इस आर्टिकल में ब्रिटिश संविधान का उदय और विकास कैसे हुआ, ब्रिटिश संविधान के स्त्रोत क्या है, ब्रिटिश संविधान की विश्व को प्रमुख देन क्या है के बारे में जानकारी दी गई है।
ब्रिटेन का संविधान कैसा है
ब्रिटेन का संविधान एक विकसित संविधान है। इसका जन्म एक समिति के द्वारा कुछ समय में नहीं हुआ वरन् यह लगभग 1400 वर्षों के विकास के बाद वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है।
ब्रिटिश संविधान उदय एवं विकास क्रमशः हुआ है। जिसमें तत्कालीन हालात जन जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ब्रिटेन का संविधान दुनिया का सबसे प्राचीन अलिखित संविधान है।
ब्रिटेन में तत्कालीन हालात ऐसे हो गए कि राजसत्ता कमजोर होती गई और जनता एवं उनका समूह मजबूत होता गया। धीरे-धीरे यही समूह मंत्रिमंडल एवं पार्लियामेंट के वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हो गया। इंग्लैंड को संसदीय शासन की जननी कहा जाता है।
दुनिया के अन्य देशों में संसदीय शासन का प्रसार यहीं से हुआ है। यहां पर व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के बीच घनिष्ठ संबंध पाया जाता है तथा कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदाई होती है। बहुमत प्राप्त दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है तथा अपनी कैबिनेट का निर्माण करता है। जब तक सत्तारूढ़ दल के पास बहुमत है वह सत्ता में रहता है। बहुमत समाप्त होते ही प्रधानमंत्री को पद छोड़ना होता है। यह दुनिया का सबसे जवाबदेह शासन है। इसमें सरकार के ऊपर दोहरा नियंत्रण रहता है।
ब्रिटेन की संपूर्ण शासन व्यवस्था को चलाने में वहां के नागरिकों की जन जागरूकता है। वे परंपरावादी हैं। अतः अलिखित संविधान होते हुए भी रूढ़ियों, परंपराओं के आधार पर संपूर्ण शासन व्यवस्था आगे बढ़ती रही है। ब्रिटेन की शासन व्यवस्था एवं वहां का संविधान अतुलनीय है। ऐसा कोई अन्य उदाहरण हमें कहीं और नहीं मिलता है।
ब्रिटिश संविधान का उदय एवं विकास
ब्रिटिश संविधान का विकास हुआ है। इसका निर्माण किसी सभा या समिति के द्वारा किसी निश्चित समय में नहीं किया गया है।
इसके प्रारंभ से वर्तमान स्थिति में पहुंचने में 1400 वर्षों से अधिक का समय लगा है। ब्रिटिश संविधान के विकास की संपूर्ण प्रक्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ी है। इसमें तत्कालीन हालात, परिस्थितियां तथा राजा का कमजोर होना आदि तत्वों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस संपूर्ण विकास यात्रा को हम सुविधा की दृष्टि से छह भागों में बांट सकते हैं।
(1) एंग्लो सेक्शन काल : सीमित राजतंत्र की स्थापना इस काल में ब्रिटेन पर रोमन का अधिपत्य स्थापित हुआ था। इस समय 2 नई संस्थाओं का विकास हुआ।
- नियंत्रित राजपथ और
- स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था।
(2) नॉर्मन ऐक्जिवन काल (1066 ई. से 1153 ई. तक)
इस समय नार्मन देश के राजा विलियम्स ऑफ नरमंडी ने अपनी सत्ता स्थापित कर रखी थी। इसी समय नार्मन शासक ने नियंत्रित राजपद (विटेनजमोट/विटन) को समाप्त कर दिया और ‘मैग्नम कॉन्सिलियम’ और क्यूरिया रेजिस (राज्य परिषद) का उदय हुआ। आगे चलकर क्यूरिया रेजिस से प्रिवी कौंसिल, प्रिवी कौंसिल से कैबिनेट का विकास हुआ। यहीं से ब्रिटेन ही नहीं दुनिया को संसद एवं कैबिनेट के अस्तित्व के पहले संकेत मिले।
“मैग्नम कॉन्सिलियम में हमें आधुनिक पार्लियामेंट का और क्यूरिया रेजिस मे हमें आधुनिक कैबिनेट का स्वरूप दिखाई पड़ता है।”
