद्रीय सरकार और स्थानीय सरकारों के बीच शक्ति का विभाजन कर दिया जाता है।

साधारणतया यह विभाजन इस आधार पर किया जाता है कि राष्ट्रीय महत्व के विषय अर्थात संघ की सभी इकाइयों से समान रूप से संबंधित विषय केंद्रीय सरकार के सुपुर्द कर दिए जाते हैं और स्थानीय महत्व के विषय इकाइयों की सरकारों के सुपुर्द किए जाते हैं।

(3) संविधान की सर्वोच्चता

संघ शासन समझौते द्वारा स्थापित शासन होता है। यह समझौता संविधान में निहित होता है और संविधान में ही इस समझौते की संशोधन विधि का ही उल्लेख होता है। संघात्मक राज्य के अंतर्गत संविधान सर्वोच्च होता है और केंद्रीय सरकार, प्रांतीय सरकारों तथा सरकारों के विभिन्न अंग संविधान के प्रतिकूल किसी प्रकार का कार्य नहीं कर सकते हैं।

संघ राज्य लिखित समझौते का परिणाम होता है जिसे कोई एक पक्ष अकेला न बदल सके। इसके लिए संघ राज्य का संविधान आवश्यक रूप से लिखित और कठोर होना चाहिए।

(4) न्यायपालिका की सर्वोच्चता एवं स्वतंत्रता

सभी संघ राज्यों के अंतर्गत एक सर्वोच्च एवं स्वतंत्र न्यायालय की व्यवस्था की जाती है, जिसका कार्य संविधान की व्याख्या एवं रक्षा करना होता है। यह सर्वोच्च न्यायालय केंद्रीय सरकार, प्रांतीय सरकार या सरकार की किसी अंग द्वारा संविधान के प्रतिकूल किए गए कार्यों को अवैध घोषित कर सकता है।

केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों या प्रांतीय सरकारों में किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न होने पर सर्वोच्च न्यायालय इस विवाद को हल करता है।

हस्किन के अनुसार, “संघीय शासन में सर्वोच्च न्यायालय शासन तंत्र में संतुलन बनाए रखने वाला पहिया है।”

(5) दोहरी नागरिकता

संघ राज्य के अंतर्गत साधारणतया दोहरी नागरिकता की व्यवस्था की जाती है। एक व्यक्ति केंद्रीय सरकार तथा प्रांतीय सरकार जिसमें रहता है इन दोनों का नागरिक होता है तथा इन दोनों के प्रति भक्ति रखता है, किंतु दोहरी नागरिकता संघ राज्यों का आवश्यक तत्व नहीं है। भारतीय संविधान ने एक संघ राज्य की स्थापना की है, किंतु दोहरी नागरिकता की व्यवस्था नहीं।

(6) राज्यों का इकाइयों के रूप में केंद्रीय व्यवस्थापिका के उच्च सदन में प्रतिनिधित्व। यह विशेषता सामान्यतया संघ राज्यों में देखने को मिलती है परंतु यह संघात्मक शासन का आवश्यक तत्व नहीं है।

(7) राज्यों को संघीय संविधान के संशोधन में पर्याप्त महत्व देना। यह विशेषता भी संघ शासन का आवश्यक तत्व नहीं है।

नोट – उपर्युक्त संघीय व्यवस्था की विशेषता में क्रम संख्या 5, 6 और 7 प्रमुख और अनिवार्य विशेषता या तत्व नहीं है। फीर भी कहीं-कहीं संघात्मक शासन वाले राज्यों में ये विशेषताएं देखने को मिलती हैं।

संघात्मक शासन व्यवस्था वाले देश

Countries with Federal Governance : भारत, अमेरिका (सर्वोत्तम उदाहरण), कनाडा, स्विटजरलैंड, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, रूस, यूगोस्लाविया, ब्राजील आदि देशों में संघात्मक शासन व्यवस्था है।

संघात्मक शासन व्यवस्था वाले देश
संघात्मक शासन व्यवस्था वाले देश

संघात्मक शासन की स्थापना के दो प्रकार –

१. अनेक स्वतंत्र राज्य आपस में मिलकर संघ की स्थापना करें – जैसे – अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड।

२. जब कोई एकात्मक राज्य ही अपने स्वरूप को बदलकर उसे संघात्मक राज्य का रूप प्रदान कर दे – जैसे 1919 में ब्राजील के द्वारा एकात्मक से संघात्मक तथा स्वतंत्रता से पूर्व भारत भी एकात्मक राज्य था।

