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संविधान का अर्थ एवं परिभाषा | संविधानों का विकास और वर्गीकरण

संविधान का अर्थ क्या होता है

संविधान अंग्रेजी शब्द 'कांस्टीट्यूशन' का हिंदी रूपांतर है। राजनीति विज्ञान में कांस्टीट्यूशन का अर्थ राज्य के ढांचे तथा संगठन से होता है।

अतः राज्य के संविधान में राज्य की सरकार के विभिन्न अंगों, उनके संगठन व शक्तियों, जनता के अधिकारों आदि का उल्लेख रहता है। राज्य का स्वरूप चाहे किसी भी प्रकार का हो आवश्यक रूप से उसका एक सविधान होता है।

आवश्यक नहीं है कि संविधान लिखित ही हो, आवश्यक यह है कि कुछ ऐसे नियमों का अस्तित्व हो जिसके द्वारा देश की शासन व्यवस्था के ढांचे को निर्धारित किया जा सके और सरकार की कार्यप्रणाली के विषय में जाना जा सके।

राज्य के लिए संविधान की अनिवार्यता बतलाते हुए जैलिनेक ने कहा है, "संविधानहीन राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती, सविधान के अभाव में राज्य, राज्य न होकर एक प्रकार की अराजकता होगी।

इसी प्रकार शुल्टज कहते हैं कि, "राज्य कहलाने का अधिकार रखने वाले हर समाज का संविधान अवश्य होना चाहिए, अर्थात् ऐसे सिद्धांतों की संहिता होनी चाहिए जो सरकार और प्रजा के संबंध निश्चित करें और जिसके अनुसार राज्य अपनी शक्ति का प्रयोग करें।"

यह एक वैधानिक उपकरण है जिसे भिन्न नामों जैसे - राज्य के नियम, शासन का उपकरण, देश का मौलिक कानून, राज्य व्यवस्था का आधारभूत विधान, राष्ट्र राज्य की आधारशिला आदि नामों से भी जाना जाता है। किंतु इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त शब्दावली संविधान ही है।

संविधान की परिभाषाएं

गिलक्राइस्ट के अनुसार, "संविधान लिखित या अलिखित नियमों अथवा कानूनों का समूह होता है जिनके द्वारा सरकार का संगठन, सरकार की शक्तियों का विभिन्न अंगों में वितरण और इन शक्तियों के प्रयोग के सामान्य सिद्धांत निश्चित किए जाते हैं।"

डायसी के अनुसार, "संविधान उन समस्त नियमों का संग्रह है जिनका राज्य की प्रभुत्व सता के प्रयोग अथवा वितरण पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है।"

फाइनर के अनुसार, "संविधान आधारभूत राजनीतिक संस्थाओं की व्यवस्था होती है।"

ब्राइस के अनुसार, "संविधान ऐसे निश्चित नियमों का एक संग्रह होता है जिनमें सरकार की कार्यविधि प्रतिपादित होती है और जिनके द्वारा उसका संचालन होता है।"

गैटिल के अनुसार, "वे मौलिक सिद्धांत, जिनके द्वारा किसी राज्य का स्वरूप निर्धारित होता है, संविधान कहलाता है।"

संविधानों का विकास

संविधान के निर्माण के संदर्भ में पूर्णत: यह नहीं कहा जा सकता कि इसका निर्माण एक निश्चित समय में विचार-विमर्श करके किया गया है। संविधान को चाहे कितना ही विचार-विमर्श करके बनाया जाए लेकिन यह अपनी प्रकृति से विकसित होता है। संविधानों के विकास में कई महत्वपूर्ण तत्व सहायक होते हैं। जैसे -

1. प्रथाएं और परंपराएं : प्रथा एवं परंपराओं ने संविधान के विकास को दिशा दी है। ग्रेट ब्रिटेन का संविधान तो अधिकांशतः प्रथा और परंपराओं के द्वारा ही निर्मित है। परंतु अन्य देशों के संविधानों जैसे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, भारत, स्वीटजरलैंड आदि को भी प्रथा और परंपराओं से प्रभावित देखा जा सकता है।