(3) प्लैब्टेगैनट और लंकास्ट्रियन काल (1153 ई. से 1445 ई. तक)
वैधानिक संस्थाओं का उदय (Rise of Statutory Institutions) – नॉर्मन काल की संस्थाओं में हेनरी के द्वारा व्यापक सुधार किए गए। प्रशासनिक कार्यों के लिए क्यूरिया रेजिस की तरह एक नई संस्था को जन्म दिया जो शेष कार्यों के लिए के रूप में नई संस्था को जन्म दिया जो प्रिवी कौंसिल कहलायी। शेष न्यायिक कार्यों के लिए ‘एक्सचेकर’ के रूप में नई संस्था को जन्म दिया जो न्याय के उच्च न्यायालय का जनक बन गया।
प्रतिनिधित्व के सिद्धांत का उदय (The Rise of the Principle of Representation) – इस काल में एक नए सिद्धांत का सूत्रपात हुआ जो ‘प्रतिनिधित्व के बिना कर नहीं’ के रूप में जाना गया। अनजाने में ही सही यह सिद्धांत आधुनिक शासन व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण देन था। यहीं से यह स्थापित हो गया कि बिना व्यापक जन स्वीकृति के नए कर नहीं लगाए जा सकते।
मैग्नाकार्टा या वृहद अधिकार पत्र (Megna Karta or Mass Charter) – 1199 ईस्वी में इंग्लैंड की गद्दी पर जॉन बैठा। वह अयोग्य, अदूरदर्शी शासक था। उसके अत्याचारों से दुखी होकर जनता ने विद्रोह कर दिया। 15 जून 1215 को रनीमेड नामक स्थान पर उसको अधिकार पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े।
यह मानव इतिहास का एक निर्णायक क्षण था। इस अधिकार पत्र के द्वारा सामंतों, सरदारों के पुराने परंपरागत अधिकारों को बदल दिया गया। धीरे-धीरे यह अधिकार आम जनता को स्थानांतरित हो गए। स्टब्स के शब्दों में, “इंग्लैंड के संविधान का इतिहास महान अधिकार पत्र की व्याख्या है।”
इस अधिकार पत्र से राजा के अधिकारों पर नियंत्रण तथा आम लोगों को व्यापार, दोष सिद्धि के बिना दंड नहीं, नए करों पर प्रिवी कौंसिल की सहमति, चर्च के कार्यों में दखल नहीं, प्रभावशाली सरदारों, सामंतों को प्रिवी कौंसिल में स्थान दिया गया।
थॉमसन एवं जॉनसन ने लिखा है,” मेग्नाकार्टा ब्रिटिश संविधान का आधार स्तंभ है क्योंकि इसने यह प्रतिपादित किया है कि राजा विधि के ऊपर नहीं है, वरन विधि के अधीन है।” यहीं से राजा की निरंकुशता का अंत एवं मर्यादित प्रजातंत्र का उदय का प्रारंभ होता है।
पार्लियामेंट का उदय (Rise of Parliament) – 1295 में सम्राट एडवर्ड प्रथम ने कर प्रस्तावों पर सभी वर्ग का समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से सामंतों, पादरियों और प्रत्येक नगर से प्रतिनिधि को बुलाया। इसी बैठक को ही ‘मॉडर्न पार्लियामेंट’ (Modern Parliament) कहा गया।
इसी काल में 1407 में निम्न सदन ने स्वयं वित्त विधेयक प्रस्तुत करने का अधिकार ले लिया। आगे चलकर यह अधिकार परंपरा बन गई। आज दुनिया के सभी देशों में वित्त विधेयक निम्न सदन में ही प्रस्तुत किया जाता है।
(4) ट्यूडर काल ; पुनः कठोर राजतंत्र की स्थापना (1485 ई. से 1603 ई. तक)
1485 में हेनरी ट्यूडर ने सप्तम हेनरी के नाम से सता ग्रहण की। इस समय सामंतों एवं संसद की शक्ति क्षीण हो गई और निरंकुश राजतंत्र स्थापित हो गया। उसमें जनता भी युद्ध के बाद शांति और व्यवस्था चाहती थी अतः उनको व्यापक समर्थन मिला। इस काल में महत्वपूर्ण उपलब्धि मजबूत राजसत्ता पोपशाही से मुक्ति हो गई।
(5) स्टुअर्ट काल ; निरंकुश राजतंत्र एवं सीमित राजतंत्र में संघर्ष और लोकतंत्र की आधारशिला (1603 ई. से 1704 ई. तक)