संघात्मक शासन व्यवस्था के गुण

  • राष्ट्रीय एकता और स्थानीय स्वशासन में सामंजस्य – शक्ति विभाजन, केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण के बीच समन्वय के कारण।
  • निर्बल राज्यों को शक्तिशाली बनाने की पद्धति – जैसे अमेरिका राज्यों का संघ, भारत राज्यों का संघ।
  • स्थानीय स्वशासन का लाभ
  • मितव्ययता और औद्योगिक विकास
  • निरंकुशता की आशंका नहीं (शक्ति विभाजन के कारण)
  • राजनीतिक चेतना
  • केंद्रीय सरकार की कार्य कुशलता में वृद्धि
  • विशाल राज्यों के लिए उपयुक्त
  • प्रजातंत्र के अनुकूल
  • प्रशासनिक कुशलता
  • अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रतिष्ठा
  • विश्व संघ की स्थापना की और कदम (जैसे – यूरोपीय संघ)

संघीय शासन व्यवस्था के दोष

  • कमजोर शासन (आंतरिक प्रशासन सम्बन्धी निर्बलता)
  • इकाइयों द्वारा पृथक होने की संभावना
  • केंद्र और राज्यों में संघर्ष
  • संघ राज्य का संगठन जटिल
  • संकटकाल में अनुपयुक्त
  • राज्यों में सीमा विवाद उत्पन्न होने की संभावना
  • दोहरी शासन व्यवस्था के कारण शासन अकुशल और उत्तरदायित्वहीन
  • न्यायपालिका की सर्वोच्चता के कारण कार्यपालिका की स्थिति कमजोर
  • राष्ट्रीय एकता में कमी
  • लिखित एवं कठोर संविधान के कारण अनमनीय शासन
  • आंतरिक मतभेदों के चलते विदेश नीति प्रभावित
  • वित्तिय सहायता के लिए राज्य सरकारों को संघ सरकार के ऊपर आश्रित

इकाइयों द्वारा पृथक होने की संभावना – अमेरिका में जब संघीय सरकार ने दास प्रथा के अंत का निश्चय किया तो इस नीति से असहमत अनेक दक्षिणी राज्य में इसका विरोध किया और गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। संघ राज्य में वस्तुत: इस बात का खतरा रहता है, यह बात 1991 में सोवियत संघ के विघटन से पूर्णतया स्पष्ट हो गई है।

संघ निर्माण के लिए आवश्यक शर्तें / संघ के आधार

(1) अपने अस्तित्व की रक्षा के साथ व्यापक रूप से एक होने की भावना : संघ का निर्माण करने वाली इकाइयों में दो विरोधी भावनाएं होनी चाहिए एक और तो उनमें सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक होने की भावना होनी चाहिए दूसरी और उनमें अपने पृथक अस्तित्व को बनाए रखने की भावना भी होनी चाहिए।

(2) भौगोलिक समीपता : जिन क्षेत्रों में संघ का निर्माण करने की इच्छा हो, वे भौगोलिक दृष्टि से पास-पास होने चाहिए। अर्थात वे भूमि अथवा जल द्वारा एक दूसरे से दूर नहीं होने चाहिए। इकाइयों के परस्पर अत्यधिक दूर होने की दशा में किन्हीं भी विषयों के संबंध में प्रशासनिक एकता स्थापित नहीं की जा सकेगी।

संघ के स्थायित्व के लिए आवश्यक है कि भावात्मक एकता स्थापित होनी चाहिए। उदाहरण के लिए ब्रिटिश साम्राज्य एक संघ में इसलिए निर्मित नहीं हो सका क्योंकि इसके उपनिवेश दूर दूर स्थित थे। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और भारत के मानचित्र को देखने से प्रतीत होता है कि इन क्षेत्रों में भौगोलिक समीपता है।

(3) भाषा, धर्म, संस्कृति व हितों की एकता : संघ की एक अन्य आवश्यकता है भाषा, धर्म, संस्कृति व हितों की एकता। संघ का उद्देश्य एकता स्थापित करना होता है और ऐसा तभी संभव है जब राज्य व राष्ट्रीयता की सीमाएं अनुरूप हो। किंतु इन तत्वों की एकता न होने पर भी संघ का निर्माण हो सकता है। कनाडा, दक्षिण अफ्रीका व भारत के संघ इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है।