प्रथाएं और परंपराएं मानव सभ्यता के विकास से है जिनके साथ व्यक्ति भावनात्मक रूप से जुड़ा है। संविधान के निर्माण/विकास के बाद भी व्यक्ति ने अपनी प्रथा और परंपराओं के साथ जीना नहीं छोड़ा, जिस कारण संविधान के विकास में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2. न्यायाधीशों के निर्णय : न्यायाधीशों के द्वारा संविधान के विभिन्न उपबंधों के संबंध में दिए गए निर्णयों और व्याख्याओं से भी संविधान के विकास को गति मिलती है। भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में इसे देखा जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के विषय में तो यहां तक कहा जाता है कि 'संविधान वही है, जो न्यायधीश कहते हैं।'

3. संशोधन प्रक्रिया : संविधान में संशोधन के लिए जो संशोधन विधि वर्णित होती है उसके आधार पर संविधान में बहुत से संशोधन समय-समय पर होते रहते हैं। संविधान में संशोधन के माध्यम से कई देशों में मौलिक अधिकारों को संविधान का महत्वपूर्ण अंग बना दिया है। अतः संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से भी संविधान के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।

संविधान का विकास इस आधार पर होना चाहिए कि उसमें समय-समय पर आने वाली परिस्थितियों से निपटने की क्षमता होनी चाहिए।

संविधान का वर्गीकरण

संविधानों का वर्गीकरण तीन आधारों पर किया जा सकता है।

1. उत्पत्ति के आधार पर : उत्पत्ति के आधार पर संविधान दो प्रकार के होते हैं विकसित और निर्मित संविधान।

विकसित संविधान का क्या अर्थ है

विकसित संविधान वे हैं, जिनका निर्माण संविधान सभा जैसे किसी संस्था द्वारा निश्चित समय पर नहीं किया जाता वरन् यह सविधान विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों, प्रथाओं और न्यायालयों के निर्णय पर आधारित होता है।

इंग्लैंड का संविधान विकसित संविधान का श्रेष्ठ उदाहरण है। वहां राजा, मंत्री परिषद, संसद अथवा अन्य राजनीतिक संस्थाओं की शक्ति और उनके अधिकार क्षेत्र आदि लेख बद्ध नहीं हैं तथा न उनसे संबंधित नियमों का एक समय निर्माण किया गया है।

वस्तुतः ब्रिटिश संविधान का वर्तमान स्वरूप उसके पंद्रह सौ से वर्षों के संवैधानिक विकास का परिणाम है। इसी कारण प्रो. मुनरो ने लिखा है कि, "ब्रिटिश संविधान कोई पूर्णतया प्राप्त वस्तु न होकर एक विकासशील वस्तु है। यह बुद्धिमता और संयोग की संतान है जिसका मार्गदर्शन कहीं आकस्मिकता और कहीं उच्च कोटि की योजनाओं ने किया है।"

निर्मित संविधान का क्या अर्थ है

निर्मित संविधान वे संविधान होते हैं जिनका निर्माण एक विशेष समय पर संविधान सभा जैसी किसी विशेष संस्था के द्वारा किया जाता है। निर्मित संविधान स्वभाविक रूप से लिखित होते हैं और साधारणतया कठोर भी।

अमेरिका का संविधान विश्व का प्रथम निर्मित संविधान है जिसे 1784 ई. के फिलाडेल्फिया सम्मेलन में निर्मित किया गया था। स्विट्जरलैंड का संविधान भी निर्मित है जिसका प्रारूप 1848 में 14 सदस्यों के एक आयोग द्वारा तैयार किया गया था और इस प्रारूप में 1874 में व्यापक परिवर्तन किए गए।

भारत के संविधान को संविधान सभा ने लगभग 3 वर्षों (9 दिसंबर 1946 से 26 नवंबर 1949) के अथक परिश्रम के बाद तैयार किया, किंतु यह लागू हुआ 26 जनवरी 1950 से। 1982 का नया चीनी संविधान भी निर्मित संविधानों की श्रेणी में आता है। जिसका निर्माण विशेष रूप से नियुक्त की गई एक समिति तथा जनवादी कांग्रेस ने किया।