रानी का कोई उत्तराधिकारी नहीं होने के कारण 1603 ईस्वी में ब्रिटेन की गद्दी पर स्कॉटलैंड का राजा जेम्स प्रथम बैठा। उसी समय संसद एवं सम्राट के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
जेम्स प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र चार्ल्स प्रथम गद्दी पर बैठा। उसके बाद यह संघर्ष निरंतर बढ़ता गया। 1628 में संसद समर्थक चार्ल्स ने पिटीशन ऑफ राइट्स मनवाने में सफल रहे। जिससे राजा की शक्तियों पर निम्न प्रतिबंध लगे –
- राजा संसद की स्वीकृति के बिना नए कर नहीं लगा सकता।
- बिना किसी निश्चित करण के राजा किसी को जेल में नहीं डाल सकता।
- शांति काल में राजा मार्शल लॉ नहीं लगा सकता।
दबाव में चार्ल्स ने पिटिशन ऑफ राइट्स स्वीकार तो किया परंतु लागू नहीं किया। आगे जाकर संसद को भंग कर दिया और 11 वर्ष तक बिना संसद के उसने शासन किया। इस बीच संसद समर्थक एवं सम्राट के बीच लंबा संघर्ष चला। अंततः संसद समर्थकों की जीत हुई और राजा को मुकदमा चलाकर 1649 ईसवी में मृत्युदंड दे दिया गया।
गणतंत्र की स्थापना (Establishment of Republic) – 1649 में ब्रिटेन में राजतंत्र एवं लार्ड सभा को भंग कर क्रामवेल की अध्यक्षता में गणतंत्र की स्थापना की गई। इसी समय ब्रिटेन में एक लिखित संविधान अपनाया गया जो क्रॉमवेल की मृत्यु तक (1658) चलता रहा।
पुनः राजतंत्र की स्थापना – क्रामवेल की मृत्यु के बाद गणतंत्र को समाप्त कर चार्ल्स द्वितीय ने गद्दी पर बैठते ही प्रिवी कौंसिल जो बड़ी संस्था बन गई थी, मे से कुछ खास सदस्यों से परामर्श करना प्रारंभ कर दिया। यह परामर्श की नई परंपरा एवं नई समिति आगे चलकर ‘कबाल’ ‘बाठास’ कहा जाने लगा। इसी से बाद में कैबिनेट का उदय हुआ।
गौरवपूर्ण क्रांति (Proud Revolution) – चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका भाई जेम्स प्प गद्दी पर बैठा। उसने लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर रोक लगाकर दैवीय सिद्धांत विशेष अधिकारों पर बल देना प्रारंभ कर दिया। इस समय फिर से टकराव उत्पन्न हो गया। ब्रिटेन के लोगों ने ऑरेंज के राजकुमार विलियम्स को ब्रिटेन पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया। जेम्स प्प फ्रांस भाग गया और बिना रक्तपात के सत्ता में परिवर्तन हो गया। इसे ही गौरवपूर्ण क्रांति कहते हैं। 1689 ईस्वी में संसद बिल ऑफ राइट्स (Bill of Rights) मनवाने में सफल हो गई। इसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं –
- बिना स्वीकृति के नए कर नहीं।
- वर्ष में एक बार संसद की बैठक बुलाई जानी अनिवार्य।
- संसद की पूर्व स्वीकृति के राजा सेना नहीं रख सकता।
- राजा व्यक्तिगत हित में नए न्यायालय स्थापित नहीं कर सकता।
- संसद में जनता के प्रतिनिधियों को विचार अभिव्यक्ति की आजादी होगी।
प्रो. एडमन ने ठीक ही कहा है, “यह ब्रिटिश इतिहास में लिखित संविधान के निकट की वस्तु थी।
1701 का उत्तराधिकारी अधिनियम – 1701 के अधिनियम के द्वारा यह सुनिश्चित कर लिया गया कि रानी की मृत्यु के बाद शासन राजकुमारी सोफिया को प्रदान कर दिया जाएगा।
इसी अधिनियम के द्वारा न्यायाधीशों को सदाचार पर्यंत पद पर बने रहने की सुविधा दी गई। इसके द्वारा यह भी सुनिश्चित कर दिया गया कि राजा संसद की स्वीकृति के बिना न तो विदेश जा सकता है और ना ही युद्ध की घोषणा कर सकता है।
(6) हैनोवर काल : संसदीय जनतंत्र का विकास
1689 के अधिकार पत्र से ब्रिटेन द्वारा 1714 ई. में हैनोवर का जार्ज प्रथम ब्रिटेन का शासक बना। यहीं से संसदीय लोकतंत्र का वास्तविक शुभारंभ हुआ।