(4) सामाजिक प्रथाएं और राजनीतिक संस्थाएं : संघ के निर्माण की इच्छा जागृत करने और उसे स्थाई बनाने में सामाजिक प्रथाओं और राजनीतिक संस्थाओं का योग भी कम नहीं होता। संघ के निर्माता चाहते हैं कि अवयवी एककों की राजनीतिक संस्थाएं समान हो। अमेरिका और स्विट्जरलैंड दोनों देशों के संविधान में कहा गया है कि उनके एककों की शासन व्यवस्था गणतंत्रीय ढंग की होनी चाहिए। कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि संघ राज्यों में भी संसदात्मक शासन को ही अपनाया गया है।

(5) आकार और जनसंख्या की दृष्टि से इकाइयों में समानता : संघ के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि उसकी इकाइयों में शक्ति एवं स्थिति की दृष्टि से यथासंभव समता होनी चाहिए। यदि इकाइयों की शक्ति और जनसंख्या में बहुत अंतर हो तो संघ की शक्तिशाली इकाइयां अन्य कम शक्तिशाली इकाइयों पर हावी हो जाती है और ऐसी दशा में संघ नष्ट हो जाता है।

(6) पर्याप्त आर्थिक साधन : संघीय शासन एक बहुत खर्चीला शासन है। दोहरी सरकार में बहुत खर्च होता है। अतः अवयवी एककों के पास पर्याप्त आर्थिक साधन होने चाहिए ताकि वे केंद्रीय सरकार को आर्थिक सहायता दे सकें और अपनी स्वतंत्र सत्ता का पोषण कर सकें।

(7) संधात्मक शासन व्यवस्था के अंतर्गत लोगों में राजनीतिक चेतना का संचार होता है।

भारत के लिए संघात्मक शासन का औचित्य

Justification of Federal Rule for India : भारत क्षेत्र और जनसंख्या की दृष्टि से बहुत अधिक विशाल और धर्म, जाति, भाषा एवं सांस्कृतिक विविधताओं से युक्त देश है। ऐसी स्थिति में एक ऐसी शासन व्यवस्था को अपनाने की आवश्यकता होती है, जिसमें कुछ मूलभूत बातों के संबंध में समस्त देश में एक ही प्रकार की व्यवस्था, लेकिन अन्य कुछ विषयों में प्रादेशिक स्तर पर अलग-अलग प्रकार की व्यवस्था को अपनाया जा सकता है। यह स्थिति संघात्मक व्यवस्था के अंतर्गत ही संभव है।

भारत जैसे देश में एकता बनाए रखने का कार्य ‘विविधता में एकता’ के आधार पर ही किया जा सकता है। अतः 125 करोड़ जनसंख्या वाले और विविधताओं से युक्त इस देश में संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाना ही स्वाभाविक और उचित है। एकात्मक शासन के आधार पर न तो इस देश में व्यवस्था बनाए रख पाना संभव है और न ही देश की एकता को बनाए रख पाना संभव है।

संघात्मक, अर्द्धसंघात्मक और बहुसंघात्मक संबंधी डॉ. ए. के. वर्मा का वीडियो 👇

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. संघात्मक शासन व्यवस्था किस प्रकार स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहित करता है?

    उत्तर : संघात्मक शासन व्यवस्था में राज्य-शक्ति संविधान द्वारा केन्द्र तथा संघ की घटक इकाइयों के बीच विभाजित रहती है। संघात्मक राज्य में दो प्रकार की सरकारें होती है- एक संघीय अथवा केन्द्रीय सरकार और कुछ राज्य अथवा प्रान्तीय सरकारें। दोनों सरकारें सीधे संविधान से ही शक्तियाँ प्राप्त करती है।

  2. संघात्मक शासन विविधता युक्त बड़े राष्ट्रों के लिए अधिक उपयुक्त क्यों माना जाता है?

    उत्तर : संघीय शासन व्यवस्था विशाल राज्यों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। जहाँ विभिन्न भाषा, धर्म और संस्कृति के लोग रहते हैं जिनके हितों में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। ऐसे राज्यों में विविधताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता स्थापित करनी होती है, जो संघात्मक शासन व्यवस्था में ही सम्भव है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

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