उपर्युक्त विकसित तथा निर्मित संविधान के अपने अपने गुण दोष भी देखने को मिलते हैं। जैसे विकसित संविधान में गतिशीलता होने की विशेषता है। यह लोगों की आवश्यकता तथा आकांक्षाओं के अनुकूल सदा परिवर्तन की प्रक्रिया में रहता है। परंतु दोष इसका यह है कि ये असंख्य अलग-अलग व बिखरे हुए प्रपत्रों तथा राजनीतिक रीति-रिवाजों के रूप में रहता है। अतः इसमें निश्चितता नहीं होती है।

इसी तथ्य को ध्यान में रखकर टाम्सपेन जैसे एक अमरीकी विचारक तथा डी. टाकविले जैसे एक फ्रांसीसी इतिहासकार ने यह मत प्रकट किया कि इंग्लैंड में कोई संविधान नहीं है।

इसके विपरीत निर्मित संविधान सर्वथा सुनिश्चित होता है। संहिताबद्ध रूप में होने के कारण यह सदा लोगों के लिए महान सुविधा का स्रोत होता है, परंतु इंग्लैंड के लोग इस तथ्य के बावजूद अपने संविधान पर गर्व करते हैं।

2. प्रथाओं और कानूनों के आधार पर : इस आधार पर दो प्रकार के संविधान होते हैं लिखित संविधान व अलिखित संविधान।

लिखित संविधान का क्या अर्थ है

लिखित संविधान वे संविधान होते हैं जिनके प्रावधान विस्तारपूर्वक लिखे जाते हैं।

लिखित संविधान वाले देश - अमेरिका, स्वीटजरलैंड, फ्रांस, रूस, जापान, चीन, भारत आदि देशों के संविधान लिखित संविधानों के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

विश्व का पहला लिखित और सबसे छोटा संविधान अमेरिका का संविधान है, जिसमें केवल 4000 शब्द है जो 10 या 12 पृष्ठों में मुद्रित है और जिन्हें आधे घंटे में पढ़ा जा सकता है। यह विश्व के लिखित संविधानों में सर्वाधिक संक्षिप्त है। इसमें केवल 7 अनुच्छेद हैं। अतः विश्व का सबसे छोटा लिखित संविधान अमेरिका देश का संविधान है।

भारत का संविधान विश्व के लिखित संविधानों में सबसे विस्तृत है। इसमें कोई 90,000 शब्द है। भारतीय संविधान में 445 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं। भारत के मूल संविधान में 395 अनुच्छेद व 9 अनुसूचियां थी। विश्व का सबसे बड़ा संविधान भारत देश का है।

स्विस संविधान में 123 अनुच्छेद हैं जो 3 अध्यायों में बंटा है। चीन के नए संविधान में एक प्रस्तावना तथा 138 अनुच्छेद हैं जो 4 अध्यायों में बंटा है।

अलिखित संविधान का क्या अर्थ है

अलिखित संविधान वे संविधान होते हैं जिसके लिखित प्रावधान बहुत संक्षिप्त होते हैं तथा संविधान के अधिकांश नियमों का अस्तित्व व्यवहारों व प्रथाओं के रूप में होता है। ब्रिटेन देश का संविधान अलिखित संविधान का सर्वोत्तम उदाहरण है और अलिखित संविधान की व्यवस्था से ब्रिटेन को कोई हानि न होकर लाभ ही हुआ है।

3. संविधान में संशोधन के आधार पर : इस आधार पर संविधान के दो भेद हैं - लचीला संविधान और कठोर संविधान।

लचिला संविधान का क्या अर्थ है

यदि सामान्य कानून और संवैधानिक कानून के बीच कोई अंतर न हो और संवैधानिक कानून में भी सामान्य कानून के निर्माण की प्रक्रिया से ही संशोधन परिवर्तन किया जा सके तो संविधान को लचीला या परिवर्तनशील कहा जाएगा।