राजा की वास्तविक शक्तियों का पतन हो गया। सभी शक्तियों का केंद्र बिंदु संसद बन गई। सम्राट एक संवैधानिक शासक मात्र बनकर रह गया।
👉 मंत्रिमंडल प्रणाली का विकास। सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत भी यहीं से विकसित हुआ।
👉 लोक सदन की तुलना में हाउस ऑफ लार्ड्स की शक्तियों का पतन। 1832 में लार्ड सभा की इच्छा के विरुद्ध सुधार अधिनियम पारित हुआ। यहीं से लार्ड सभा की शक्तियां कम होना प्रारंभ हो गई। वास्तविक लोकतंत्र के अनुरूप जन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था हाउस ऑफ कॉमंस के पास वास्तविक शक्तियां आ गयी।
👉 निम्न सदन का लोकतांत्रिकरण : 1928 में सार्वजनिक व्यस्क मताधिकार प्रदान किया गया। 1970 में पारित विधेयक के अनुसार ब्रिटेन में 18 वर्ष की आयु के प्रत्येक व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त हो गया।
ब्रिटिश संविधान के स्त्रोत
(1) महान अधिकार पत्र (Great Charter)
1215 का अधिकार पत्र ‘मैग्नाकार्टा’, 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति के द्वारा शासन पर जन प्रभुत्व स्थापित हुआ। 1689 के अधिकार पत्र से पार्लियामेंट की वैधानिकता को स्वीकार किया गया। विलियम पिट के शब्दों में, “मैग्नाकार्टा, पीटीशन ऑफ राइट्स, बिल ऑफ राइट्स ब्रिटिश संविधान की बाइबिल है।”
(2) संसदीय अधिनियम (Parliamentary Act)
यद्यपि ब्रिटिश संविधान अलिखित है, परंतु इसके वर्तमान अस्तित्व में आने में समय समय पर अधिनियमों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संसदीय अधिनियम वर्तमान समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाए गए कानून हैं।
अनेक संसदीय अधिनियम जैसे बंदी प्रत्यक्षीकरण 1679, व्यवस्था अधिनियम 1701, स्कॉटलैंड मिलन अधिनियम 1737, सुधार अधिनियम 1832, 1867 एवं 1884 ; संसदीय सुधार अधिनियम 1911 एवं 1949 ; प्रतिनिधित्व अधिनियम 1918, वेस्टमिनिस्टर अधिनियम 1931 आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
(3) न्यायिक निर्णय (Judicial Decision)
ब्रिटेन में यद्यपि भारत एवं अमेरिका की तरह न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति नहीं है, परंतु समय समय पर वहां के न्यायालय ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। जैसे सामरसैट के अभियोग में ब्रिटेन में दासता का अंत किया गया।
हांवल मामले में न्यायाधीशों की स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी दी गई। बुशेल मामले में ज्यूरीयों को और अधिक स्वतंत्रता एवं अधिकार दिए गए।
डायसी के शब्दों में, “ब्रिटिश संविधान कानून का परिणाम नहीं वरन व्यक्तियों द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लाए गए अभियोगों का परिणाम है।”
(4) सामान्य विधि (Common Law)
सामान्य विधि के अंतर्गत वे विधियां आती हैं जिनका विकास रिती रिवाज एवं परंपरा से हुआ है। ना कि सम्राट एवं अधिनियम से हुआ है।
यह वह विधियां है जो परंपरा से स्थापित हुई है और न्यायालय द्वारा स्वीकार की जा चुकी है। ब्रिटिश नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकार एवं स्वतंत्रताएं इन सामान्य विधियों की देन है।
(5) प्रथाएं एवं परंपराएं (Customs and Traditions)
ब्रिटेन में परंपराएं एवं प्रथाएं संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। वहां की संपूर्ण संसदीय व्यवस्था परंपराओं एवं प्रथाओं पर आधारित है। जैसे : अंग्रेजी न जानने के कारण सम्राट जॉर्ज ने मंत्रिमंडल की अध्यक्षता से इंकार कर दिया। तभी से वहां पर यह परंपरा स्थापित हो गए कि राजा मंत्रिमंडल की अध्यक्षता नहीं करेगा।
इसी प्रकार बहुमत प्राप्त होने तक ही प्रधानमंत्री अपने पद पर रहेगा। निम्न सदन में विश्वास खो देने के साथ ही उसे पद छोड़ना पड़ेगा। इसी प्रकार अनेक परंपराएं स्थापित हो गई है जो संसदीय व्यवस्था को गति दे रही है।
(6) संविधान की टीकाएं
संविधान पर लिखी गई टीकाएं भी सविधान का महत्वपूर्ण स्त्रोत समझी जाती हैं। यह देखा गया है कि संविधान संबंधी प्रश्न उठता है तब संसद, न्यायालय इन टिकाए का ही सहारा लेते हैं।
(7) ब्रिटिश शासन व्यवस्था में विवेक एवं सहयोग के तत्व (Elements of discretion and cooperation)
ब्रिटिश संविधान का निर्माण विश्व के आधुनिक संविधानों की तरह निश्चित समय में किसी सभा या समिति के द्वारा नहीं हुआ है। इसका स्वत: क्रमिक विकास हुआ है जिसमें सैकड़ों वर्षों का समय लगा है। ब्रिटिश संविधान के संबंध में लिटेन स्ट्रेजी कहता है, “यह संयोग एवं विवेक का शिशु है।”
ब्रिटेन में संसदीय शासन, द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका, कैबिनेट व्यवस्था, मंत्रिमंडल उत्तरदायित्व (सामूहिक उत्तरदायित्व) का सिद्धांत, पूर्णतः सहयोग का ही परिणाम है। इसी के साथ ब्रिटेन के संविधान में अनेक ऐसी व्यवस्था स्थापित की गई जो सोच समझ एवं विवेक का परिणाम थी।
लोक सदन का लोकतांत्रिकरण, लोक सदन (कामन सभा) की तुलना में उच्च सदन (लार्ड सभा) की शक्तियों को सीमित करना इसी का परिणाम है। इस प्रकार ब्रिटेन के संविधान का निर्माण विवेक एवं संयोग दोनों का ही परिणाम है।
ब्रिटिश संविधान की विश्व को प्रमुख देन
(1) संसदीय शासन (Parliamentary Rule)
ब्रिटेन को संसदीय शासन की जननी कहा जाता है। वहीं पर न केवल संसदीय शासन का जन्म हुआ वरन दुनिया के अनेक देशों तक इसका फैलाव भी हुआ। आज दुनिया में सर्वाधिक प्रसारित शासन प्रणाली के रूप में संसदीय शासन प्रणाली है।
यह दुनिया की सर्वाधिक उत्तरदाई शासन प्रणाली है। यह ब्रिटेन की दुनिया को सर्वाधिक महत्वपूर्ण देन है।
(2) उत्तरदाई शासन (Responsible Governance)
संसदीय शासन दुनिया का सबसे उत्तरदाई (जवाबदेह) शासन होता है। इसमें सरकारों पर कठोर नियंत्रण होता है। उन्हें दो स्तरों पर जवाब देना पड़ता है। पहला नियंत्रण जनता का होता है जब उन्हें मतदाताओं को जवाब देना पड़ता है तथा दूसरा नियंत्रण संसद के अंदर जवाब देना पड़ता है। उनके विश्वास पर्यंत ही सरकार का जीवन रहता है। इस प्रकार उत्तरदाई शासन का सूत्रपात ब्रिटिश शासन की महत्वपूर्ण देन है।
(3) विधि का शासन (Rule of Law)
आधुनिक शासन व्यवस्था का यह प्रमुख लक्षण है। आधुनिक समय में यह स्वीकार किया जाता है कि शासन कानून के अनुसार चलना चाहिए ना कि व्यक्ति के अनुसार। सभी लोग समान रूप से कानून के अधीन है । सभी पर कानून समान रूप से लागू होता है । विधि का शासन सिद्धांत पहले ब्रिटेन में देखा गया और वहीं से दुनिया में आया।
(4) प्रतिनिधिआत्मक शासन (Representative Autocratic Rule)
आज दुनिया में नगर राज्यों का दौर समाप्त हो चुका है। अब विशाल राज्यों का अस्तित्व है। अतः आज के प्रजातंत्र में यूनान नगर राज्यों के जैसा प्रत्यक्ष प्रजातंत्र संभव नहीं है।
ब्रिटेन में संसद के लिए नगर प्रतिनिधियों का चयन ही प्रतिनिधिआत्मक शासन का सूत्रपात था। वहीं से आमजन के लिए प्रतिनिधित्व के लिए प्रतिनिधियों की व्यवस्था की गई और पूरी दुनिया में आज प्रतिनिधिआत्मक लोकतंत्र आगे बढ़ रहा है।