गार्नर के शब्दों में, "लचीला संविधान वह है जिसको साधारण कानून से अधिक शक्ति एवं सत्ता प्राप्त नहीं है और जो साधारण कानून की भांति ही बदला जा सकता है, चाहे वह एक प्रलेख या अधिकांशतः परंपराओं के रूप में हो।"

लचीले संविधान के उदाहरण स्वरूप हम इंग्लैंड के संविधान को ले सकते हैं। इंग्लैंड में संसद जिस प्रक्रिया द्वारा सड़क पर चलने के नियम या मद्य निषेध के नियमों में परिवर्तन करती है, बिल्कुल उसी प्रक्रिया के आधार पर संवैधानिक कानूनों में परिवर्तन कर सकती है। दूसरे शब्दों में ये दोनों काम संसद के साधारण बहुमत द्वारा संपन्न किए जा सकते हैं।

चीन का संविधान भी इसी श्रेणी में आता है क्योंकि इसमें साधारण कानून निर्माण प्रक्रिया से ही संशोधन किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 64 में संशोधन की प्रक्रिया वर्णित है। संविधान में संशोधन का प्रस्ताव राष्ट्रीय जनवादी कांग्रेस की स्थाई समिति द्वारा या राष्ट्रीय जनवादी कांग्रेस के 1/5 सदस्यों द्वारा रखा जाना चाहिए तथा यह प्रस्ताव राष्ट्रीय जनवादी कांग्रेस के कुल सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से स्वीकृत होना चाहिए।

ज्ञातव्य है कि चीन की राष्ट्रीय जनवादी कांग्रेस विश्व का सबसे बड़ा एकसदनात्मक विधायी सदन है क्योंकि इसके सदस्यों की उपस्थिति नए संविधान 1982 को स्वीकृत करते समय 3037 थी।

कठोर संविधान का क्या अर्थ है

कठोर संविधान से अभिप्राय उस संविधान से है जिस में संशोधन के लिए किसी विशेष प्रक्रिया को प्रयुक्त किया जाता है। संविधान में संवैधानिक एवं साधारण कानून में मौलिक भेद समझा जाता है तथा इसमें संवैधानिक कानूनों में संशोधन परिवर्तन के लिए साधारण कानूनों के निर्माण से भिन्न प्रक्रिया, जो साधारण कानून के निर्माण की पद्धति से कठिन होती है, अपनाना आवश्यक होता है।

सरल शब्दों में व्यवस्थापिका जिस विधि अथवा प्रक्रिया से साधारण कानूनों को पारित करती है उसी विधि से संविधान में संशोधन नहीं कर सकती है। कठोर संविधान वाले देश - स्वीटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, रूस, इटली, फ्रांस, डेनमार्क, स्वीडन, नार्वे, जापान तथा भारत के संविधान है।

किंतु इसका सबसे अच्छा उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान है जहां पर संविधान में संशोधन के लिए कांग्रेस (प्रतिनिधि सभा 435, सीनेट 100) के दो तिहाई बहुमत तथा तीन चौथाई राज्यों के विधान मंडलों की स्वीकृति आवश्यक है। इसी का परिणाम यह हुआ है कि 211 वर्षों में केवल 26 संशोधन किए जा सके हैं। अमेरिका में संविधान के अनुच्छेद 5 में संशोधन प्रक्रिया वर्णित है।

स्विट्जरलैंड के संविधान में संशोधन की प्रक्रिया भारत से जटिल है किंतु अमेरिका की तुलना में कम कठोर है। संविधान में संशोधन का प्रस्ताव व्यवस्थापिका (संघीय सभा) के दोनों सदनों (राष्ट्रीय परिषद 200 एवं राज्य परिषद 44) के बहुमत द्वारा पास होना चाहिए और उसके बाद उसका समर्थन मतदाताओं तथा कैन्टनों (राज्य) के बहुमत से होना चाहिए।

👉 'संविधान क्या है' संबंधी डॉ ए के वर्मा का विडियो 👇

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