(5) द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका (Bicameral Administrator)
ब्रिटेन में द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका का जन्म एक संयोग था। वास्तविक रूप से वहां पर तीन वर्ग सामंत, पादरी एवं नगर प्रतिनिधि आए थे।
समय के साथ पहले दो वर्ग (सामंत, पादरी) जिनके हित एक से थे वे एक साथ बैठने लगे और दूसरा वर्ग (नगर प्रतिनिधि) एक साथ बैठने लगे। यहीं से पार्लियामेंट के दो सदन बन गए। एक हाउस आफ लॉर्ड्स जो पादरी, सामंतों का प्रतिनिधित्व एवं हाउस ऑफ कॉमंस सामान्य लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाला सदन अस्तित्व में आया।
दुनिया के लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में आज द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका दिखाई पड़ रही है, यह ब्रिटेन की बहुमूल्य देन है।
ब्रिटिश संविधान में वर्णित ताज का अर्थ
ब्रिटिश ताज (क्राउन) – ब्रिटिश राजशाही की शक्ति का प्रतीक है। यह राजतंत्र को बताने का एक और तरीका है – जो इस देश में सरकार की व्यवस्था का सबसे पुराना हिस्सा है। समय ने राजतंत्र की शक्ति को कम कर दिया है, और आज यह मोटे तौर पर औपचारिक है।
शुरुआती दिनों में, सरकार की सभी शक्तियां उस आदमी में केंद्रित थीं, जिसने ताज पहना था। राजा और ताज के बीच का अंतर एक व्यक्ति के रूप में सम्राट के बीच का अंतर है और एक संस्था के रूप में राजशाही। ताज (क्राउन) एक जीवित मूर्त व्यक्ति नहीं है। यह एक अमूर्त अवधारणा है।
राजा एक व्यक्ति है, जबकि ताज (क्राउन) एक संस्था है। राजा ताज का भौतिक अवतार है।राजा केवल ताज (क्राउन) की शक्तियों का उपयोग करने वाला व्यक्ति है। राज्य की सभी शक्तियाँ एक संस्था के रूप में ताज में निवास करती हैं।राजा नश्वर है, लेकिन ताज अमर है। एक व्यक्ति के रूप में राजा की मृत्यु हो जाती है या वह समाप्त हो सकता है या उसे अलग किया जा सकता है जबकि एक संस्था के रूप में ताज स्थायी है।
डॉ. मुनरो के अनुसार, “क्राउन एक कृत्रिम या न्यायिक व्यक्ति है। यह एक संस्था है और यह कभी नहीं मरती है। क्राउन की शक्तियां, कार्य और विशेषाधिकार एक क्षण के लिए भी राजा की मृत्यु से निलंबित नहीं होते हैं। “
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
ब्रिटिश संविधान संयोग और विवेक का शिशु है। स्पष्ट किजिए।
उत्तर : ब्रिटिश संविधान का निर्माण विश्व के आधुनिक संविधानों की तरह निश्चित समय में किसी सभा या समिति के द्वारा नहीं हुआ है। इसका स्वत: क्रमिक विकास हुआ है जिसमें सैकड़ों वर्षों का समय लगा है। ब्रिटिश संविधान के संबंध में लिटेन स्ट्रेजी कहता है, “यह संयोग एवं विवेक का शिशु है।”
ब्रिटेन के संविधान का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत क्या है?
उत्तर : ब्रिटेन में परंपराएं एवं प्रथाएं संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। वहां की संपूर्ण संसदीय व्यवस्था परंपराओं एवं प्रथाओं पर आधारित है।
हालांकि महान अधिकार पत्र (Great Charter) मैग्नाकार्टा, पीटीशन ऑफ राइट्स, बिल ऑफ राइट्स ब्रिटिश संविधान की बाइबिल है।ब्रिटिश संविधान में वर्णित ताज का क्या अर्थ है?
उत्तर : ब्रिटिश ताज (क्राउन) – ब्रिटिश राजशाही की शक्ति का प्रतीक है। यह राजतंत्र को बताने का एक और तरीका है – जो इस देश में सरकार की व्यवस्था का सबसे पुराना हिस्सा है। समय ने राजतंत्र की शक्ति को कम कर दिया है, और आज यह मोटे तौर पर औपचारिक है।